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Man/मन/अतुल पाठक "धैर्य"

 शीर्षक-मन

गूँगे मन ने आज पुकारा है तुमको,
मन जीतने के लिए हारा है खुदको।

मन कविता करता मर्मस्पर्शी,
मन भाव निकलते जादुईस्पर्शी।

मन की कल्पना दिल दहला देती,
भावविभोर होकर रुला देती।

मन जैसे हो मानो दर्पण,
हीरे सा चमकता उसका चित्रण।

मन की अपनी भोली सी दुनिया में,
इक मनका मन में रहता है।

पंख लगाकर वो उड़ता,
ख़्वाबों की झालर बुनता है।

कभी ख़्वाहिशें मुरझा जाती,
पर कभी तो मनसुमन खिलता है।
मौलिक/स्वरचित
अतुल पाठक "धैर्य"
हाथरस(उत्तर प्रदेश)

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