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लघुकथा कशमकश kashmkash

लघुकथा

            कश्मकश

             
          " मुझे यह बेबी  नहीं चाहिए। मेँ एबॉर्शन करवाना चाहती हूँ।" पत्नी ने अपने पति से कहा।
         "पर क्यों?यह हमारी पहली संतान है। तुम ऐसा -  वैसा कुछ भी नहीं करोगी ।समझी तुम ।" पति  ने थोड़े क्रोध से कहा।
      "क्यों कि यह बेबी मेरे अंदर पल रही है।यह मेरा शरीर है ।इस पर मेरा हक है ।मेँ चाहे जो  करूँ?  कह दिया न मुझे यह बेबी नहीं चाहिए।" पत्नी  ने पूरी दृढ़ता पूर्वक कहा।
          "  कैसी औरत हो तुम?हर माँ अपने बच्चे को बचाना चाहती है और तुम हो कि अपने बच्चे को गर्भ में मार डालना चाहती हो। छि! तुम्हें तो  माँ कहते हुए मुझे शर्म आ रही है।" पति ने क्षोभ से कहा।
         "हाँ,तुम्हें  तो शर्म आनी ही चाहिए क्यों कि अगर मेरे गर्भ में यह संतान लड़की हुई तो जैसे ही यह गर्भ से बाहर आएगी । न जाने कितने पुरुषों की  भेड़िये जैसी नजरें इस पर गड़ जायेगी और अगर यह संतान लड़का हुआ तो क्या तुम उन भेड़ियों जैसे पुरुषों की मानसिकता  बदल पाओगे? इससे  तो अच्छा है कि कोई संतान ही जन्म न ले । " यह कहती हुई  पत्नी रोने लगी।
       पति ने पत्नी को समझाते हुए कहा-" अगर तुम्हारी जैसी मानसिकता हर औरत की  हो जायेगी तो इस धरती  पर संतान कैसे जन्म लेंगे। तुम अपनी सोच बदलो।"
        "हाँ, यही तो मैं कह रही हूँ। बहुत हुआ लड़कियों पर अत्याचार, बलात्कार। अब पुरुषों की सोच को बदलना होगा। नहीं तो हमारे समाज में गर्भ में लड़कियों को मारने का  सिलसिला शायद कभी समाप्त नहीं होगा। अगर लड़की हुई  तो बोलो क्या तुम उसकी रक्षा कर पाओगे?" 
        यह कहती हुई पत्नी सिसकने लगी।
       पति भौचक्का सा पत्नी को देखने लगा और सोचने लगा कि  वाकई अब समय आ गया है कि  बेटियों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस कदम उठाया जाए और बेटों को लड़कियों  के सम्मान का संस्कार  हर घर में दिया जाए। पति ने मन ही मन निश्चय किया कि अगर बेटी हुई तो पूरे जी जान से उसकी सुरक्षा करेगा ।

            डॉ. शैल चन्द्रा
            रावण भाठा, नगरी
             जिला- धमतरी
             छत्तीसगढ़
             

1 comment:

  1. मां की पीड़ा को प्रस्तुत करती रचना...
    सच में पुरुष समाज को अपनी सोच बदलनी चाहिए...
    बहुत सुंदर रचना मैम..
    🙏🙏🙏

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