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प्रेम तकरार Prem takraar

 प्रेम तकरार


नेहा और मयंक में आपसी खटपट, नोंकझोंक इतनी बढ़ गई कि दोनों में दस दिनों तक बातचीत नहीं हुई। शादी के बाद ये पहला मौका था, और प्यार को परखने का अवसर भी। नेहा से अब बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने कहा ’’ अच्छा बहाना मिल गया है आपको झगड़ा करने का। ’’
मयंक ने कहा ’’ झगड़ा मैंने किया ? उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे। ’’ सूनने के बाद नेहा की भौंहें तन गई थी।
’’ हाँ हाँ आप चोर, आपके मन में चोर और आपके प्यार में चोर। ’’
’’ ऐसा कैसे भला ? शुरूआत तो तुम्ही ने की थी। ’’
’’ मैं तो मान गई थी, लेकिन आपके प्यार को परख रही थी और आप फेल भी हो गए। ’’
’’ मैं फेल हो गया, वो भी सच्चे प्यार में ? ’’ आश्चर्यचकित होकर मयंक ने सवाल किया।
’’ मैंने चुड़ीयाँ खनकाई, पायल झनकायी और कपड़ों में ढेर सारा सेंट भी लगाया कि आप मेरी तरफ देखकर मेरी मुसकान मे सब कुछ भूलकर मुझ से बात करें। ’’ नेहा के खुबसूरत होठों से प्यार झलक रहा था और आँखों में शिकायत। 
मयंक भी रोमेंटिक मुड में आ गया ’’ आ हा हा, बहूत खुब ध्यान आकर्षित करना सिर्फ तुम्ही को आता है ? मैंने दो ग्लास तोड़े, तुम्हारी दाल में खुब नमक मिला दिया, बाईक का एक्सीलेटर खुब तेज किया, खुब तेज हॉर्न बजाया ताकि तुम शिकायत करो और मैं माफी माँगकर सारे गिले शिकवे दूर कर लूँ लेकिन तुम तो रही बुद्धू समझ नहीं पाई। ’’
’’ आप समझा नहीं पाए अब मैं समझाती हूँ। ’’ नेहा ने मयंक की आँखों में अपनी आँखें डाल दीं, दोनों के नेत्रों की चमक एक दुसरे से टरका रही थी ओर अब दोनों एक दुसरे की बाँहों में थे, दोनों के दिल की धड़कनें, एक दुजे के दिल को धड़का रही थी।

लेखक
राजीव कुमार

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