Madhyavargiye pariwar ki ladki roma ki kahani
रोमा (कहानी) Roma ki Kahani
मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी रोमा चार भाई-बहनों में दूसरे नंबर की थी। पिताजी फौजी और मम्मी सीधी-सादी किंतु दृढ़ संकल्पित घरेलू महिला थी ।दृढ़ संकल्पित कहना इसलिए उचित होगा क्योंकि उन्होंने उस जमाने में अपनी लड़कियों को पढ़ाने लिखाने का फैसला किया जिस समय लोगों में यह भावना बलवती थी कि लड़कियों को स्कूल भेजने की कोई आवश्यकता नहीं है। कौन सा उन्हें कलेक्टर बनना है ?बस चिट्ठी पत्री लायक सीख जाएं। पिताजी के मिलिट्री में होने के कारण रोमा को भारत के विभिन्न स्थानों में जाने और उनके बारे में निकटता से जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यहां तक कि उसका जन्म भी पठानकोट( पंजाब) के सैनिक अस्पताल में हुआ था ।प्रारंभिक शिक्षा देहरादून (वर्तमान में उत्तराखंड की राजधानी) के क्लेमेंट टाउन विद्यालय में हुई जहां अन्य विषयों के साथ साथ हस्त कला भी सिखाई जाती थी।पिताजी के समय समय पर स्थानांतरण के चलते स्कूल भी बदलते गए।चौथी से छठवी तक की पढ़ाई अखनूर (जम्मू)के ओरिएंटल एकेडमी में तथा सातवीं से नौवीं कक्षा तक की पढ़ाई पंजाब के भटिंडा में हुई।यहां उसे पंजाबी भाषा सीखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यद्यपि उस समय यह भाषा मजबूरी में सीखी गई थी क्योंकि वहां पंजाबी भाषा का एक उपन्यास अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता था। इसी बहाने वह देवनागरी के अतिरिक्त गुरुमुखी लिपि के संपर्क में आई।जब वह दसवीं कक्षा में थी तब उसके पिता जी सेवानिवृत्त होकर गृहग्राम रीवा( मध्य प्रदेश) अा गए।अत: शेष विद्यालयीन एवं महाविद्यालयीन शिक्षा यही पूर्ण हुई उसने प्राणी शास्त्र विषय में प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की।
रोमा का बचपन बड़े लाड प्यार में गुजरा ।दुबली पतली घुंघराले बालों वाली रोमा प्रारंभ में अक्सर बीमार रहा करती थी, इसलिए परिवार के सभी सदस्यों का वह केंद्र बिंदु थी ।बड़ी बहन की तो मानो जान बसा करती थी उसमें । न जाने कितनी बार उसकी गलतियों को छुपाकर मम्मी से पिटने से बचाया था । रोज सुबह चाय बनाकर पढ़ने के लिए उठाना ,नींद में बेतरतीब हो गए कपड़ों को ठीक करना ,कॉलेज जाते समय दुपट्टे में पिन लगाना और जाने क्या क्या करती थी उसके लिए। बड़ी बहन की इस अतिरिक्त देखभाल के चलते रोमा को कभी बड़ा और जिम्मेदार होने का मौका ही नहीं मिला ।फूलों पर बैठी रंग बिरंगी तितलियों को पकड़ना, ड्रैगन फ्लाई को धागे से बांध कर उड़ाना, कांटेदार तार की बाउंड्री को लांघकर दोस्तों के साथ अमरूद,संतरा,चकोतरा तोड़कर लाना, दोपहरी में चुपचाप खेलने निकल जाना और जाने कितनी ऐसी ही सुनहरी यादों से भरपूर था रोमा का बचपन। उम्र के 23 वर्ष पार करने के बाद भी उसका बचपना नहीं गया था ।आड़े तिरछे मुंह बनाना, दूसरों की नकल करना, बेसुरे स्वर में तान छेड़ ना, रेडियो पर गाने सुनना और जाने कितनी बचकानी हरकतें आज भी शुमार थी उसकी आदतों में। मम्मी अक्सर बड़बड़या करती ,"इतनी बड़ी हो गई है ,जाने कब अक्ल आएगी इसे। कल को शादी हो जाएगी तो क्या तब भी यही रवैया रहेगा इसका?"मम्मी की समझाइश को वह यह कह कर अनसुना कर देती ,"हां मैं तो ऐसे ही रहूंगी हमेशा ।जिसे इच्छा होगी वह बदल लेगा खुद को मेरे अनुसार।"घरेलू कार्यों में भी उसका योगदान न के बराबर था। कभी-कभार बड़ी बहन का खाना पकाने में हाथ बटा देती थी। जब कभी भविष्य को लेकर भाई बहनों के साथ मंत्रणा होती तो वह तपाक से कह देती कि मुझे तो नौकरी के चक्कर में नहीं पड़ना ।अरे भाई जब हमें शादी ही करनी है तो काम करने की क्या जरूरत है ?मैं तो आराम से घर पर रहूंगी पति कमा कर लाएगा और मैं ऐश करूंगी ।उसकी इस बात पर सभी खिलखिलाकर हंस पड़ते।
दिसंबर की वह सुबह कुछ खास थी। एक तो रोमा का जन्मदिन था और दूसरा उसके जीवन की दूसरी पारी का आगाज होने जा रहा था। विवाह के संबंध में आज एक लड़का अपनी मां और भाभी के साथ उसे देखने आने वाला था। घर में हलचल मची थी मम्मी और दीदी घर की साज-सज्जा में व्यस्त थी और पिताजी बाजार से सामान लेने गए हुए थे। रोमा रोज की तरह देर से सोकर उठी और मुंह में ब्रश दबाए धूप में जाकर बैठ गई।"अरे कम से कम ढंग से नहा धोकर तैयार तो हो जाओ लड़के वाले तुम्हें देखने आ रहे हैं।"मां की खीझ भरी आवाज उसके कानों में पड़ी। उसने लापरवाही से उत्तर दिया,"अरे मम्मी मुझे नहीं होना तैयार । उसे पसंद करना होगा तो ऐसे ही कर लेगा।"मम्मी कुछ कह पाती इससे पहले ही पापा आ गए और सामान मम्मी को सामान थमाते हुए बोले ,"अरे मेरी रोमा तो लाखों में एक है इसे सजने सवरने की कोई जरूरत नहीं है ।"रोमा चहक कर पापा से लिपट गई। पापा ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा लेकिन बेटा कम से कम नहा धोकर साफ-सुथरे कपड़े तो पहन लो ।अच्छा ऐसा करो तुम्हारे जन्मदिन के तोहफे के रूप में मैं जो सूट लाया था उसे ही पहन लो ।गुलाबी रंग तुम्हारे ऊपर बहुत खिलता है।रोमा झट से मान गई। ब्रश करने के बाद उसने स्नान किया और सूट पहनकर तैयार हो गई।हल्का मेक अप, धुले हुए घुंघराले लंबे काले बाल,होंठो पर हल्की गुलाबी रंग की लिपस्टिक उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे। मम्मी ने कान के नीचे काला टीका लगाते हुए कहा ,"कहीं मेरी ही नजर न लग जाए। कितनी सुंदर लग रही है मेरी बिटिया।"उनकी आंखों में आंसू छलक आए रोमा भी भावुक हो उठी। "अरे वाह !तुम भी इमोशनल हो गईं। यह तो चमत्कार हो गया।" दीदी ने माहौल को हल्का करने का प्रयास करते हुए कहा। मम्मी और रोमा दोनों मुस्कुरा उठी।
दरवाजे की घंटी बजी।वे लोग आ चुके थे। स्वल्पाहार और सामान्य बातचीत की औपचारिकता के पश्चात उन्होंने रोमा से मिलने की इच्छा व्यक्त की। बड़ी बहन के साथ रोमा ने कमरे में प्रवेश किया।उसने सभी पर सरसरी निगाह डाली और महसूस किया कि सब उसी को देख रहे थे।मम्मी ने उसे सामने की कुर्सी पर बैठा दिया।नाम,पढ़ाई लिखाई,शौक और घर गृहस्थी के काम काज के बारे में पूछा गया।भाभी ने भी कुछ बातें की।दोनों ने लड़के की तरफ़ देखा जो चुपचाप हमारी बातें सुन रहा था,उसके भावों को समझते हुए दोनों को अकेले में बात करवाने की इच्छा व्यक्त की।रोमा को यह सब बहुत अजीब लग रहा था क्योंकि दीदी की शादी के समय इस प्रकार की मांग नहीं रखी गई थी।केवल उसकी ननदें ही उससे मिलने की औपचारिकता निभाई थी,जीजाजी ने तो उसे केवल फोटो में ही देखकर हां मी भर दी थी।खैर, उन दोनों को दीदी अलग कमरे में ले गई और छोटी बहन चाय लेकर आई।रोमा का दिल ज़ोरों से धड़क रहा था ।वह दीदी को रोक लेना चाहती थी लेकिन वह मुस्कुराकर चली गई। यद्यपि रोमा को एड में पढ़ती थी और लड़कों से बातचीत करना उसके लिए सामान्य था किन्तु विवाह के उद्देश्य से उन दिनों लड़का लड़की का मिलना बहुत अधिक प्रचलन में नहीं था सो थोड़ी सी घबराहट और रोमांच की अनुभूति हो रही थी।सामने रखी चाय की प्याली उठाते हुए वह बोला,"मेरा नाम राकेश है मैं एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता हूं,आपका नाम क्या है?" रोमा ने भी प्याली उठाते हुए उत्तर दिया,"मेरा नाम रोमा है और मैं साइंस कॉलेज से प्राणिशास्त्र विषय में एम एस सी कर रही हूं।इस साल फाइनल में हूं।"उसने बातों का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए बताया कि भविष्य में अपना स्वतंत्र व्यवसाय करना चाहता है और एक नई पहचान बनाना चाहता है।उसने कहा,"आपको शादी के बाद नौकरी करने की भी कोई जरूरत नहीं है लेकिन अगर आप चाहेंगी तो मेरी तरफ से कोई मनाही भी नहीं होगी।अभी तक मैं जितनी लड़कियों से मिला सभी को मेकअप से ढका पाया आपकी सादगी को देखते ही मैंने यह निश्चय कर लिया था कि मुझे आपसे ही शादी करनी है।मेरे बारे में आपका क्या विचार है ?क्या आप मुझसे शादी के लिए तैयार हैं?"रोमा उसके व्यक्तित्व,बातचीत की शैली और विचारों से बहुत अधिक प्रभावित हुई।