।। एक फक्कड़ - भुलई दास।।
लम्बी काया वो जले हुए बबूल के बोटे की तरह, हाथ और पैर अज्ञात बीमारी से हिलते थे। जबान भी स्पष्ट नहीं थी। विद्यालय पर ही रहते थे तथा चौबीस घंटे मे एक ही बार भोजन करते थे। बाबा को हाथ पैर हिल ने के कारण भोजन बनाने में बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ता था। रोटी चकले पर ही बेलते समय आठ टुकड़े हो जाती थी। फिर भी पेट के लिए कुछ तो उपाय करना ही पड़ता।ऐसे थे फक्कड़ भुलई दास।राम अचल चौधरी का गांव मे बड़ा बोल बाला था। खेती किसानी भी एक नम्बर पर था। बड़ी - बड़ी मूंछें जो नीचे के तरफ लटकी रहती थी, घनी भौहें, माथे पे सिलवटें पड़ी हुई थी। लोग उनका बड़ा सम्मान करते थे। चौधरी को लोग प्यार से डडुवा कहते थे। एक दिन भुलई दास से डडुवा के दरवाजे पर भेंट हो गयी। चौधरी महात्मा को दण्डवत किया कुशल क्षेम पूछां। पर महात्मा की निगाह चौधरी के बैलों पर जम गयी। वो बैल बड़े ही खूब सूरत थे। छोटे-छोटे सींग चौड़ा माथ बड़े - मांसल टागें हल बैलगाड़ी खींचने मे बड़े ही माहिर थे वो बैल। अभी बैलों की जोड़ी डडुवा जल्द ही लाये थे। डडुवा ने कहा - महात्मा जी आओ कुछ जल - जलपान कर लो। पर महात्मा के मन - मस्तिष्क मे बैलों की जोड़ी कौंध रही थी। दुबारा कहने पर महात्मा ने कहा-"नहीं डडुवा अभी नहाड़े धोड़ें का टाइम है जलपाड़ का नहीं।" यह कहकर वो चल दिये।
रात के 11बज रहे हैं। काली रात घटाटोप काले - काले बादल रिमझिम बूँदें पड़ रही थी। महात्मा को नींद नहीं आ रही थी कारण चौधरी के बैल महात्मा को सोने नहीं दे रहे थे। दिन में जो हाथ पैर बहुत हिलते थे रास्ता भी ठीक से चलने नहीं देते वही पैर घोड़े की तरह रात मे दौड़ने लगते। महात्मा बैलों को चुराने के लिए निकल पडे़ एकदम तीब्र गति से, पर डडुवा को नींद कहां आ रही थी। उनके दिमाग मे भुलई दास का चेहरा रह-रह कर नाच जाता कि वह मेरे बैलों को घूर रहा था। आज की रात यदि कुशल से बीत गयी तो अच्छा होता इसी प्रकार सोच विचार मे डडुवा डूबे थे। डडुवा चारपाई बैलों के कमरे से सटा कर विछाये थे जिसमें फाटक नहीं था। रात अधिक हो गया था आंखे नींद के कारण झँपती खुलती थी।
उधर भुलई दास घारी के कोने मे बैठ डडुवा के सोने तथा बैलों को बाहर निकालने का जुगाड़ सोंच रहे थे। परेशानी यह थी कि उसकी चारपाई एकदम दरवाजे से सटी थी महात्मा बैलों को निकालें भी कैसे पर स्वयं किसी तरह से वह घारी मे प्रवेश कर गये। दरवाजे के पास एक छोटा सा गड्ढा था जिसमे बैलों का मूत्र इकट्ठा था उसी गड्ढे के बगल में बैठकर बैल जुगाली कर रहे थे। महात्मा बैलों के पास सपटे हुए थे तथा बैलों के पूँछ को अपने हाथ से पकड़ कर मूत्र मे डूबोकर डडुवा के मुख पर छिड़क देते। बार-बार ऎसा करने पर आजिज होकर डडुवा दूसरे कोने मे चारपाई लेकर सोने चले गये। थोड़ी देर में गहरी नींद में चले गये। महात्मा बैलों को खूँटे से छोड़कर रातोंरात पशुओं के बाजार दिलदार नगर पहुंच गये।वहाँ पांच सौ रुपए मे बैलों को बेंच पैसे लेकर चलता बने। रास्ते भर अनेक फल-फूल मिठाइयां पेट भर कर खा रहे थे। आज रात बड़ी सुंदर रात महात्मा के लिए।
अब क्या था डडुवा की आंख खुली तो बैलों को न देखकर उनके पैरों तले जमीन खिसक गयी। पूरे मुहल्ले में बैलों के चोरी की बात आग की तरह फैल गयी। बहुत ढूंढ़ने के बाद भी बैल मिले नहीं पर डडुवा समझ गया की सारी करामात भुलई की ही है। अब डडुवा थाने पर जाकर भुलई के नाम से एफ0 आई 0आर0 कर दिए। पुलिस महात्मा के पीछे पड़ गयी। 15 दिन बाद महात्मा
पुलिस के हाथों पड़ गये और पुलिस मुकदमा दर्ज कराकर जेल मे छोड़ आयी।
जेल मे महात्मा का क्या कहना। समय-समय से नाश्ता भोजन मिल रहा था। उनका सूखा चेहरा कमल की तरह खिलने लगा। अब उनका मन जेल छोड़ने को नहीं कह रहा। पर 21 दिन के बाद जेल के सिपाही आये महात्मा से कहा अब आप घर जायें आपकी जेल मे रहने की मियाद खत्म है। तब भुलई ने कहा - मुधे देलर साहब से मिलाकर ही देल से बाहर निकालों। सिपाही उन्हें लेकर जेलर के पास पहुंचे। सर जय हिंद
जेलर - क्या बात है
सिपाही - सर इस कैदी की मियाद पूरी हो गयी बाहर निकालना है।
जेलर - तो निकल दो।
सिपाही - ये आपसे कुछ कहना चाहता है।
जेलर - भुलई दास की तरफ देखते क्या बात है जी,
भुलई दास - दोहाई पिल्थी नाथ की 15 दिन अउल लहने दीजिए देल मे। उसके बदले 100 रुपये की नोट पैर पर रख दिए।
जेलर - सोंच डूब गये कि "लोग जेल से घबराते हैं यह कैसा आदमी है जो जेल मे रहने के लिए उत्कोच दे रहा है"। फिर कहा - पैसा उठाओ यहां से चलता बनो।यह कह कर सिपाहियों से कहा इसे जेल से बाहर कर दो।
भुलई दास - ताले हलामी मै फिल आऊंगा एक्कइत दिन बैल थोलले पर, अब किलबाल गतई कातब, तब दुइ तार सालि देले मे मौद करब ।दयहिंद।
कहानी स्व लिखित।।
।। लेखक - कविरंग।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)
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