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होली इस बार holi is bar

होली इस बार


कैसे बितेगी इस बार उसकी होली? 
रंगो के बीच बेरंगीं होली.. 

कैसे सजेगी इस बार वो?, 
उसकी सफ़ेद साड़ी कौन रंगेगा इस बार?.. 

कैसी देखेगी इस बार वो?, 
कौन लगाएगा उसके गालो पर गुलाल इस बार?..

कौन डालेगा उसके सर पर लाल रंग?, 
रह जाने है केश काले हीं शायद इस बार?.. 

कभी भीगते थें चेहरे रंगो से, 
अब आँसुओं से भिगने वाले हैं शायद इस बार…

पर देखना बन जाएगी इन से बेगानी वो.. 
हो जाएगी अंजान इस सूनेपन से वो.. 

मुस्कुराहट सजाएगी अपने चेहरे पर वो… 
आँखों में झूठी हीं सही पर खुशी भर आएगी वो…

उसके बच्चों को कमी ना खले उनके पिता की, 
इसके लिए माँ और पिता दोनों बन जाएगी वो…

खुश रहे सब इस लिए कुछ यूँ घुलमिल जाएगी वो.. 
देखना परिवार के सारे लोगों को उस दिन भी खुश रख पाएगी वो… 

माँ बन कर जहाँ पकवान बनाएगी उस दिन वो…, 
वहीं पिता बन कर बाज़ार से कपड़े और गुलाल भी ख़रीद लाएगी वो.. 

देखना कुछ इस तरह सारे फ़र्ज़ निभाएगी वो… 

स्वाती सिन्हा

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