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कोरोना योद्धाओं का सम्मान करिये corona yoddhaon ka smman kariye

*बेटा पढ़ाओ, संस्कार सिखाओ अभियान की तरफ से एस. एच .ओ. विष्णु दत्त विश्नोई को अश्रुपूरित नयनों से भावभीनी श्रद्धांजलि*


*कोरोना योद्धाओं का सम्मान करिये,ये हमारी जान बचाने के लिए अपनी जान की परवाह किये बिना अपने कर्तव्य पथ पर डटे हुए हैं - कवि हरीश शर्मा*


लक्ष्मणगढ़ - (सीकर) - 28 - मई - 2020 - मरुधर भारती - सभी समानता विशेष✍️

बेटा पढ़ाओ - अभियान की ओर से ईमानदार व बेहद जाबाज ऑफिसर राजगढ़ थानाधिकारी विष्णुदत्त विश्नोई को श्रंद्धाजलि अर्पित की गई। इस दौरान अभियान के आयोजनकर्ता कवि लेखक - हरीश शर्मा ने कहा कि:-
 तुम कर्मठ योद्धा थे,हरपल
 अपनी धाक जमायी थी।
अच्छे -अच्छे बदमाशों को
पल में धूल चटायी थी।
सौम्य,शील व्यक्तित्व तुम्हारा
स्वच्छ छवि,कर्तव्यनिष्ठ।
क्यों टूट गये,क्या कारण था
जो कर बैठे ऐसा अनिष्ट।।
प्राणों की आहुति देने का
जब विचार आया होगा।
स्वजन सहेंगे कैसे ये गम
मन भी घबराया होगा।।
      चुरू जिले में राजगढ़ थाने के एस.एचओ.विष्णु दत्त विश्नोई ने शुक्रवार की रात अपने क्वार्टर में  फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। बेटा पढ़ाओ - संस्कार सिखाओ अभियान देश के जाबाज,कर्तव्यनिष्ठ,ईमानदार और स्वच्छ छवि वाले भारत माता के इस वीर सपूत को अश्रुपूरित नयनों से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
         आज कोरोना संक्रमण के दंश से त्रस्त  देश को सुरक्षित रखने में अपना योगदान देने वाले पुलिस कर्मियों के प्रति प्रत्येक नागरिक के मन में श्रद्धा और प्रेम का सागर हिलोरें ले रहा है,हर समय टी.वी.और समाचार पत्रों के माध्यम से भी यही संदेश सुनने को मिलता है कि कोरोना योद्धाओं का सम्मान करिये,ये हमारी जान बचाने के लिए अपनी जान की परवाह किये बिना अपने कर्तव्य पथ पर डटे हुए हैं,ऐसे समय में एक जुझारू,जाबाज पुलिस अधिकारी का मौत के फंदे पर झूल जाना अंतर्मन को झकझोर कर रख देता है ।एक प्रश्न सामने आकर खड़ा हो जाता है,आखिर ऐसी क्या परिस्थिति थी जिसने एक  होनहार पुलिस अधिकारी को विवश कर दिया,मजबूर कर दिया आत्महत्या का निर्णय लेने के लिए ?वो कौन सा दबाव था,जिसने एक साहसी कर्मयोद्धा के मन को इतना व्यथित किया कि वह मंटा है कि आत्महत्या करने बुजदिली है ,फिर भी ऐसा अपराध करने को विवश है?फाँसी का फंदा बनाते समय उसे अपने वृद्ध माता- पिता का हृदय विदारक चीत्कार अवश्य याद आया होगा,पत्नी का उजड़ता संसार और क्रन्दन - कितनी वार आँख बन्द करके महसूस किया होगा,अपने जिगर के टुकड़ों के मासूम चेहरे और उनके बिखरते हुए सपनों की कल्पना से सिहर गया होगा? अपने अंतिम शब्दों को कोरे कागज पर उतारने में एक- एक शब्द लिखने में बंदूक उठाने वाले हाथ कलम पकड़ने में कितने काँपे होंगे ?कितना कठिन होगा वो निर्णय जो कितनी ही जिंदगियों को मझदार में छोड़कर पलायन करने को विवश हुआ ? भावनाओं का तो कहीं स्थान ही नहीं रहा इस सबसे ऊपर हो गया प्रशासनिक दवाब ?वह कैसा दवाब था,किसका था,कौन सा था? ये अनुत्तरित प्रश्न हैं?
                    अक्सर पुलिस तंत्र कोहम सभी नकारा,निकम्मा ,भ्रष्ट कहकर  कोसते रहते हैं,लेकिन आज इस घटना ने जनमानस के मन में एक प्रश्न खड़ा किया है- क्या पुलिस अधिकारियों की कमान उनके अपने हाथ में नहीं होती? वो मात्र कठपुतली होते हैं? अपने जमीर को बेचना उनकी मजबूरी होती है?पता नहीं कितने लोगों को संतुष्ट करना उनका धर्म होता है? उनकी कर्तव्यनिष्ठा ,ईमानदारी, वीरता उनके किसी काम नहीं आती ?और यदि वो अपने आकाओं की जी हजूरी में जरा सी चूक करते हैं तो उनको विष्णु दत्त विश्नोई बनने को मजबूर होना पड़ता है।
        शायद ये दुनियाँ उस जाबाज की कद्र नहीं कर पायी, लेकिन ईश्वर अपने लाडले को अपने चरणों में स्थान देकर पुण्यात्मा को अपना प्यार अवश्य देंगे ।बेटा पढ़ाओ, संस्कार सिखाओ अभियान प्रभु से प्रार्थना करता है कि विष्णु दत्त जी की आत्मा को शान्ति मिले। उनके परिवार को इस महान कष्ट को सहन करने की प्रभु शक्ति दें। ॐ शान्ति शान्ति शान्ति।

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