उसे लगा कि उसके सपनों का राजकुमार उसके सामने है किन्तु उसके इस अप्रत्याशित सवाल से वह हड़बड़ा गई।दिल की धड़कनें बढ़ गई और वह जुबां से कुछ नहीं बोल सकी केवल हां में सिर हिला दिया।बाहर आकर उसने अपनी सहमति दे दी और विवाह की तारीख़ निश्चित करके सूचना देने की बात कहकर वे लोग वे लोग चले गए।घर के सभी लोगों ने जब रोमा से उसकी राय पूछी तो उसने हां कर दी।विवाह की तिथि भी तय हो गई,सोलह फरवरी। "मुश्किल से दो महीने,इतने कम समय में इतनी सारी तैयारियां कैसे होंगी और रोमा की परीक्षाएं भी नजदीक हैं,"कहते हुए पापा ने शादी गर्मी तक टालने के लिए कहा।राकेश के पिता ने आश्वासन देते हुए कहा,सारी तैयारियां मिलजुल कर कर लेंगे,आप नाहक ही परेशान हो रहे हैं और रही रोमा की परीक्षा की बात तो वह समझदार है मैनेज कर लेगी।मम्मी को यह बात खटक रही थी कि आख़िर लड़के वालों को शादी की इतनी जल्दी क्यों है? कहीं वे कोई बात छुपा तो नहीं रहे हैं?अपनी इस शंका को जब उन्होंने पापा के सामने रखा तो उन्होंने हंसते हुए कहा ,"तुम बेकार की शंका कर रही हो ऐसा कुछ नहीं है,विनोद मेरा अच्छा मित्र है और उसी ने यह रिश्ता बताया है।राकेश उसका रिश्तेदार है यदि कोई बात होती तो वह मुझे ज़रूर बताता।"पापा की बात सुनने के बाद भी मम्मी को न जाने क्यों तसल्ली नहीं हुई।वह चाहकर भी खुश नहीं हो पा रही थीं।
शादी की तारीख़ निश्चित होने के बाद राकेश किसी न किसी बहाने से रोमा को देखने पहुंच जाता।कभी छोटे भाई बहन के लिए कुछ सामान लेकर तो कभी पापा की वैवाहिक खरीददारी में मदद करने।उसने स्पष्ट किया कि उसे दहेज में कुछ नहीं चाहिए लेकिन वह यह भी नहीं चाहता कि शादी में उनका कोई खर्च हो।उसकी स्पष्टवादिता से पापा बहुत प्रभावित हुए।रोमा भी मन ही मन उसे चाहने लगी थी।फिर वह दिन भी अा गया जब राकेश उसके घर बारात लेकर आने वाला था।घर में रिश्तेदारों की चहल पहल थी।विवाह की रस्में चल रही थी।रोमा चुपचाप अपने कमरे में बैठी थी।उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह अपने माता पिता भाई बहन घर परिवार सब कुछ छोड़कर जा रही है एक ऐसी दुनिया में जो उसके लिए बिल्कुल नई है,अनजान है। उसकी दीदी और सहेलियों ने उसे समझाया कि ऐसा तो हर लड़की के साथ होता है,यह कोई नई बात नहीं है।चिंता मत करो,राकेश एक समझदार लड़का है।परिवार भी अच्छा है।सब कुछ बढ़िया होगा।रोमा ने कोई उत्तर नहीं दिया।उसे दुल्हन के रूप में सजाया जा रहा था तभी किसी ने बताया कि बारात दरवाजे पर पहुंचने वाली है।सभी दूल्हे को देखने दौड़ पड़ीं।"अरे कितना सजीला दूल्हा है,कितनी अच्छी जोड़ी रहेगी दोनों की।अपनी रोमा कितनी भाग्यशाली है।"कानों में पड़ते ये शब्द रोमा को रोमांचित कर रहे थे।जयमाला के समय कन खियों से देखा था उसने राकेश को।कितना अच्छा लग रहा था वह नीले सुनहरे रंग की शेरवानी में।विवाह की रस्में संपन्न हुई और विदाई का समय भी अा गया।एक ओर पीहर से बिछड़ने का दुख और दूसरी ओर सपनों के राजकुमार से मिलने का रोमांच,इस मिश्रित भाव को लिए रोमा विदा होकर ससुराल अा गई।यहां भी कुछ रस्में निभाई गईं।रोमा बहुत ज्यादा थक चुकी थी।वह बैठे बैठे कब सो गई उसे पता ही नहीं चला।"उठो रोमा,कुछ खा लो,भूख लगी होगी,"राकेश ने उसे धीरे से जगाते हुए कहा।रोमा हड़बड़ाकर उठी। उनींदी हालत में उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह कहां है।राकेश को सामने देखकर उसे ध्यान आया कि अब वह ससुराल में है।उसने पूछा कि मैं तो रिश्तेदारों के बीच बाहर बैठी थी,यहां कैसे अाई?राकेश ने प्यार से देखते हुए बताया कि तुम बात करते करते ही सी गई थीं मैंने तुम्हें अपनी बाहों में उठाया और यहां ले आया।रोमा सुनकर शरमा गई।फिर दोनों हंस पड़े।
विवाह के कुछ महीने बहुत अच्छे बीते।दोनों बहुत खुश थे।रोमा के सारे सपने सच हो रहे थे।राकेश जैसा जीवन साथी पाकर वह बहुत खुश थी।मम्मी ने भी राहत की सांस ली यह जानकर कि राकेश को लेकर को उनके मन में शंका थी वह गलत साबित हुई।राकेश को बिजनेस के सिलसिले में कभी कभार बाहर भी जाना पड़ता था।रोमा ने भी एक दो बार साथ जाने की इच्छा जताई तो राकेश ने कोई न कोई बहाना करके टाल दिया।ये सिलसिला लगभग दो साल तक चलता रहा। एक दिन उसे राकेश की जेब से मल्टीप्लेक्स के दो टिकट और खाने का बिल मिला,जब उसने इस बारे में जानना चाहा तो जैसे उसने राकेश की दुखती रग पर हाथ रख दिया। वह गुस्से से बोला ,"आख़िर तुमने टिपिकल बीवी की तरह पूछताछ शुरू कर दी, मैं तो सोचता था कि तुम औरों से अलग होगी।"कहकर वह कमरे से बाहर चला गया।रोमा आश्चर्य से उसे देखती रह गई।अरे,मैंने ऐसा क्या पूछ लिया जो इतने नाराज़ हो गए,शायद काम का दबाव होगा,उसने सोचा।धीरे धीरे ऑफिस के काम से बाहर जाने का सिलसिला भी बढ़ने लगा।अब तो रोमा के लिए जैसे उसके पास समय ही नहीं था। कभी कभी ड्रिंक करके भी आने लगा।पूछने पर कहता कि तुम्हें तो पता है कि मैं अपना खुद का बिजनेस शुरू करना चाहता हूं।उसके लिए बड़े बड़े लोगों के साथ पहचान बनाना और उनकी सोसायटी के हिसाब से चलना पड़ता है।रोमा को जाने क्यों पहली बार राकेश की बात पर भरोसा नहीं हुआ और उसने सच्चाई का पता लगाने का फैसला किया। उसने राकेश के बारे में गुपचुप तरीके से ऑफिस से पूछताछ की तो पता चला कि ऑफिस में काम करने वाली शालिनी के साथ उसका घूमना फिरना है। बिजनेस टूर में भी वह उसके साथ जाती है। यह जानकर मानो रोमा के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।उसने जब राकेश से इस सिलसिले में बात करनी चाही तो उसने उसके गाल पर तमाचा मारते हुए कहा," तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी जासूसी करने की? तुम कौन होती हो मुझे रोकने वाली? आखिर तुम्हें किस चीज की कमी है? ऐशो आराम की सभी चीजें तो मैं तुम्हें देता हूं। खबरदार, जो कभी मेरे निजी मामलों में दखल देने की कोशिश की तो।" रोमा चक्कर खाकर नीचे गिर पड़ी ।राकेश ने घबरा कर उसे उठाया और डॉक्टर के पास ले गया। जांच के बाद पता चला कि रोमा मां बनने वाली है यह खबर सुनकर सब बहुत खुश हुए।राकेश ने भी अपनी गलती की माफ़ी मांगी और उसे न दोहराने की कसम भी खाई।समय आने पर रोमा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया।वह उसकी परवरिश में रम गई और राकेश ने फिर वही पुरानी राह पकड़ ली।
दो साल बीत गए।रोमा ने कई बार उसे प्यार से और कई बार गुस्से से समझाने का प्रयास किया किन्तु जैसे वह कुछ सुनने समझने को तैयार ही नहीं था।बल्कि बात बात पर यह एहसास दिलाता रहता मानो उनकी परवरिश करके वह उन पर बहुत बड़ा एहसान कर रहा है। कभी कभी तो उस पर हाथ भी उठा देता।रोमा यह सोचकर चुप रह जाती कि मायके वाले जानेंगे तो उन्हें दुःख होगा।बच्ची के भविष्य के लिए भी वह खून का घूंट पीकर रह जाती।हां, बीच-बीच में वह राकेश से यह भी कहती रहती कि उसे इतना मजबूर न करे कि वह सब कुछ छोड़ कर चली जाए। राकेश इस बात को हंसी में टाल देता और कहता तुम्हारा मेरे बिना कोई अस्तित्व नहीं है।इसी दौरान रोमा के ससुर का निधन हो गया।अब तो कोई रोक टोक करने वाला भी नहीं था।काम के प्रति लापरवाही के चलते राकेश को नौकरी से निकाल दिया गया। रोमा ने जब दूसरी नौकरी ढूंढने के लिए कहा तो उसे बेइज्जत करते हुए कहने लगा कि तुम्हारे मां बाप ने तुम्हें क्यों पढ़ाया है बाहर निकलो और कुछ काम धाम करो कब तक मेरे टुकड़ों पर पलती रहोगी?रोमा स्तब्ध रह गई।ये वही राकेश है जिसने मुझे कहा था कि तुम्हें काम करने की जरूरत नहीं है।वह कहता जा रहा था, मुझसे अब दूसरों की गुलामी नहीं होगी मैं अब अपना अलग काम शुरू करूंगा।रोमा ने अपने आपको संयमित करते हुए पूछा मैं क्या काम करूं ?और आप बिजनेस के लिए रुपयों की व्यवस्था कहां से करेंगे? अरे कुछ भी करो लेकिन मेरा बोझ मत बनो और रही मेरे पैसों की बात तो मैं बैंक से लोन ले लूंगा।"बोझ" शब्द रोमा को अंदर तक आहत कर गया।