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लघुकथा चंद सिक्के..... Chand sikke

लघुकथा - चंद सिक्के

ये क्या है पिता जी, आप हर महीने पञ्च हज़ार रुपये मंदिर में क्यों रख आते हो। ये जो पुजारी है लूट लेता है आपको । वैसे आपकी पेन्सन पर अपना हक नही जता रहा पर ये फिजूल खर्च जरुरी है क्या..?
हमें तो हमेशा  खर्च को लेकर चिल्लाते ही हो, पैसों की कद्र करो , जरूरत के अनुसार खर्च करो।
अभी कल नेहा को दो सूट खरीदने पर कितना सुनाया। और अब आप क्या कर रहे हो..???
विनायक चौहान अपने जवान बेटे की सारी बाते मूक बनकर सुनते रहे। ऐसा नही की उनके पास जवाब नही था बस वो देना नही चाहते थे।
अगले महीने फिर विनायक चौहान ने बैंक से पैसे निकाले और उसी मंदिर में देने निकल पड़े। आज इनके पीछे पीछे उनका बेटा भी था।वो देखना चाहता था कि पुजारी इन पैसे का क्या करेगा।
जैसे ही पिता ने पुजारी को पैसे दिए वो दोनों हाथ जोड़ कर नमन करने लगा। आप पीछे 25 साल से ये क्रम दोहरा रहे हैं। वो चंद रूपए तो कब के अदा हो गए।
नही पुजारी जी , मुझे पैसे का मूल्य पता है तब वो पांच हज़ार मेरे लिए करोड़ो रूपये के बराबर थे । ये तो कुछ भी नही,....
और  विनायक चौहान  अपने घर की ओर निकल पड़े। बेटे को ये सब माजरा समझ नही आया।
पिता जी आज आपको बताना ही होगा .... क्या मुझे ये जानने का अधिकार नही।
विनायक चौहान का चेहरा पीला पड़ रहा था।
बात तब की है जब हमारी शादी को 7 वर्ष हो चुके थे। । अब जाकर संतान सुख की सूचना मिली थी , परंतु ऑपरेशन की नौबत आ गयी जैसे तैसे कुछ पैसों का इन्तजाम तो हो गया  पर अभी भी पैसे कम पड़ रहे थे और उस पर भी दोनों में से एक को ही बचाया जा सकता था जहाँ कही से मांग सकता था देख लिया । तुम्हारी माँ दर्द से तडप तड़प कर बेहोश हो गयी, हालत लगातार ख़राब होती जा रही थी, ऐसे वक्त में ईश्वर के अलावा कोई और रास्ता नही दिखा , वही मंदिर में किसी चमत्कार की आशा लिए बैठ गया। तभी सेठ गिरिजा दयाल ने अपने पुत्र के होने की ख़ुशी में पांच हज़ार एक रूपये चढ़ाये। मुझे वो रुपये देखकर लालच या ये खो अँधा हो गया, और चुपके से वो रुपये उठा लाया।मुझे ऐसा करते पुजारी बाबा ने देख लिया था पर नज़रअंदाज करते हुए दूसरे काम में लगे रहे । तुम्हारी माँ और तुम दोनों ही बच गये। पर मैं एक अपराधबोध में घिरा रहा ।
     कुछ वक्त में माली हालत ठीक होने लगी तब वो पांच हजार रुपये लेकर मैं अपने अपराध की क्षमा मांगने पहुँचा। उन सह्रदय पुजारी जी गले से लगाकर बोला की उस रोज़ वो पैसे तुम्हारे लिए ही आये थे। परंतु मेरे लिए चंद रुपये नही दो लोगो का जीवन था  मेरा तो संसार ही बच गया। बस तब से प्रयास करता हूँ कि मेरे दिए चंद सिक्कों से शायद फिर किसी की दुनिया रौशन हो जाये और होती भी है।वो जो झुग्गी में बच्चे रहते है पुजारी जी उनकी लिखाई पढाई और स्वास्थ्य की पूरी जिम्मेदारी निभाते है इन्ही पैसो से।
   पापा ... हमे माफ़ कर दीजिए... हमने अपने मन में न जाने क्या क्या सोच लिया।
  अगर हमारी थोड़ी सी सहायता से किसी को नया जीवन , नयी राह मिलती है तो अवश्य प्रयास किये जाने चाहिए।
ईश्वर स्वयं नही आता पर हमारी सहायता को कोई न कोउ जरिया बन देता है

डॉ ज्योत्सना गुप्ता

पता अलीगंज रोड, निकट रेलवे क्रासिंग, 
गोला गोकरननाथ ,जिला लखीमपुर खीरी

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