Shamsher bahadur ka jivan parichay
शमशेर बहादुर का जीवन परिचय
जन्म :- 13 जनवरी 1911
मृत्यु :- 12 मई 1993
जन्म स्थान :- देहरादून, भारत
शमशेर का विस्तृत जीवन परिचय
शमशेर बहादुर सिंह का जन्म देहरादून में 13 जनवरी, 1911 को हुआ। उनके पिता का नाम तारीफ सिंह था और माँ का नाम परम देवी था। शमशेर जी के भाई तेज बहादुर उनसे दो साल छोटे थे। उनकी माँ दोनों भाइयों को 'राम-लक्ष्मण की जोड़ी' कहा करती थी। बाल्यावस्था में ही उनकी माँ की मृत्यु हो गई। 18 वर्ष की अवस्था में शमशेर बहादुर सिंह का विवाह धर्मवती के साथ हुआ, लेकिन छह वर्ष के बाद ही उनकी पत्नी धर्मवती की मृत्यु टीबी के कारण हो गई। शमशेर ने जीवन के करुण कथा को को कविता पेश किया। युवाकाल में शमशेर बहादुर सिंह वामपंथी विचारधारा और प्रगतिशील साहित्य से प्रभावित हुए थे।
आरंभिक शिक्षा देहरादून में हुई। हाईस्कूल-इंटर और बी.ए. उतर प्रदेश से किया, किन्हीं कारणों से एम.ए. फाइनल न कर सके। रूपाभ', 'कहानी', 'नया साहित्य', 'माया', 'नया पथ', 'मनोहर कहानियां' आदि पत्रिकाओं के संपादन का कार्य भी किया है। अज्ञय द्वारा संपादित दूसरा तार सप्तक के कवि भी है।
शमशेर की प्रमुख कृतियाँ
Shamsher bahadur ki pramukh rachanayen
कुछ कविताएँ (1959), कुछ और कविताएँ (1961), चुका भी हूँ मैं नहीं (1975), इतने पास अपने (1980), उदिता: अभिव्यक्ति का संघर्ष (1980), बात बोलेगी (1981), काल तुझसे होड़ है मेरी (1988)
Shamsher bahadur prapht samman
शमशेर बहादुर सिंह को प्राप्त पुरस्कार
1977 में "चुका भी हूँ मैं नहीं " के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के तुलसी पुरस्कार से सम्मानित। सन् 1987 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित।
विषय सूची
1 कविता-संग्रह
2 प्रतिनिधि कविताएँ
3 अप्रकाशित
4 भोजपुरी
Kavi Shamsher ka kavita sngrah
शमशेर का कविता-संग्रह
कुछ कविताएँ
कुछ और कविताएँ
सुकून की तलाश
चुका भी हूँ मैं नहीं!
काल तुझ से होड़ है मेरी
प्रतिनिधि कविताएँ नाविक ’विद्रोहियों’ पर बमबारी : बम्बई १९४६
परम्परा
चीन
य' शाम है
मन
पाब्लो नेरूदा
टूटी हुई, बिखरी हुई
दिल, मेरी कायनात अकेली है—और मैं
न पलटना उधर
राह तो एक थी
तुमने मुझे
क्यों बाकी है
निराला के प्रति
वह सलोना जिस्म
मकई-से वे लाल गेहुँए तलवे
एक मुद्रा से
सावन
गीत
चीन
फिर भी क्यों
रुबाई
मन
महुवा
बादलो
"आकाशे दामामा बाजे...
धूप
सारनाथ की एक शाम
सूर्योदय
मूंद लो आँखें
एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता
गीली मुलायम लटें
घनीभूत पीड़ा
सुबह
सौंदर्य
एक मौन
भारत की आरती
फिर एक हिलोर उठी
जो तुम भूल जाओ तो हम भूल जाएँ
सजल स्नेह का भूषण केवल
एक पीली शाम
धूप कोठरी के आईने में
पूरा आसमान का आसमान
साथ, सम, शांत
का. रुद्रदत्त भारद्वाज की शहादत की पहली वर्षी पर
सींग और नाख़ून
राग
अज्ञेय से
सुन के ऐसी ही सी एक बात
घनीभूत पीड़ा
चुका भी हूँ मैं नहीं
मैं भारत गुण-गौरव गाता
मेरे मन के राग नए-नए
रुबाई
आओ!
ज़िन्दगी का प्यार
वो चेहरा
भुवनेश्वर
बोध
उषा
मौन आहों में बुझी तलवार
मैं आप से कहने को ही था, फिर आया ख़याल एकाएक
दिन किशमिशी-रेशमी, गोरा
लौट आ, ओ धार!
गीत है यह गिला नहीं
मुझे–न मिलेंगे–आप
थरथराता रहा
वसन्त आया
धूप
दूब
शिला का खून पीती थी
शाम होने को हुई
यह विवशता
वकील करो
कुछ शेर
का. रुद्रदत्त भारद्वाज की शहादत की पहली वर्षी पर
कठिन प्रस्तर में
शिला का ख़ून पीती थी
रेडियो पर एक योरपीय संगीत सुनकर
'यामा' कवि से
प्रेम
फाल्गुन शुक्ला सप्तमी की शाम,55
कहो तो क्या न कहें, पर कहो तो क्योंकर हो
सूना-सूना पथ है, उदास झरना
हार-हार समझा मैं
छिप गया वह मुख
पूरा आसमान का आसमान
रात्रि
यह शाम है
चांद से थोड़ी-सी गप्पें
अन्तिम विनिमय
निंदिया सतावे
चुका भी हूँ मैं नहीं
गीली मुलायम लटें
रात्रि
धूप कोठरी के आइने में खड़ी
ओ मेरे घर
अज्ञेय से
सागर-तट
बँधा होता भी
उत्तर
ये लहरें घेर लेती हैं
एक मौन
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