सरकारी नौकरी तो इतनी जल्दी मिलती नहीं इसलिए एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगी।वेतन बहुत कम और काम बहुत ज्यादा।घर खर्च और बेटी की परवरिश के लिए ट्यूशन पढ़ाना भी शुरू कर दिया।मम्मी को जब उसकी नौकरी करने के बारे में पता चला तो उन्होंने फोन पर इसका कारण जानना चाहा उसने वास्तविक स्थिति को छुपाते हुए कहा कोई विशेष कारण नहीं है ।घर पर बैठे बैठे बोर हो रही थी तो सोचा कोई जॉब कर लूं टाइम भी पास हो जाएगा और कुछ पैसे भी अा जाएंगे।मम्मी ने उसे समझाते हुए कहा मुझसे कुछ छुपा नहीं है तुम्हारे बारे में मुझे जानकारी मिलती रहती है।कोई जरूरत नहीं है ये सब सहने की।कितने नाजों से तुम्हे पाला था यही देखने के लिए कि कोई तुम्हें इतना प्रताड़ित करे। आख़िर कब तक उसके प्यार में सब कुछ सहती रहोगी?उसे तुम्हारे प्यार की कोई कद्र नहीं है।इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा खुले रहेंगे,जब मन करे चली आना।इससे ज्यादा मैं तुम्हें नहीं समझा सकती।लेकिन जाने क्यों वह हिम्मत ही नहीं कर पाई।समय गुजरता गया।राकेश ने बैंक से लोन भी ले लिया लेकिन गलत लोगों की संगत में पड़कर सारी रकम शराब और अय्याशी में गवां दी।घर की जिम्मेदारियों से पूरी तरह से पल्ला झाड़ लिया और दिन रात शराब में डूबा रहने लगा।रोमा के कंधों पर सारा भार अा गया। वह अंदर ही अंदर टूटने लगी थी।मायके में मुंह से निकलते ही जिसकी हर फरमाइश पूरी हो जाती थी उसने इच्छा करना ही छोड़ दिया था।उसकी दुनिया केवल स्कूल, ट्यूशन और घर के दायित्व तक सिमट गई थी।सास को जो पेंशन मिलती थी उससे थोड़ी बहुत मदद हो जाती।उसकी परेशानियां केवल यहीं नहीं थमी,राकेश का शकी स्वभाव उसकी चिंता का सबब बनता जा रहा था।स्कूल के पुरुष स्टाफ और क्लास के लड़कों से बात करने में उसने सख़्त आपत्ति जताई थी।रोमा ने लाख समझाने की कोशिश की कि यह कैसे संभव है कि वह उन लोगों से बात न करे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।रोमा ने गुस्से में कहा कि यदि उसे इतनी आपत्ति है तो क्यों कोई काम शुरू नहीं करते, मुझे नौकरी करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।इस पर वह झल्लाकर उसे पीट देता,यह भी परवाह न करता कि बेटी के मन मस्तिष्क पर इसका क्या असर होगा?नतीजा यह निकला कि लोगों से बात करते समय वह घबराने लगी विशेषकर जब वह राकेश के सामने किसी पुरुष से बात करती तो खुद को असहज महसूस करती।उसका आत्मविश्वास भी खोता जा रहा था।इसी दौरान शासकीय शिक्षक बनने के लिए परीक्षा भी दी लेकिन कम अंक प्राप्त होने के कारण होम टाउन में नौकरी न मिल कर दूसरे जिला का नियुक्ति पत्र आया तो राकेश ने यह कहकर साफ मना कर दिया कि बहुत होशियार हो तो इसी शहर में नौकरी लेकर बताओ। वह नशे की हालत में यहां वहां पड़ा रहता।दो चार बार तो रोमा के स्टूडेंट्स ने ही उसे घर तक पहुंचाया था।कितनी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी उसे।एक लड़के ने तो यहां तक कह दिया था,"मैम क्यों रहती हैं आप इनके साथ? मैं आपकी जगह होता तो कब का छोड़ देता।"कुछ नहीं बोल पाई थी वह।क्या कहती कि इतना आसान नहीं है शादी जैसे बंधन को तोड़ पाना। सास का भी कोई नियंत्रण नहीं रह गया था।रोमा रोकर रह जाती।
दिन बीतते रहे।एक बार रोमा बुरी तरह बीमार पड़ गई।उसे मलेरिया,टायफायड और पीलिया ने जकड़ लिया।वजह साफ थी काम के आगे वह खुद को भुला बैठी थी और खान पान पर कोई ध्यान नहीं दे रही थी।शरीर को भी आखिर खुराक चाहिए कब तक चलता? बहरहाल डॉक्टर को दिखाया गया,इलाज चला।बुखार तो उतर गया पीलिया भी कंट्रोल में अा गया लेकिन अब भी कमज़ोरी बहुत अधिक थी इसलिए आराम करने की सलाह दी गई थी।रोमा सोच रही थी कि काम नहीं करेगी तो कैसे चलेगा?इतने में राकेश कमरे में आया और बोला,"अभी कितने दिन आराम फरमाने का इरादा है?ये नौटंकी बंद करो और कल से स्कूल जाओ नहीं तो सैलरी कैसे मिलेगी?खर्चा कैसे चलेगा? तुम्हें पता है कि मैं शराब के बिना भी नहीं रह सकता और हां ज्यादा दिक्कत है तो अपने मायके चली जाओ हमेशा के लिए।"रोमा कुछ कह पाती इससे पहले ही वह पैर पटकते हुए वहां से चला गया।उस दिन तो जैसे उसके जीने की इच्छा ही ख़त्म हो गई ।उसने उसी पल अपनी जीवन लीला समाप्त करने का निर्णय लिया।बिस्तर से उठकर उसने कबर्ड से सारी गोलियां,कैप्सूल और सिरप निकाले और एक साथ हलक के नीचे उतार दिया ।ब्लेड से वह अपनी हाथ की नसें काटने ही वाली थी कि अचानक उसकी बेटी नींद से जाग कर रोने लगी।जैसे ही रोने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी लगा कि वह सम्मोहन से बाहर निकल आई। गुस्से में ये क्या अनर्थ करने जा रही थी वह? ऐसा करके वह तो अपने कष्ट से मुक्ति पा जाएगी लेकिन उसकी बेटी का क्या होगा? यह विचार आते ही वह अंदर तक कांप गई ।"यह मैं क्या करने जा रही थी?" उसने सोचा दवाइयों के असर से उसका सिर घूम रहा था और चक्कर आ रहे थे ।उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि इस बार वह उसे बचा ले जीवन में फिर कभी आत्महत्या का प्रयास नहीं करेगी।एक सप्ताह तक उन दवाइयों का असर रहा किन्तु जान बच गई।रोमा ने मन ही मन यह निश्चय किया कि यदि राकेश ने उसके ऊपर हाथ उठाया तो वह बर्दाश्त नहीं करेगी।बहुत सह लिया अब और नहीं।उसने दोबारा स्कूल जाना शुरू कर दिया।उधर अचानक ही दिल का दौरा पड़ने के कारण रोमा की मम्मी का निधन हो गया ।सबको आश्चर्य हो रहा था कि ये सब कैसे हो गया कभी कोई बीमारी भी तो नहीं थी उन्हें।लेकिन रोमा अच्छी तरह जानती थी कि मम्मी को उसकी चिंता दिन ब दिन खाए जा रही थी और इसी कारण से यह आकस्मिक दुर्घटना घटित हुई है।वह अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए मायके जाने लगी तो उसने राकेश को भी साथ चलने के लिए कहा। "अरे मैं वहां जाकर क्या करूंगा,तुम चली जाओ,"उसने बेरुखी से उत्तर दिया।रोमा ने मिन्नतें करते हुए कहा कि कम से कम तेरहवी के दिन तो अा जाना नहीं तो लोग क्या सोचेंगे? मैं भी क्या उत्तर दूंगी जब सब तुम्हारे न आने का कारण पूछेंगे। "हां ठीक है देखूंगा तुम जाओ।और हां कुछ पैसे देती जाओ,बस वाला मेरा रिश्तेदार नहीं लगता जो फ्री में तुम्हारे घर तक पहुंचाएगा।"उसने लापरवाही से उत्तर दिया।रोमा ने पर्स टटोला और पांच सौ रुपए का नोट निकालकर उसे देते हुए विनती की कि वह वहां जरूर अा जाए।राकेश ने लपक कर नोट थाम लिया ।उसके चेहरे पर चमक साफ दिखाई दे रही थी।खैर,सब कुछ समझते हुए भी लाचार रोमा मायके चली गई। तेरहवीं के दिन सुबह से ही वह राकेश की बाट जोह रही थी मगर उसे न आना था और न ही वह आया।रोमा का मन क्षोभ और गुस्से से भर गया ।आज पहली बार राकेश के साथ बने रहने और मम्मी की बात न मानने पर उसे ग्लानि हो रही थी। नफ़रत से उसका दिल जल उठा था।खैर,वापस लौटने पर उसने कोई बहस नहीं की लेकिन यह भी निर्णय किया कि अपनी मेहनत की कमाई को वह इस तरह शराब में भी नहीं बहने देगी।उसके जीवन का लक्ष्य केवल बेटी की अच्छी परवरिश और उसे आत्मनिर्भर बनाना होगा।लेकिन राकेश के मुंह में तो मानों खून लग चुका था।वह आए दिन पैसों की मांग करता रहता।
