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स्टार्टअप्स को ड्रेगन के शिकंजे से निकलना ही भारत के हित मे आवश्यक है

स्टार्टअप्स को ड्रेगन के शिकंजे से निकलना ही भारत के हित मे आवश्यक है


◆कोरोना काल में विश्व के सभी देश अपने अपने स्तर पर इस महामारी से लड़ रहे हैं। भारत समेत तमाम देशों में लॉक डाउन से एक तरफ जहां इस बीमारी का फैलाव काफी हद तक कम हुआ है, वहीं आर्थिक दृष्टि में इससे विश्वव्यापी मंदी का बुरा असर दिखना शुरू हो चुका है। भारत की बात करें तो यहां लंबे लॉक डाउन का असर लोगों के रोजगार, कंपनियों के मुनाफे और शेयर बाजार पर साफ दिख रहा है। इस दौरान बाजार की दिग्गज कंपनियों के शेयर भी काफी कम भाव पर कामकाज कर रहे हैं। इसका फायदा उठाते हुए हाल ही में चीन की सेंट्रल बैंक ने एचडीएफसी में अपना हिस्सा 1.01 फीसदी कर लिया। बाद में भारत सरकार ने जल्दी फैसला लेते हुए एफडीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के कानूनों को पड़ोसी देश के लिए थोड़ा बदल दिया। मुख्य बदलाव यह था कि अब सभी पड़ोसी देशों द्वारा निवेश की जांच सरकार करेगी। इसके पीछे का मकसद चीन से होने वाले निवेश की पूर्ण जांच करना था। अब सरकार के इस फैसले पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही है ।

एक तरफ जहां चीन ने इसका विरोध किया है वहीं आम भारतीयों का यह मानना है कि चीन के निवेश और उसके उत्पाद को पूर्णत प्रतिबंधित कर देना चाहिए। सवाल उठना लाजमी है कि क्या कोरोना काल से निकलने के बाद भारत बेरोजगारी और कमजोर अर्थव्यवस्था की मार झेल पाएगा ? ऐसे वक्त में चीन का निवेश और उससे होने वाले ट्रेड को कम करना समझदारी है ? क्या ऐसे फैसले के बाद भारत का 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना आसान होगा?

वैश्वीकरण के इस दौर में सभी देश एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। मसलन सभी देश व्यापार के साथ दूसरे देशों में सभी तरह के निवेश कर सकते हैं। इस लिहाज से सबसे बड़े मार्केट होने के नाते चीन ने भारत में पिछले कुछ सालों में काफी बड़े निवेश किए हैं। अगर डाटा की तरफ ध्यान दें तो पता चलता है कि चीन की नजर भारत की टेक कंपनियों पर ज्यादा रही है। साल 2019 में भारत के स्टार्टअप सिस्टम में लगभग एक लाख करोड़ करोड़ का निवेश हुआ जो अब तक का सर्वाधिक है। लेकिन हैरानी की बात है कि इसमें से 56 हजार करोड़ सिर्फ चीन ने निवेश किया। भारत आज स्टार्टअप ग्रोथ के मामले में तीसरे नंबर पर है। सच यह है कि इसमें चीन का बड़ा योगदान है। अगर यूनिकॉर्न कंपनियों( जिनका मूल्यांकन 7 हजार करोड़ से ज्यादा हो) की बात करे तो 31 में से 18 में चीन का बड़ा निवेश है। इसलिए चीनी निवेश और उनके साथ व्यापार बैन करना कोई चारा नही है।

बहरहाल दूसरा पहलू यह है कि चीन के सभी निवेशकों को साफ-सुथरा बता देना बुद्धिमानी नहीं होगी। चीन हमेशा से ही टेक कंपनियों में ज्यादा निवेश करता रहा है इससे चीन को अच्छे रिटर्न्स के साथ भारतीयों के डेटा तक पहुँच बनाने में मदद मिलती रही हैं। मसलन चीन ने पेटीएम,ओला,ओयो जोमकेटो जैसे तमाम जगह पैसा लगाया जहाँ डेटा का अधिक महत्व है। वही हाल के कुछ सालों में यह भी देखा गया है कि चीन छोटे निवेश से शुरुआत करके पूरे कंपनी पर अधिकार जमा लेती है। ये भारत के लिए घातक है। कुछ मीडिया रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि चीन भारतीय स्टार्टअप के माध्यम से अपना एजेंडा भी चलाती रही है। ऐसे में यह अत्यधिक जरूरी था कि चीन के निवेश पर निगरानी की जाए। 

हाल ही में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपने आंकड़ों में बताया कि कोरोना महामारी की वजह से अकेले भारत में 12 करोड़ लोगों की नौकरी जा सकती है। साथ ही जीडीपी भी 3 फीसद तक लुढक सकती है। ऐसे हालात में सरकार के सामने एक बड़ा संकट है रोजगार बचाना साथ ही कंपनियों को बंद होने से रोकना। भारत के 10 में से 7 स्टार्टअप बाहरी फंडिंग की मदद से चलते है इसलिए उन्हें निरंतर फंडिंग मिलती रहे क्योंकि इस समय की फंडिंग संजीवनी के समान है। कोरोना के आपात दौर में हम बाहरी निवेश एकदम रोकने लग जाएं तो अपने ही पांवों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। लेकिन चीन व दूसरे देशों के मंसूबों को भांपते हुए ऐसे निवेश पर निगरानी जरूरी है। बहरहाल, इस संकट ने सभी देशों को सबक दिया है। भारत को अपने स्वास्थ्य सुविधाओं बढ़ाने से लेकर अपने आप को आत्मनिर्भर बनाने तक के सबक मिले है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही के संबोधन में इस बात पर जोर दिया है कि सभी गांवों, जिलों और राज्यों को आत्मनिर्भर होना होगा। ये इतना आसान भी नही इसके लिए केंद्र के साथ सभी राज्यों को अपने उत्पाद बढ़ाने पर खासा जोर देना होगा। इसके लिए छोटे और लघु उद्योगों को अधिक बढ़ावा दिया जाना जरूरी है। वही स्टार्टअप के लिए भी फंडिंग से लेकर उत्पाद और सर्विसेज बनाने तक में मदद देनी आवश्यक है। खबर ये भी है कि जापान और यूरोप की बहुत कंपनी अब चीन से निकल कर भारत आना चाहती है। इनके लिए भी भारत को टैक्स में छूट से लेकर बाकी रियायत देना चाहिए।उम्मीद है ऐसे प्रयासों से भारतीय अर्थव्यवस्था आने वाले सालों में जल्दी ही पटरी पर आ सकेगी।

केवला राम गर्ग जैसलमेर

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