।। गुरु महिमा।।
गुरुदेव तेरे ज्ञान का सहारा ना मिलता।जग मे हमें नवजीवन दुबारा ना मिलता।।
यदि तेरे ज्ञान को निज दिल मे ना बसाता।
तो ज्योति प्रभू का हृदय मे ना जलता।।
दिखाया न होता यदि इंग्ला पिंगला सुषुम्ना।
सूने पड़े सहस्रार पे कमल भी ना खिलता।।
इस जहाँ मे मेरा कुछ वजूद भी ना होता।
मैं भव सागर मे यूं ही बार-बार फिसलता।।
जीवन मृत्यु के यदि भेद को ना बताते।
तो जीते जी काल मुझको हरदम निगलता।।
चरम की सफलता आज मिलता न जग में।
तेरी कृपा से ही दूर अब हमसे विफलता।।
जहाँ मे पड़ा था जब किंकर्त्तव्यमूढ़ होकर।
तूने ही मिटाया मेरे मन से सारी विकलता।।
स्वरचित मौलिक
।। कविरंग।।
विनोद कुमार पाण्डेय
।। शिक्षक।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर (उ0प्र0)
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