एक दिन जब वह घर लौटी तो देखा कि उसकी चेक बुक से कुछ चेक फटे हुए थे।उसका माथा ठनका।चेक उठाकर देखा तो उसमें उसके साइन बनाने का प्रयास किया गया था।वह समझ गई और तुरंत बैंक की ओर लपकी।वहां जाकर पता चला कि एक हजार रुपए का ट्रांजेक्शन किया गया था।उसने जब इस मामले की शिकायत करनी चााही तो बैंक कैशियर घबरा गया उसने अपनी गलती की माफी मांगते हुए यह स्वीकार किया कि उसने बिना गहनता सेेे जांच किए केवल इसलिए चेक पास कर दिया कि वह जानता थाा कि राकेश उसका पति है अक्सर उसने उसे रोमा के साथ आते जाते देखा था । उसने यह भी कहा कि यदि वह शिकायत करती है तो उसकी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी। उसने अपने बच्चोंं की दुहाई देते हुए एक बार फिर से माफी मांगी और दोबारा ऐसा नहीं होगा इस बात की गारंटी भी दी। उस दिन रोमा के सब्र का बांध टूट गया। शाम को नशे में धुत राकेश जब घर पहुंचा तो उसने अपनी पूरी भड़ास निकाल दी। बदले में राकेश ने भी उसे मारा पीटा और आराम से सो गया। रीमा रात भर रोती रही।आज तक उसने अपने घर पर यह नहीं बताया था कि राकेश उसके साथ मार पीट भी करता है लेकिन अगले दिन सुबह जब उसकी पड़ोसन ने उसके चेहरे पर नीले पड़ चुके निशान को देखा तो उसकी बेटी से पापा का नंबर पूछकर उसके घर पर ख़बर कर दी।रोमा के पापा और भाई तुरंत पहुंच गए।पापा ने उसकी ऐसी हालत देखी तो राकेश को खूब बुरा भला कहा।राकेश होश में नहीं था उसने कहा कि यदि इतना ही दुःख हो रहा है तो ले जाओ अपनी लाड़ली बेटी को।पापा ने कहा कि क्या तुम्हें अब भी यही लगता है कि मैं इसे इस नरक में तुम जैसे जानवर के साथ रहने दूंगा?रोमा की ओर मुखातिब होते हुए वे बोले,"तुम अभी हमारे साथ घर चलोगी,तुम्हारी मम्मी ठीक ही कहती थी कि ये तुम्हारे लायक नहीं है लेकिन मैंने ही उसकी बात नहीं मानी।अब मैं तुम्हें एक मिनट के लिए भी नहीं छोड़ सकता।अपनी और बिटिया का सामान पैक करो और चलो मेरे साथ।"लेकिन पापा...रोमा कुछ कहना चाहती थी कि पापा ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा,"लेकिन वेकिन कुछ नहीं , मैं जानता हूं कि तुम क्या सोच रही हो?यही न कि तुम हम पर बोझ नहीं बनना चाहती।एक बात मैं तुम्हें साफ़ साफ़ बता दूं कि बेटियां कभी अपने मां बाप पर बोझ नहीं होती हैं। विदाई तो सिर्फ इसलिए की जाती है क्योंकि उन्हें दूसरे का घर आंगन को सजाना सवारना होता है ।लेकिन यदि वहां उसकी कदर नहीं है तो किसी भी परिस्थिति में उसे वहां छोड़ते भी नहीं है ।वह जमाना गया जब लोग यह कहा करते थे की मां बाप के घर से डोली उठती है और पति के घर से अर्थी। अब मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूंगा चुपचाप बैग उठाओ और चलो।"रोमा कुछ न कह सकी। कहती थी क्या अब देखने सुनने को कुछ बचा भी नहीं था उसने कुछ कपड़े और अपनी शादी का एल्बम सूटकेस में रखा और बेटी को साथ लेकर मायके आ गई। राकेश को लगा कि दो-चार दिन का नाटक है उसके बाद रोमा चुपचाप घर वापस आ जाएगी ।लेकिन रोमा ने भी फैसला कर लिया था कि वह वापस उस घर में कभी नहीं जाएगी।पापा तो इतने गुस्से में थे कि वे राकेश के खिलाफ़ पुलिस में घरेलू हिंसा की रिपोर्ट दर्ज कराने जा रहे थे लेकिन रोमा के समझाने पर मान गए।अगले ही दिन पापा ने फैमिली वकील को घर बुलाया और कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल करने के लिए कहा।वकील ने कहा कि रोमा की इच्छा जानना भी बहुत जरूरी है कि वह क्या चाहती है।रोमा ने सहमति दे दी।
कोर्ट की तरफ से सम्मन भेजा गया तो राकेश ने उसे लेने से साफ मना कर दिया।उसने रोमा को फोन करके कहा कि उससे बहुत बड़ी गलती हो गई है।एक बार माफ़ कर दे दोबारा ऐसा नहीं होगा।जब रोमा ने इंकार किया तो उसने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया।उसने धमकी दी कि यदि वह वापस नहीं आएगी तो वह तेज़ाब डाल कर उसका हुलिया बिगाड़ देगा और बेटी को भी छीन लेगा।रोमा घबरा गई।पापा और वकील ने उसे समझाते हुए कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है वह कुछ नहीं कर सकता है। बेटी की लीगल कस्टडी तुम्ही को मिलेगी क्योंकि वह माइनर है। हां ,यह जरूर हो सकता है कि वह लोग घबरा रहे होंगे कि कहीं तुम प्रॉपर्टी क्लेम न करो इसी कारण से इस तरह की धमकियां दे रहे हैं ।बेटी की इतनी ही चिंता होती तो कब का सुधर गया होता। पापा ने स्पष्ट कर दिया कि मेरी बेटी को उनकी प्रॉपर्टी से एक फूटी कौड़ी भी नहीं चाहिए उसे तो केवल उस नरक से मुक्ति दिला दो।वकील ने आश्वस्त किया कि तब तो कोई अड़चन ही नहीं है,छह महीने के अंदर ही केस का फैसला हमारे पक्ष में हो जाएगा।हम लोग लिखित में दे देंगे कि हमें अचल संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं चाहिए। याचिका दायर होने के बाद रोमा को पेशी के लिए कोर्ट में जाना पड़ता था। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे कभी यह दिन भी देखने होंगे। अभी तक तो कोर्ट कचहरी केवल फिल्मों और टीवी कार्यक्रमों में ही देखती अाई थी,क्या मालूम था कि वास्तविक जीवन में भी इन सब से दो चार होना पड़ेगा।वकील ने उसे आश्वस्त किया था कि जज के सामने उसे केवल अंतिम सुनवाई के दौरान ही जाना पड़ेगा बाकी वह संभाल लेगा लेकिन कोर्ट तो आना ही पड़ेगा।चैंबर में बैठे बैठे वह बाहर ताकती जमीन जायदाद,हत्या,चोरी डकैती,दुराचार और जाने कितने मामलों में लिप्त अपराधी दिख जाते।मन खिन्न हो जाता और अपने आप से वह प्रश्न करती कि आख़िर उसने क्या अपराध किया था जो उसे अदालत का मुंह देखना पड़ा।प्यार ही तो किया था राकेश को,कोई गुनाह तो नहीं था जिससे शादी हुई उसे चाहना।लेकिन शायद यह गुनाह ही था उसे अपनी हदें पार करने देना,उसकी मनमानियों को नज़र अंदाज़ करना,उसके अत्याचार की सहना। प्यार तो अपनापन,सम्मान,परवाह दिलाता है। तिरस्कार,अपमान या उपेक्षा नहीं,और अगर ऐसा होता है तो वह कभी प्यार हो ही नहीं सकता।
अदालत से सम्मन भेजे जाने और समाचार पत्र में प्रकाशित कराने के बाद भी राकेश कोर्ट में हाज़िर नहीं हुआ।उसे किसी ने समझा दिया था कि यदि वह कोर्ट नहीं जाएगा तो किसी भी हालत में तलाक़ नहीं हो सकता है।बहरहाल छह महीने बाद रोमा को उसकी अंतिम सुनवाई के बाद तलाक की डिक्री मिल गई।उस दिन वह खूब रोई।जिस खोखले रिश्ते को बचाने के लिए इतने साल इतना कुछ सहा उसका पटाक्षेप हो चुका था।घरवालों ने भी उसे रोने दिया क्योंकि दिल का गुबार निकलना भी जरूरी था।शाम को जब वह अपने कमरे से बाहर निकली तो उसके चेहरे पर अजीब सी शांति दिखाई दे रही थी जैसे कि वह वास्तविकता को स्वीकार कर चुकी हो।उसने पापा से कहा कि वह कल से ही स्कूल ज्वाइन करना चाहती है अब वह ठीक है।पापा ने उसे गले लगा लिया।रोमा हमेशा की तरह स्कूल जाने लगी। जो राह उसने चुनी थी वह इतनी आसान नहीं थी।"तलाकशुदा" का लेबल लगने के बाद दुनिया का देखने का नजरिया ही बदल जाता है।उसके हंसने बोलने,पहनावे,जीने के तरीके सब पर लोगों की पैनी निगाह रहती है।उन्हें लगता है कि पति के बिना कोई औरत कैसे खुश रह सकती है और उसे भी यह एहसास दिलाने का भरपूर प्रयास किया जाता है कि अब उसे सजने संवरने,खुश रहने का कोई अधिकार नहीं है यदि वह ऐसा करती है तो पक्का ही किसी से उसके अनैतिक संबंध हैं। दुःख और आश्चर्य तो तब होता है जब ये छींटाकशी पुरुषों से ज्यादा महिलाएं करती हैं।पुरुष वर्ग तो केवल अवसर की तलाश में रहता है जिससे बचा जा सकता है लेकिन आत्मा को छलनी कर डालने वाली निगाहें और बातें सहन करना बहुत मुश्किल हो जाता है।रोमा भी इन सब से अछूती कैसे रह पाती? बाहर तो किसी प्रकार हिम्मत करके सामान्य होने का दिखावा कर लेती लेकिन घर आते ही फूट फूटकर रो पड़ती।उसका आत्मविश्वास खोता जा रहा था।पापा उसकी कश्मकश को समझ रहे थे।एक दिन उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और शांत भाव से बोले,"लगता है कि तुम्हें अपने फैसले से बहुत पछतावा हो रहा है।तुम कहो तो मैं राकेश से बात करूं।वैसे तुम्हें एक बात बता दूं कि मुझे लगा था कि शायद राकेश को अपने किए पर अपराध बोध हुआ हो,इसलिए मैंने उसके बारे में पता किया था लेकिन उसके रवैये में कोई परिवर्तन नहीं आया है।उसके साथ तुम्हारा कोई भविष्य नहीं है।फिर भी तुम अगर अपना फैसला बदलना चाहती हो तो मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा।" रोमा ने उत्तर दिया,"नहीं पापा मैं वापस नहीं जाना चाहती।"पापा ने कहा कि मुझे तुम्हारा उदास चेहरा अच्छा नहीं लगता है।तुम यदि खुद को नहीं संभाल पा रही हो तो बेटी को कैसे पालोगी? तुम्हें क्या लगता है कि लोगों की हरकतों के बारे में मुझे कुछ पता नहीं है,अरे लोग तो हमेशा से ऐसे ही हैं।जब कोई कष्ट में होगा तो झूठी सहानुभूति दिखाएंगे,पीठ पीछे मजे लेंगे और यदि कोई उस दुख से निकलने की कोशिश करेगा तो उसे हतोत्साहित करेंगे।