सवाल पूछना बहुत जरूरी है।
सवाल के घेरे में प्रकृति की हर वस्तु आ सकती है यदि आपका नज़रिया जवाब पा कर अपने ज्ञान की क्षुधा शान्त करने का हो। सवाल करना मनुष्य होने की कई शर्तों में से एक परम आवश्यक शर्त है। कोई निर्जीव,कोई पशु या कोई रोबोट में परिवर्तित हुआ मानव कभी सवाल नहीं पूछ सकता। सवाल पूछ कर मनुष्य एक बार को दूसरों की नज़र में कम अक्ल हो सकता है,लेकिन अपनी नज़र में कभी भी वह अनभिज्ञ नहीं महसूस कर सकता। सवाल करने से ही पहले खुद में निहित और फिर समाज और राष्ट्र में निहित बुराइयों से पार पाया जा सकता है। यदि हर मनुष्य रात को सोने से पहले खुद से 10 मिनट यह सवाल करे कि दिन भर में उसने कितनी गलतियाँ कि हैं और वो गलतियाँ किस तरह फिर से नहीं दुहराई जा सके तो समयोपरांत एक बेहतर मनुष्य में खुद को परिणत होते हुए महसूस किया जा सकता है। अन्धकार से प्रकाश में ले जाने वाले को गुरु =गु (अंधकार )+रू (दूर करने वाला ) इसलिए कहते हैं क्योंकि वो हमें सही सवाल करना सिखलाते हैं। जितनी भी महान सभ्यताएँ हुई है ,उन सब में एक गुण जरूर समान रहा है,वह है -वाद -विवाद ,व्याख्या और सवाल करने की संस्कृति। रोम में प्लेटो ,अरस्तू,सुकरात तो चीन में कन्फ्यूसियस ,भारत में गौतम बुद्ध ,परमहंस,विवेकानंद ,महात्मा गाँधी ने सवाल की संस्कृति को बढ़ावा दे कर इन राष्ट्रों को महान राष्ट्र की गिनती में लाकर खड़ा कर दिया। एक हांड-मांस और अर्धनग्न महात्मा ने एक मजबूत उपनिवेशवादी आतातायी देश से उसके गलत शासन को लेकर प्रश्न खड़ा किया और परिणाम यह हुआ कि आज उस महात्मा का देश हर क्षेत्र में अग्रगणी राष्ट्रों की कतार में खड़ा है। और जिस देश में सवाल करने की कला को दबाया गया वहाँ हिटलर ,मुसोलिनी ,ईदी अमिन ,स्टालिन जैसे तानाशाह हुए जिन्होनें पूरे संसार को अपनी क्रूर नीतियों से, जो कि वहाँ के लोगों के प्रश्न करने शक्ति को दबाकर उत्पन्न किया गया, झंकझोड़ कर रख दिया। एक घर में अगर कोई बच्चा अपने बड़ों के डर से या स्कूल में अपने शिक्षकों के डर से या आगे चलकर देश में राजनीतिक व्यवस्था को लेकर सवाल पूछने से हिचकता है तो वह स्वयं के साथ समाज और राष्ट्र को भी रूग्णता की ओर ले जाने का दोषी बनता चला जाता है। सवाल करने और फिर उस सवाल के जवाल से उत्पन्न हुए द्वंद्व से फिर सवाल करना एक बौद्धिक सफर का परिचायक है। आप सवाल करेंगे तभी आप अपने अधिकारों को जान पाएँगे , जिन लोगों ने आपके अधिकार को दबा रखा है , उनको अपने अधिकार देने को मजबूर कर सकेंगे। सवाल ने कितने ही तानाशाहों को जड़ से उखाड़ फेका है चाहे वो सवाल पूछने वाले भारत में जयप्रकाश नारायण हो या अमेरिका के मार्टिन लूथर किंग हो या अफ्रीका के नेल्सन मंडेला हो या बांग्लादेश के शेख मुजीबुर्रहमान हो ।" तुमसे पहले जो यहाँ तख्तनशीं था
उसको भी खुद के खुदा होने पे इतना ही यकीं था "
और यह गलत यकीन सिर्फ सवाल खड़े करके ही दूर किया जा सकता है।
हर गणतंत्र और उसी तरह हमारे देश में भी जनता के सवाल पूछने के लिए संसद की व्यवस्था की गई है जो हमें यह सिखलाते हैं कि कैसे और किस -किस तरह के सवाल किए जा सकते हैं। अगर हम सवाल पूछना छोड़ देंगे तो वर्तमान की गति थमती चली जाएगी और भविष्य ,भूतकाल से भी पीछे चला जाएगा। जो भी सवाल करता है वह कम से कम एक वैचारिक मनुष्य, जिम्मेदार नागरिक तथा बौद्धिक सामाजिक प्राणी होने का कर्तव्य अवश्य निभा रहा है। अतः सवाल जरूर करें, हर एक से सवाल करें, हर चीज़ पर सवाल करें और हर हाल में सवाल करें। सवाल करना एक दिन आपको जरूर जागरूक और हिम्मतवर इंसान बना देगा। सवाल करना हर एक के वश की बात नहीं और वह भी कठिन और दुरूह सवाल करना। पर सवाल नहीं करेंगे तो आपके दब्बूपन होने का हर मौक़ा मजबूत होता चला जाएगा। इसलिए बेहतर है सवाल पूछते रहें और डरे नहीं कि यह सवाल किस से किया जा रहा है। डरना उसको चाहिए जो सवाल से घबराता हो या सवाल का दुश्मन हो। आप सवाल पूछ कर अपना ही नहीं पूरे देश का भला करेंगे।
"सवाल पूछते रहिए और देश सींचते रहिए। "
नई दिल्ली
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