ग़ज़ल
बेबसीपर भीश्रमिक की हमकोलिखना चाहिए।
दर्द सीने का कहीं लफ़्ज़ों में ढलना चाहिए।
इक ज़रा सी चूक पर मिलती सज़ा भारी बहुत,
इक मिनट भी यूँ न गफ़लतमें निकलना चाहिए।
काम हो बेहद ज़रुरी ले के पूरी एह तियात,
सोच करके खूब अब घर से निकलना चाहिए।
अब रिवायत दे न पायेगी तरक़्की़ ठीक ठाक,
अब तरीकोंं को हमें अपने बदलना चाहिए।
रातरानी जो लगा आये कभी थे बाग में,
उससे अब वातावरण पूरा महकना चाहिए।
हमीद कानपुरी,
अब्दुल हमीद इदरीसी,
वरिष्ठ प्रबंधक, सेवानिवृत्त,
पंजाब नेशनल बैंक,
मण्डल कार्यालय ,बिरहाना रोड, कानपुर
9795772415
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