तुम लोगों की परवाह करना छोड़ो,हम लोग हमेशा तुम्हारे साथ हैं।तुम अपनी नौकरी और बेटी पर ध्यान दो और हां,फिर से प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में मन लगाओ।आज के बाद मुझे तुम्हारे चेहरे पर उदासी नहीं दिखनी चाहिए।पापा की बातों से रोमा को बड़ी राहत मिली।उसने उनकी सलाह पर अमल करने का फैसला किया और परीक्षा की तैयारी में जुट गई।इस बीच राकेश के परिवार वालों ने उसे वापस ले जाने का बहुत प्रयास किया लेकिन सब व्यर्थ।राकेश ने भी एक अंतिम बार मिलने की इच्छा जताई तो वह मान गई। वह अपने शब्द जाल में फिर से फंसा लेना चाहता था किन्तु अब तक रोमा की आंखो पर उसके छद्म प्रेम का कुहासा छंट चुका था।उसने चाय की प्याली थमाते हुए कहा,"याद है आपको इसी चाय की प्याली से हमारे रिश्ते की शुरुआत हुई थी,आज इसी के साथ इसका अंत कर देते हैं।"राकेश ने कुछ कहना चाहा तो उसे बीच में ही रोकते हुए कहा," कहने सुनने लायक अब कुछ नहीं बचा,आपको याद होगा कि मैंने आपको पहले कई बार आगाह किया था कि आप मुझे इतना मजबूर मत कीजिए कि मैं आपको छोड़कर चली जाऊं,यदि ऐसा कभी हुआ तो मैं कभी लौटकर नहीं अाऊंगी।"राकेश निरुत्तर हो गया।उसने कातर दृष्टि से रोमा की तरफ देखा लेकिन अब उसका भ्रमजाल टूट चुका था।
रात करीब ग्यारह बजे फोन की घंटी बजी।रोमा के हैलो कहते ही दूसरी ओर से आवाज़ आई, प्रणाम दीदी,बहुत बहुत बधाई आपको।संविदा शिक्षक परीक्षा का परिणाम घोषित हो गया है और आपने बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए हैं।आपकी तो नौकरी पक्की अब तो बस इसी खुशी में मिठाई खिलानी पड़ेगी।"रोमा को अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था।पापा ने पूछा किसका फोन है तो उसने रिसीवर उनके हाथ में पकड़ा दिया।पापा को जब यह पता चला तो उन्होंने खुशी से रोमा को गले से लगा लिया।उनकी आंखों में आंसू छलक आए।रोमा ने जब इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि मुझे यह एहसास अंदर ही अंदर खाए जा रहा था कि मेरे कारण तुम्हारी ज़िन्दगी बर्बाद हो गई।काश मैंने तुम्हारी मम्मी की बात मान ली होती।लेकिन अब सब अच्छा हो जाएगा। मैं चैन से मर सकूंगा।रोमा ने माहौल को हल्का करने के लिए कहा देखो न पापा आपको मेरे पास होने पर इतना अफ़सोस हुआ कि आप मरने की बात करने लगे।पापा उसकी बात सुनकर हंस पड़े और बोले,आज मुझे अपनी वही पुरानी रोमा वापस मिल गई।घर पर सभी बहुत खुश थे।रोमा की पहली नियुक्ति उसके होम टाउन से पचासी किलोमीटर दूर,सीधी के एक हायर सेकेण्डरी स्कूल में हुई।परिवार से दूर अपने दम पर नए शहर में रहना,सोचकर ही उसके हाथ पांव फूल रहे थे लेकिन वह ज़िन्दगी के एक नए अनुभव के लिए तैयार थी।उसने इसे एक चुनौती के रूप स्वीकार किया और फिर पापा तो थे ही उसकी हिम्मत बनकर।अपने पुराने स्कूल को छोड़ते हुए उसे बुरा लग रहा था क्योंकि यही वह जगह थी जिसने उसके इस विश्वास को बनाए रखा था कि वह भी किसी लायक है वरना राकेश ने तो उसके आत्मनिष्ठा और उसकी पहचान छीनने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी।इसके साथ ही बच्चों से मिला सम्मान और अटूट स्नेह जो वह कभी भी भूल नहीं सकती थी।सभी ने मिलकर उसे भावभीनी विदाई दी और उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना भी की। उन को इस बात की खुशी थी कि सरकारी नौकरी से कम से कम जॉब सिक्योरिटी रहेगी और समय के साथ वेतन भी बेहतर होता जाएगा।इससे आर्थिक चिंता तो दूर हो ही जाएगी और रही अन्य बातें तो उसे भगवान पर ही छोड़ देना ही अच्छा होगा।अगले दिन ही जाकर उसने नौकरी ज्वॉइन कर ली।स्कूल का स्टाफ काफी बड़ा था।लेकिन जल्दी ही रोमा सब लोगों से घुल मिल गई पढ़ाने का अच्छा ख़ासा अनुभव तो उसे था ही सो बच्चों के बीच भी उसकी अच्छी छवि उभरकर सामने आई।संक्षेप में कहें तो रोमा को शहर भा गया।सीधे सादे मिलनसार लोग,ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं और शांत माहौल।यही तो चाहिए था उसे।हां,लेकिन उसका बीता कल यहां भी उसका पीछा नहीं छोड़ रहा था।चाहती तो सच्चाई छुपा लेती सबसे लेकिन उसने सोचा कि झूठ का सहारा कहीं उसे डरपोक न बना दे।सच्चाई प्रकट हो जाने का डर।उसने स्पष्ट कर दिया कि वह तलाकशुदा है।यह जानकर उसे लोगों की निगाहों में मिश्रित प्रतिक्रिया वाले भाव दिखाई दिए लेकिन जुबान खामोश थी।पीठ पीछे कुछ ने सहानुभूति दिखाई,बेचारगी व्यक्त की और कुछ ने तो यहां तक कह दिया कि जरूर इसी में कोई कमी रही होगी तभी तो इसके पति ने छोड़ दिया।वैसे देखा जाए तो ऐसी सोच रखने वालों की भी कोई गलती नहीं है क्योंकि उन्होंने वही कहा जो समाज की सामान्य सोच रहती है कि कोई औरत कैसे किसी आदमी को छोड़ सकती है,आदमी ही औरत का परित्याग कर सकता है। ख़ैर,अब रोमा पर ऐसे प्रश्न और ऐसी प्रतिक्रियाओं का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता था।धीरे धीरे आस पड़ोस के लोग भी उसके आचरण और स्वभाव से परिचित हो गए। घर से स्कूल और स्कूल से घर बस इतना सा रूटीन था उसका।सामान भी कुछ ज्यादा नहीं रखा था अपने पास।एक चारपाई,किराना का कुछ सामान,जरूरत के बरतन,कपड़े और हां मनोरंजन के लिए एक छोटा सा फिलिप्स का रेडियो।सप्ताह के प्रत्येक शनिवार अपने होम टाउन,अपनी बेटी से मिलने और सोमवार को फिर वापस।जिस दिन रोमा को आना होता उस दिन सुबह से ही पापा का फोन आना शुरू हो जाता जिसमें सफ़र को लेकर ढेर सारी नसीहतें होती।सीधी से रीवा बमुश्किल तीन घंटे का सफर था लेकिन रास्ता घुमावदार पहाड़ी से होकर जाता था साथ ही सड़क भी जगह जगह उखड़ी हुई थी। आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती थीं सो,पापा का चिंता करना स्वाभाविक भी था।पूरे सफ़र के दौरान हर दस मिनट में फोन करके पता करते रहते कि सब ठीक है कि नहीं और कहां तक पहुंची।बस के स्टैण्ड पहुंचने से पहले ही स्कूटी लेकर पहुंचे रहते।रोमा ने कई बार उन्हें समझाने की कोशिश की कि वे परेशान न हुआ करें।उसे घर तक पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं है मगर वो कहां मानने वाले थे।कहते,"जब तक ज़िंदा हूं कर लेने दो,फिर तो वैसे भी नहीं कर पाऊंगा।"रोमा नाराज़ हो जाती तो वे हंसकर कहते,"अरे पगली, मैं इतनी जल्दी नहीं मरने वाला।अभी तो मुझे अपने बच्चों को कामयाबी के शिखर तक पहुंचते देखना है।"
मार्च,2010 होली की छुट्टियों में सब अपने अपने घर जा रहे थे।रोमा भी बहुत खुश थी।पूरे दो दिन वह अपने घर पर बिताने वाली थी।स्टाफ के सभी लोगों को होली की अग्रिम शुभकमनाएं देकर वह रीवा अा गई।शाम से ही पापा कर तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी।हल्का बुखार और दस्त हो रही थी।होलिका दहन के लिए जब अंकल लोगों ने उन्हें बुलाया तो भाई ने मना किया कि जब आपकी तबीयत ठीक नहीं है तो क्यों जा रहे हैं? बिस्तर से उठते हुए वे बोले,"अरे थोड़ी बहुत सेहत तो खराब होती रहती है इसके लिए साल भर का त्योहार क्यों बिगाड़ा जाए और वैसे भी बच्चों की नज़र भी तो उतारनी है।" करीब दो घंटे बाद वे लौटे तो चेहरे पर पीड़ा के भाव थे।पूछने पर बताया कि ढोलक बजा देने के कारण हाथ में सूजन अा गई है।आराम करूंगा तो ठीक हो जाऊंगा।खाना खाकर वे सोने चले गए।दरअसल,पापा को फाग गाने( पारंपरिक होली गीत)और ढोलक बजाने का बेहद शौक था।लेकिन एक दुर्घटना में उनका हाथ फ्रैक्चर हो गया था और मम्मी ने अपनी कसम दी थी कि वे कभी ढोलक को हाथ नहीं लगाएंगे।इतने वर्षों तक उन्होंने इस कसम को निभाया भी लेकिन न जाने क्यों आज उन्होंने इसे तोड़ दिया।रोमा संभवत:इसका कारण जानती थी।उसने कई बार पापा को मम्मी की तस्वीर के सामने आंसू बहाते देखा था।वे मम्मी को बेहद चाहते थे और उन्हें बहुत मिस करते थे खासकर त्योहार के अवसर पर वे और भी भावुक हो जाते थे। अगली सुबह,अजीब सी बेचैनी भरी थी।जैसे कुछ अनहोनी सी होने वाली थी।भाभी और रोमा किचन में नाश्ता बना रही थी,बच्चे रंग गुलाल में व्यस्त थे।दीदी और जीजाजी आने वाले थे।