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सूर्या शर्मा मगन को कविता बात.. Baat

         बात

सो रहा था ,मैंने देखा एक सपना
कोई न था साथ में ,मीलों तक अपना
झर रहा था खुद से ही बातों का झरना
हर बार मैं एक बात ही दौहरा रहा था
बात थी उस बात को ही गा रहा था

लहलहाती कुछ लताएँ गा रही थी
झूमकर हवाओं से बातें कर रही थी
हस्ती ठिठोली मारती लहरा रही थी
गीत अपनी धुन में ही बो गा रही थी
बात थी बो दोनों मिलकर गा रही थी

धरती  अम्बर को निहारे जा रही थी
प्रेम में कुछ आसमां  से कह रही थी
चटकी मिट्टी हो व्यथित सब सह रही थी
प्रेम है रोके भिगा दे कह रही थी
बात है ये प्रेम की  बतला रही थी

ताल के तट पर था मेढक गा रहा था
बात मन की गुनगुनाकर कह रहा था
धन्य है ये दोस्ती मेरी तुम्हारी
बचपने से तेरे दिल में रह रहा था

बात में ही बात को बो कह रहा था
ऊँचा पर्वत तन्हा होके रो पड़ा था
दूर तक कोई न उसको दिखता था
बात थी तन्हाई की जो सह रहा था
आती जाती पवनों से बो कह रहा था

बात है ऊंचाई की ऊँचे न होना
जिंदगी भर तन्हा ही ,पड़ जायेगा रोना
बात से जो बात को समझा न कोई
मगन न रहेगा प्रेम न ही बात कोई
सूर्या शर्मा मगन
9716184364

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