आज का हाल
क्या खूब सल्तनत ने वादे निभाए हैं।
मज़दूर चलकर पैदल घर अपने आए हैं,।
वादे उनके सारे बस वादे ही रह गए,
बस झूठ कहकर सबको दिलासे दिलाए हैं,।
कहते हैं किसे दर्द, पूछो कभी उनसे,
जो रास्ते में घर के लाशे उठाए हैं,।
महलों में रहकर क्या उन्हें मालूम होवेगा,
माओं ने अपने बच्चों को भूखे सुलाए हैं,।
आराम की उम्र में सफर कर रही पैदल,
उस बूढ़ी मां की उनके लिए बद्दुआए हैं,।
गोदी की उम्र में नसर वो चल रहे पैदल,
बनकर सवाल पैरों में उभर चले आए हैं,।।
*डा नसर अब्बास*
*आज़मगढ़ उ.प्र*
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