भाई और पापा ने नाश्ता किया उसके बाद पापा अपने दोस्तों को फोन पर बधाईयां देने में व्यस्त हो गए।बीच बीच में कहते जा रहे थे कि ऐसा लग रहा है कि उन लोगों से फैक्टरी जाकर मिल अाऊं।वास्तव में मिलिट्री से रिटायरमेंट के बाद जब से उन्होंने फैक्टरी ज्वॉइन की थी उन्हें कभी भी होली पर छुट्टी नहीं मिली थी।ये पहली बार था कि वे घर पर थे।सुबह ही भाई ने पैर छूकर आशीर्वाद में उनसे ये वादा लिया था कि अब दिसंबर से नौकरी छोड़ कर आराम करेंगे।अब उनके बच्चे इस लायक हैं कि आर्थिक जिम्मेदारी भी उठा सकते हैं। पापा ने भी सहर्ष इस बात को स्वीकार कर लिया। नाश्ता करके वे होली मिलने के लिए निकल गए। रोमा भी फोन पर सहेलियों को बधाई देने में व्यस्त हो गई।दो घंटे के करीब बीते होंगे कि एक लड़के ने आकर सूचना दी कि आपके पापा पड़ोसी के यहां गाते गाते बेहोश हो गए हैं।भाई बद हवास सा दौड़ा चला गया। जीजाजी भी बाहर गए हुए थे।भाभी को बच्चों को संभालने के लिए कह रोमा और उसकी दीदी वहां पहुंचे तो पता चला कि पापा को अस्पताल ले गए हैं।वे दोनों उल्टे पांव लौटीं और घर पर जितना कैश था उसे लेकर अस्पताल जाने के लिए निकल पड़ीं।किंतु होली के हुड़दंग के चलते कोई साधन नहीं मिला।पता चला कि चाचाजी भी साथ में हैं तो आश्वस्त होकर दोनों लौट आईं। सभी उनकी सलामती की दुआ कर रहे थे लेकिन ईश्वर को तो कुछ और ही मंजूर था। पापा लौटे किंतु निष्प्राण।रोमा स्तब्ध भाव से उन्हें ताक रही थी।चेहरे पर वही चिर परिचित मुस्कान जैसे कह रहे हों कि मैं अब भी तुम्हारे पास हूं चिंता मत करना।लेकिन सच तो यह था कि अब वह बिल्कुल अकेली हो चुकी थी।इतना असहाय और तन्हा तो उसने तब भी महसूस नहीं किया था जब वह राकेश से अलग हुई थी।यद्यपि भाई का साथ था लेकिन जो संबल और हौसला पापा के कारण उसे प्राप्त होता था वह हमेशा के लिए खो चुका था। लोकाचार की समस्त क्रियाकलाप के समाप्त होने के बाद रोमा भारी मन से वापस सीधी लौट गई।बेटी को भी अपने साथ ले जाना चाहती थी लेकिन उसकी वार्षिक परीक्षाएं होने वाली थीं इसलिए छोड़कर जाना पड़ा।जब भी रोमा सीधी से रीवा आती तो उसे रास्ते भर पापा की बहुत याद आती।अब उसे बार बार कॉल करके कोई आवाज़ परेशान नहीं करती,कोई नहीं पूछता कि कितने बजे तक पहुंच जाओगी,स्कूटी लिए कोई उसका इंतजार नहीं करता।पापा के शब्द उसके कानों में गूंजते,"जब तक ज़िंदा हूं कर लेने दो,मरने के बाद तो वैसे भी नहीं कर पाऊंगा।" रोमा बिफर कर रो पड़ती ।इं आंसुओं को उसे खुद ही पोछना पड़ता।अब कोई भी तो नहीं था जो उसकी वास्तविक मनोदशा को समझ पाता।उसका रीवा आने का बिल्कुल मन नहीं करता लेकिन बेटी के लिए उसे आना पड़ता था।परीक्षा का परिणाम आते ही उसने बेटी का एडमिशन सीधी में ही करा दिया।
बेटी को अपने साथ ले जाने के बाद रोमा का रीवा आना बहुत कम हो गया।अब वह यदा कदा ही अर्थात विशेष अवसरों( तिथि, त्योहार) पर ही जाया करती थी।वह बेटी की परवरिश, स्कूल, कोचिंग और ट्यूशन में व्यस्त हो गई। धीरे धीरे उसका आत्मविश्वास भी वापस आने लगा।आस पड़ोस की महिलाएं जब उसे गप्पे मारने के लिए बैठाना चाहतीं तो वह हंसकर टाल देती।हां,कभी कभार थोड़ा बहुत हंसी मजाक कर लेती।पड़ोस में रहने वाले एक अन्य किराएदार जिन्होंने यह मकान दिलाने में उसकी सहायता की थी,उनके परिवार से रोमा का खासा लगाव था।भाभी और बच्चे उसे घर के सदस्य जितना ही मान दिया करते थे।उन्होंने जाने कितनी बार रोमा को मुश्किल घड़ी से निकाला था।दरअसल रोमा की बेटी जो उसकी जीने की एकमात्र उम्मीद थी, को अस्थमा की शिकायत थी जिसके कारण वह मौसमी परिवर्तन के दौरान अक्सर बीमार पड़ जा या करती थी।ऐसे में भाभी ही थीं जिनके संरक्षण में वह उसे छोड़कर निश्चिंत होकर स्कूल चली जाती थी।एक बार तो रोमा और उसकी बेटी दोनों ही चेचक की चपेट में आ गईं थीं।उस समय भाभी ने जी जान से उनकी सेवा और देखभाल की थी।रोमा भी उनके बच्चों पर जान छिड़कती थी।और कुछ ख़ास सहयोग तो वह कर नहीं सकती थी लेकिन पढ़ाई लिखाई में उसने भरपूर मदद की।समय व्यतीत होता गया।पंख लगाकर दस साल कैसे बीत गए पता ही नहीं चला।इस बीच रोमा की तीन घनिष्ठ मित्र भी बन गई जो उसी के साथ स्कूल में पढ़ाया करती थी। उन सभी से उसे भरपूर स्नेह और अपनापन मिला। कहते हैं न कि फूल के साथ कांटे भी होते हैं।जहां रोमा को अच्छे लोग मिले वहीं उसे अकेला जानकर कुछ लोगों ने अच्छाई का मुखौटा लगाकर उस पर बुरी नज़र भी डालने की कोशिश की लेकिन वह भी अनजान बनकर और सतर्क रहकर अपने आपको बचाती रही। जब बेटी बारहवीं पास करके उच्च शिक्षा के लिए इंदौर चली गई तो रोमा को अकेलापन महसूस होने लगा।घर बिल्कुल सूना हो गया था।दिन भर तो काम में बीत जाता लेकिन रात बड़ी लंबी जान पड़ती। टी वी,रेडियो भी उसके अकेलेपन को दूर न कर पाते।दूसरी समस्या यह थी कि उसने बड़े शहरों को लेकर बहुत से वहम पाल रखे थे जिसके कारण उसे बेटी की बड़ी चिंता रहती थी।कभी फोन न लग पाता तो इतना घबरा जाती कि उसका ब्लड प्रेशर लो हो जाता।तरह तरह के ख्याल आते कि क्या बात हो गई? कहीं तबीयत तो ख़राब नहीं हो गई?किसी मुसीबत में तो नहीं है?हॉस्टल का माहौल तो गड़बड़ नहीं है?और जाने क्या क्या विचार मानस पटल पर उमड़ते रहते।बेटी उसे समझाने का प्रयास करती तो बड़बड़ाने लगती,"तुम्हे क्या पता मां के दिल के बारे में?खुद मां बनोगी तो समझोगी।कोई जरूरत नहीं है मुझे फालतू के उपदेश देने की।"बेटी गहरी सांस भरकर मुस्कुराकर कहती, "मां,आपका कुछ नहीं हो सकता।ठीक है आप मेरी चिंता करिए लेकिन अपनी सेहत का भी ख्याल रखिए नहीं तो मैं टेंशन फ्री होकर कैसे पढ़ पाऊंगी?अच्छा चलिए एक काम करते हैं, मैं आपका फेस बुक अकाउंट बना देती हूं आप अपने पुराने स्टूडेंट्स से जुड़ेंगी तो आपको अच्छा लगेगा।""अरे नहीं मुझे नहीं जुड़ना सोशल मीडिया से।कितना कुछ तो निकलता रहता है समाचार पत्रों और दूरदर्शन पर इन सब के बारे में।"रोमा ने इंकार किया।लेकिन बेटी नहीं मानी और उसने व्हाट्स ऐप और फेस बुक अकाउंट बना दिया।वाकई एक दो महीने में ही करीब तीस चालीस बच्चों ने उसे ढूंढ़ निकाला।रोमा को भी प्रिय छात्रों से बातें कर उनका हाल चाल जानकर बहुत खुशी हुई।ऑन लाइन स्थानांतरण नीति के तहत रोमा का ट्रांसफर रीवा के लिए हो गया तो उसने वहां ज्वॉइन करने का फैसला किया क्योंकि बेटी के जाने के बाद सीधी में उसका मन बहुत अधिक नहीं लग रहा था।ऊपर से सीधी तक ट्रेन सुविधा न होने के कारण बेटी को भी वहां पहुंचने के लिए अतिरिक्त सफ़र करना पड़ता था।जब पड़ोसियों और सहेलियों को यह पता चला कि रोमा ने स्थानांतरण के लिए आवेदन किया है तो वे बहुत दुःखी और नाराज़ होकर बोले आखिर आपको यहां क्या कष्ट है? रीवा मेंं भी तो मायके वालों के अलावा कोई है नहीं और अचल सम्पत्ति का कोई झंझट भी नहीं है आप हमेशा के लिए यही क्यों नहींंं रह जाती हैं? रोमा उनके अपनेपन से भरे आग्रह का कोई उत्तर न दे पाई केवल इतना ही कह सकी कि जाना जरूरी है। सभी ने उसे भावभीनी विदाई दी।उनके साथ बिताए सुनहरे पलों की यादें समेटे वह रीवा अा गई।वह पूरे दस साल बाद अपने शहर लौट अाई थी। वही शहर जिसने उसे ढेर सी अविस्मरणीय यादों के साथ विदा किया था।ऐसी यादें जिन्हें वह चाहकर भी भुला न पाई थी, ताज़ा हो गई थीं।कुछ समय तो बढ़िया बीता क्योंकि भाई और बहन का परिवार भी साथ में था। स्कूल और बच्चों के साथ समय बड़े आराम से बीत रहा था लेकिन साल भर बाद उन दोनों का परिवार नए घर में शिफ्ट हो गया जो इस घर से बहुत दूर था।रोमा का समय काटे नहीं कटता था।ट्यूशन भी नहीं ले रही थी।अकेलेपन से परेशान होकर उसने कलम उठा ली और मन में उपजे विचारों को कागज़ पर उके रना शुरू कर दिया। उसका अधिकांश खाली समय लेखन कार्य और फेस बुक पर बीतने लगा।कुछ रचनाएं फेस बुक पर भी पोस्ट की जो लोगों को पसंद आई। एक भूतपूर्व छात्र ने उसे कहा कि आप अपनी रचनाएं समाचार पत्र और मैगजीन में भी छपने के लिए भेजें जिससे कि वह अधिक से अधिक पाठकों तक पहुंच सके।उसने हंसते हुए कहा,"अरे बेटा, मेरी रचनाएं पेपर में छपने लायक नहीं है वह तो मन के भाव हैं जो किसी से व्यक्त न कर पाने के कारण मैं कागज पर उतार देती हूं पेपर में छपने के लिए तो राइटिंग में क्वालिटी का होना बहुत जरूरी है।"वे तुरंत बोला," आप रचनाएं तो भेजिए यह संपादकों को तय करने दीजिए कि वह छपने लायक हैं या नहीं? मैं आपको कुछ ईमेल आईडी दे रहा हूं उन पर अपनी रचनाएं मेल कर दीजिए फिर देखिए क्या होता है?"उसके कहने पर रोमा ने अपनी एक कविता उसकी दी गई आईडी पर भेजी और आश्चर्य की बात तो ये की लगभग सभी समाचार पत्रों ने उसे छापा भी।रोमा को एक नई दिशा मिल गई। उसने अपने जीवन के खट्टे मीठे अनुभवों को कविताओं और कहानियों का रूप देना शुरू कर दिया।इसके अतिरिक्त फेस बुक के माध्यम से उसके जीवन में आए कुछ तथाकथित मित्र भी उसकी कहानियों के पात्र बने जो दोस्ती के नाम पर अपना उल्लू सीधा करना चाहते थे अथवा आदर्शों की बातें करके उसके करीब आना चाहते थे।ऐसा ही एक शख़्स था रोहन।वह पूना में रहता था और उम्र में रोमा से बहुत छोटा था।उसकी आवाज़ में अजीब सी कशिश थी। न चाहते हुए भी रोमा उसकी ओर खिंची चली जा रही थी।उससे बातें करना उसे अच्छा लगने लगा था।उसके फोन का उसे इंतजार रहने लगा था।सामान्य हाल चाल पूछने से शुरु हुई बातें धीरे धीरे एक दूसरे के शौक,नौकरी व निजी मामलों तक पहुंच गई।रोमा को एक ऐसे दोस्त की तलाश थी जिससे वह अपने मन की वे सारी बातें कह पाती जिसे वह अपनी बेटी से शेयर नहीं कर पाती थीं।रोहन में उसे वही दोस्त नज़र आने लगा था।उसका केयरिंग नेचर,उसकी परवाह,बेटी के लिए उसके विचार आदि रोमा को प्रभावित कर रहे थे लेकिन महज एक महीने की जान पहचान में उसका रोमा से मिलने की ज़िद करना और यह कहना कि किसी को पता नहीं चलेगा, उस नागवार लगा।वह समझ गई कि यह भी औरों की तरह मौकापरस्त है जो केवल उसके अकेलेपन को भुनाना चाहता है।उसने उससे बातचीत का सिलसिला वहीं रोक दिया।यह दूसरी बार था जब वह जी भरकर रोई थी।उसे लगने लगा कि इस पूरी दुनिया में सब राकेश और रोहन जैसे लोग ही हैं जो केवल भावनाओं से खिलवाड़ करना जानते हैं। फ्लर्ट करने और दूसरे विवाह में उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी और न ही वह किसी के हाथ का खिलौना बनना चाहती थी।हां,लेकिन आज भी उसकी सच्चे दोस्त की तलाश जारी थी। कुछ महीनों तक मन बहुत क्षुब्ध रहा फिर धीरे धीरे वह सामान्य होकर अपनी नौकरी और लेखन में व्यस्त हो गई।समय अपनी गति से चलता रहा। एक बार किसी पेपर के संपादक का ग्रुप में एक बधाई संदेश आया जिसमें कुछ तकनीकी शब्दावली में तारीफ़ की गई थी।उसे जब इसका अर्थ समझ में नहीं आया तो मैसेज के माध्यम से अर्थ समझाने की विनती की।बदले में एक वॉइस मैसेज प्राप्त हुआ जिसमें विस्तार से जानकारी दी गई थी। रोमा ने धन्यवाद दिया और बात अाई गई हो गई।कुछ दिनों बाद किसी लेखन प्रतियोगिता की जानकारी के सिलसिले में पहली बार उससे फोन पर बात हुई। आवाज़ में चुलबुलाहट और बातों में गंभीरता, कुछ अलग सा दिलचस्प व्यक्तित्व जान पड़ा वह। बेफ़िक्री और बिना किसी लाग लपेट के विभिन्न मुद्दों पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त करना और उतनी ही तन्मयता से जिम्मेदारीपूर्वक अपना काम करना। रोमा के मन में उसके बारे में जानने की इच्छा बढ़ने लगी। बातों बातों में उसे यह एहसास हुआ कि उसका दुनिया को देखने का नज़रिया,रिश्तों की समझ और उनका किस तरह से यथोचित सम्मान करना,ज़िन्दगी के प्रति सकारात्मक सोच,साहित्य में रुचि और रुझान काफी हद तक उसके जैसा ही था।दोनों के बात करने का सिलसिला बढ़ता जा रहा था।एक दूसरे की बातों में इतना खो जाते कि समय का ध्यान ही नहीं रहता।हालांकि यहां भी दोनों की उम्र में काफी अंतर था।लेकिन कहते हैं न कि यदि विचार और भाव मिल जाएं वहां उम्र की सीमा नहीं रह जाती है।बचकानी हरकतें करना,एक दूसरे को किसी न किसी बात पर चिढ़ाना,लेखन की विषय वस्तु पर चर्चा करना,खान पान के बारे में पूछना,एक दूसरे की खुशियों का ध्यान रखना,पुराने गीत, ग़ज़लें सुनना सुनाना जैसी गतिविधियां उनकी बातचीत के हिस्सा थे।"राज",हां;यही तो नाम था उसका,बहुत अच्छा गाता था।रोमा अक्सर उसके गायन में खो जाया करती थी लेकिन जब वह पूछता कि कैसा लगा तो उसे चिढ़ाने के लिए कह दिया करती," हूं,ठीक ठाक गा लेते हो"और ज़ोर से हंस पड़ती।वह चिढ़कर कहता,बेसुरी तो तुम हो और उल्टा मुझे कहती हो।एक दूसरे की टांग खींचना बस यही हरकतें उनके रिश्ते की जान थी।राज से बातों के दौरान रोमा यह भूल जाती कि उनके बीच उम्र की इतनी बड़ी खाई है।लेकिन जब भी अकेले में इस बात का ध्यान आता तो जाने क्यों, घबरा जाती।घबराहट इस बात की कि जब राज की अपनी दुनिया बस जाएगी तो क्या तब भी वह उसे इतना ही समय दे पाएगा,शायद नहीं। इसी उधेड़ में उसने फैसला किया कि धीरे धीरे वह राज से बातें करना कम कर देगी। रोमा के इस बदले रवैए को भांपते हुए उसने इसका कारण पूछा तो थोड़ी बहुत आनाकानी के बाद रोमा ने उसे अपने मन की शंका बता दी।सुनकर राज ने हंसते हुए कहा,अरे पगली तुम मेरी एक प्यारी सी बहुत अच्छी मित्र हो और मित्रता जैसे पवित्र रिश्ते में कभी भी दरार नहीं आएगी। स्कूल में अर्धवार्षिक परीक्षाओं के चलते रोमा कुछ व्यस्त हो गई और कुछ दिनों तक वह राज को इतना समय नहीं दे पाई जितना कि पहले देती थी। फलस्वरूप राज कुछ उखड़ा उखड़ा रहने लगा।उसका किसी काम में मन नहीं लगता था।वह रोमा को डिस्टर्ब भी नहीं करना चाहता था और उससे बात किए बिना बेचैन भी रहता था।उसी के ऑफिस में शर्मा जी काम करते थे जो राज को बालपन से जानते थे। उन्होंने राज की बेचैनी को भांपते हुए कारण पूछा तो राज ने उदास मन से रोमा से बात न कर पाने का क्षोभ व्यक्त किया ।शर्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा,"अरे, तो इसमें क्या दिक्कत है? यदि वह काम के चलते बात नहीं कर पा रही हैं तो तुम ही कॉल क्यों नहीं कर लेते?" शायद इस बेचैनी का सबब वे समझ गए थे लेकिन राज के मुंह से सुनना चाह रहे थे।लेकिन सम्भवतः राज को इस बात का दूर दूर तक कोई एहसास नहीं था कि वह रोमा को अनजाने में ही सही मगर चाहने लगा है। उसका किसी काम में मन नहीं लग रहा था।दरअसल राज के जीवन में अंकिता नाम की लड़की थी जिसे वह बहुत चाहता था वह भी राज को पसंद करती थी।दोनों एक दूसरे से विवाह भी करने वाले थे।किंतु अंकिता के परिवार वाले अंतरजातीय विवाह के लिए सहमत नहीं हुए।अंकिता ने भी पारिवारिक दबाव के चलते अपने कदम पीछे खींच लिए। इस प्रकार से उनकी प्रेम कहानी अपने सुखद अंजाम तक नहीं पहुंच पाई।तब से लेकर अब तक किसी ने राज को इतना अधिक प्रभावित नहीं किया था जितना कि रोमा ने।वह अपने दिल की सभी बातें,विचार,सुख दुःख रोमा से सांझा किया करता था।उसके साथ रहकर वह अपने अधूरे प्रेम के दंश से उभरने लगा था। ये सच था कि वह कभी अंकिता की यादों को अपने दिल से नहीं भुला सकता था,वह उसका पहला प्यार जो थी।किंतु यह भी सत्य है कि केवल किसी की यादों के सहारे पूरा जीवन गुज़ार देना कोई सरल काम नहीं है।बहरहाल,राज अपनेआपसे इसी सच्चाई को झुठलाने में लगा था कि उसे भी किसी के साथ की जरूरत है।वह इस बात से भी अनभिज्ञ था कि रोमा उसके लिए क्या मायने रखती है?लेकिन अब जब बीते कुछ दिनों से उसकी रोमा से बात नहीं हो पा रही थी तब उसे इस बात का एहसास हुआ कि वह अनजाने में ही उसके जीवन का अहम हिस्सा बन चुकी है। शर्मा जी की मुस्कुराहट ने भी बहुत कुछ समझा दिया था।
राज जल्द से जल्द रोमा को यह बता देना चाहता था कि वह उसके बारे में क्या अनुभव करता है,उसे कितना चाहता है ।लेकिन इस उलझन में भी था कि रोमा उसके बारे में क्या सोचती है?कहीं ऐसा न हो कि मेरे मन की बात जानने के बाद कहीं वह दोस्ती भी खत्म न कर दे।जब उसने अपनी यह शंका शर्मा जी से जाहिर की तो उन्होंने राज को समझाते हुए कहा कि दिल की भावना को यूं छिपाना ठीक नहीं है और वैसे भी रोमा भी तो अकेली ही है उसे भी तो एक साथी की जरूरत है फिर चाहे वह इस सच को स्वीकार करे या न करे।हो सकता है कि तुम्हारी तरह उसे भी इस प्यार का एहसास न हो।वही एहसास तुम उसे दिलाओ। शर्मा जी की बातें सुनकर राज ने साहस जुटाया और मन ही मन यह फैसला किया कि वह आज शाम को ही रोमा से अपनी चाहत का इजहार कर देगा।फोन पर शाम को मिलने का समय और जगह तय की गई।राज बेसब्री से शाम होने का इंतजार कर रहा था लेकिन आज जैसे समय आगे बढ़ ही नहीं रहा था। वह एक घंटा पहले ही पहुंच गया।रोमा भी तय समय पहुंच गई।राज ने रोमा की पसंदीदा अदरक वाली चाय ऑर्डर की और कुछ स्नैक्स भी।चाय की चुस्कियों के साथ दिन भर के क्रियाकलापों के बारे में बात करते हुए अचानक ही उसने अपने प्यार का इज़हार करते हुए उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया।राज के इस प्रस्ताव को सुनकर रोमा हतप्रभ रह गई और बिना कोई उत्तर दिए चुपचाप वहां से चली गई।घर पहुंचकर पर्स एक तरफ रखते हुए सोफे पर धम्म से बैठ गई।जीवन में ऐसा मोड़ भी आएगा उसने सोचा नहीं था।"राज को तो उसने अपने अतीत के बारे में सब कुछ बता दिया था।उसे उसकी बेटी और उन दोनों के उम्र के फासले के भी बारे में अच्छी तरह से पता है।फिर उसके मन में ऐसे विचार कैसे अा गए?", गहरी सोच में पड़ गई थी वह।तभी मोबाइल की घंटी बजी।देखा तो राज की कॉल थी।रोमा को समझ नहीं आ रहा था कि वह उसे कैसे समझाए कि यह सब ठीक नहीं है लेकिन समझाना तो पड़ेगा ही,यह सोचकर कॉल रिसीव की।"देखो रोमा प्लीज़ नाराज़ मत होना,मैंने तो तुमसे केवल अपने दिल की बात की थी यदि मैं तुम्हें पसंद नहीं हूं तो कोई बात नहीं है।"उधर से आवाज़ अाई।बिना कोई उत्तर दिए,उसने फोन काट दिया और सोचने लगी,"क्या वाकई राज उसे पसंद नहीं है या केवल दुनिया के डर से वह इस सच को स्वीकारने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है कि वह भी राज को उतना ही पसंद करती है।"राज से बातें करना,उसकी अजीबोगरीब हरकतों पर खिलखिलाकर हंस पड़ना,उसके कॉल का इंतजार करना,उसकी फिक्र करना, यह सब प्यार नहीं तो क्या है?लेकिन यह भी सच था कि दुनिया इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेगी। अगले सुबह राज उससे मिलने घर पहुंचा। रोमा ने उसे वास्तविकता से परिचित कराने का प्रयास किया।किंतु राज इसी बात पर अड़ा था कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए क्या फीलिंग्स हैं?सच बता दो।जब रोमा ने अपनी उलझन उसके सामने रखी तो वह नाराज होते हुए बोला कि मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि लोग क्या कहेंगे। मैं तो सिर्फ तुम्हारे दिल की बात जानना चाहता हूं।रोमा चाहकर भी इंकार नहीं कर सकी।लेकिन उसने यह भी कहा कि वह उससे शादी नहीं कर सकती है।राज ने जब इसकी वजह पूछी तो उसने स्पष्ट किया कि वह अपनी बेटी को सौतेले पिता का दंश नहीं झेलने देना चाहती है।वह ऐसी कई घटनाओं से परिचित है जहां बेटियां अपने सौतेले पिता के दुर्व्यवहार का शिकार हुई हैं।राज ने जब रोमा के इंकार का यह कारण जाना तो वह बोला कि यदि मनाही की वजह यह है तो वह तब तक इंतजार करने को तैयार है जब तक कि उसकी बेटी की शादी नहीं हो जाती है।अब तो कोई दिक्कत नहीं है?रोमा एकटक राज को देखती रह गई।"क्या वाकई मैं भी किसी के जीवन में इतनी अहमियत रखती हूं?" सोचकर उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े।राज को मना करने की कोई वजह ही नहीं बची थी।उसने सहर्ष अपनी सहमति व्यक्त कर दी। रोमा और राज दोनों के लिए शर्मा जी भी बहुत खुश थे।रोमा को अब हर रोज शाम का इंतजार रहने लगा कि कब राज ऑफिस से लौटेगा और उससे बातें करेगा।वह प्यार के उस सुनहरे एहसास को जी रही थी जिसके सपने उसने बरसों पहले देखे थे।वह उस खुशी को महसूस कर रही थी जो जाने कब की उसे छोड़कर चली गई थी।राज से होने वाली प्यार से सराबोर बातें उसे एक अलग ही दुनिया में लेे जाती जहां सिर्फ़ खुशियां ही खुशियां थीं। उधर राज भी चहकने लगा था।लेकिन कहते हैं न कि कभी कभी हमें अपनी ही नज़र लग जाती है।
पिछले कुछ दिनों से रोमा को सीने में हल्का दर्द हो रहा था जिसे वह नजरअंदाज कर रही थी।उसने राज और अपनी बेटी को भी इस मामले में कुछ नहीं बताया।एक दिन तकलीफ बढ़ने पर वह अपनी सहकर्मी मित्र के साथ डॉक्टर के पास गई।डॉक्टर ने सोनोग्राफी के लिए कहा और बाकीे की दवाइयां बाद में लिखने की बात कहते हुए कुछ दवाइयां लिख दी।अगले दिन रिपोर्ट लेकर जब डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि सीने के बाईं ओर एक गांठ है जो चिंता का विषय है।तुरंत ऑपरेशन करना पड़ेगा।रोमा को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?कहीं ऑपरेशन के दौरान उसे कुछ हो गया तो उसकी बेटी का क्या होगा? यह सोचकर ही उसे घबराहट हो रही थी।साथ ही वह राज से दूर होने के ख्याल से ही कांप उठी।कैसे बता पाएगी वह राज को इस बारे में,लेकिन बताना तो होगा ही।इसी उधेड़बुन में वह घर पहुंची तो देखा कि राज उसका इन्तज़ार कर रहा था।वह दौड़कर उससे लिपट गई।रोमा जो आज तक हाथ मिलाने से भी सकुचाती थी उससे इस तरह गले लग रही थी।राज ने धीरे से उसे अलग किया और हाथ से उसका चेहरा उठाते हुए बोला,"क्या बात है?"रोमा एक बार फिर उससे लिपट गई और फूट फूटकर रोते हुए बोली, "मैं तुमसे जुदा नहीं होना चाहती हूं मुझे तुम्हारे साथ ज़िन्दगी जीना है।मुझे तुम्हारे लिए ,अपनी बेटी के लिए ज़िंदा रहना रहना है।राज ने उसे चुप कराते हुए पूरी बात बताने के लिए कहा।रोमा ने रिपोर्ट दिखाते हुए राज को सारा किस्सा बयां कर दिया।बात वाकई गंभीर थी।रिपोर्ट देखकर राज भीे एक पल के लिए घबरा गया लेकिन फिर अपने आपको संभालते हुए बोला कि चिंता की कोई बात नहीं है सब ठीक हो जाएगा।हां,बेटी को परेशान करने की कोई जरूरत नहीं है उसकी परीक्षाएं चल रही है। मैं तुम्हारे साथ हूं। रोमा को तो यह कहकर उसने तसल्ली दे दी थी लेकिन वास्तविकता तो यह थी कि वह स्वयं बहुत अधिक घबराया हुआ था आखिर भगवान ने उसके साथ ऐसा क्रूर मजाक क्यों किया? वह पहले ही एक बार अपने प्यार को खो चुका था दूसरी बार नहीं खोना चाहता था।उसने अपने संपर्क सूत्रों से एक प्रसिद्ध सर्जन का पता खोज निकाला जिसे इस तरह के ऑपरेशन करने में महारत हासिल थी ।यद्यपि खर्च कुछ अधिक था लेकिन उसे इस बात की कोई परवाह नहीं थी वह तो केवल रोमा को सही सलामत देखना चाहता था। ऑपरेशन के वक्त दिए गए फॉर्म में साइन करते समय राज के हाथ कांप रहे थे उसमें लिखा था कि यदि पेशेंट को कुछ भी होता है तो डॉक्टर की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी रोमा जी भर कर राज को देख लेना चाहती थी फिर क्या पता वह उसे दोबारा देख पाए या नहीं? राज बमुश्किल अपने आंसू छिपा पा रहा था। शर्मा जी ने ढांढस बंधाते हुए कहा," सब ठीक हो जाएगा ईश्वर इतना क्रूर नहीं हो सकता है ।"राज उनसे लिपट कर रो पड़ा। लगभग 5 घंटे तक ऑपरेशन चला। राज टकटकी लगाकर ऑपरेशन थिएटर के बाहर के लाल बल्ब के हरा होने का इंतजार कर रहा था। जैसे ही डाक्टर बाहर निकले वह लपक कर उनके पास पहुंच गया ।डॉक्टर के चेहरे पर मुस्कान थी उसने राज के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा चिंता की कोई बात नहीं है ऑपरेशन सफल रहा। हां ,लेकिन लगभग साल भर गहन देखभाल की जरूरत है और मुझे पता है कि तुम कोई कसर बाकी नहीं रखोगे। रोमा को जब होश आया तो उसने राज को अपनी आंखों के सामने पाया उसे यह यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह मौत के मुंह से वापस लौट आई थी।उसे पुनर्जीवन देने वाला उसके सामने खड़ा था। दोनों एक दूसरे को अपलक देख रहे थे। दोनों की ही आंख में आंसू थे।अंततः रोमा के जीवन की एक नई किंतु सुखद यात्रा का शुभारंभ हो गया था जिसमें राज उसका हमसफ़र था।
प्रेषक: कल्पना सिंह
पता: आदर्श नगर ,बरा ,रीवा ( मध्य प्रदेश)
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