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हीरा पहलवान


लघुकथा -            ।। हीरा पहलवान।।

मै अकेले बैठा था। श्रावणी उमस से परेशान था। काले- काले बादल आकाश मे घिरे थे मानो बारिश होने वाली है। हवा मंद-मंद चल रही थी। जो शरीर को बड़ा ही शकून दे रही थी। कुछ बच्चे मेरे दरवाजे पर ही खेल रहे थे। मै बार-बार मना कर रहा था कि कूएं के पास मत जाओ पर बच्चे मानने वाले कहां। मै अपने काम में व्यस्त हो गया था। तभी एक आदमी ने मुझसे कहा कि हीरा पहलवान बुलाये है, काम बंद कर उनके घर चला गया। भला उनकी बात पूरे गांव में कौन काट सकता था।



     सुंदर एक पलिया मकान जिसके सामने नींबू और अमरुद के पेड़ फलों से लदे थे। बच्चे पेड़ के नीचे फलों के लालच में चक्कर लगाते रहते थे। सामने गोरा वदन लम्बी छरहरी काया बड़ी - बड़ी मूंछें बगल में चांदी से बंधा सोंटा रखा था। मैने दूर से ही सलामी ठोकी - बाबा जी प्रणाम।
पहलवान - चिरंजीव बेटा
मैने कहा - बाबा आपने मुझे बुलाया है, क्या आदेश है?

इतने मे शोर होने लगा, और शोर बढ़ता चला जा रहा था।
पहलवान ने कहा - बेटा तुम्हारे घर के पास ही शोर हो रहा है चलो मै भी हुक्का रखकर आता हूँ।
मैं दौड़ा - दौड़ा वहां पहुंचा तो पता चला कि एक बच्चा कूएं मे गिर गया है।  मै सूख गया कि कि किसका बच्चा
सभी ने बताया डेला बाबा का नाती।

     बरसात के कारण कूएं  मे अधिक पानी था किसी की हिम्मत नहीं थी कूएं मे उतरे। डेला मालुम पड़ता था कि कूएं मे कूद कर जान दे देंगे और कातर भरी निगाहों से खड़े भीड़ की तरफ देखते थे पर कोई आशा कि किरण न देखकर चिल्लाने लगते और मन में बड़ा मसोस था कि आज हीरा पहलवान से हमारा बिगडा़ न होता तो वह क्षणभर मे बच्चे को बाहर कर देते। उनके जैसी ताकत तथा हुनर पूरे पौहद मे कहाँ?

बच्चा डूबता और ऊपर आ जाता ऐसा दो बार हो चुका था। सबने सोंच लिया था कि अब बच्चा बचेगा नहीं। सभी लोगों की निगाहें कूएँ के भीतर गड़ी हुई थी तभी बच्चे का बाल दिखाई दिया और ऊपर आया तथा धीरे-धीरे नीचे जा रहा था। सब लोगों की निराशा चरम पर थी।

इतने मे भीड़ को चीरते हुए वो आ गये और सबके जुबान पर पहलवान, पहलवान छा गया। फुर्ती से वो अपना कुर्ता लुंगी निकलकर कूएँ पर रख दिये। लंगोट पहन कर कूएँ मे छलांग लगा दिये। पूरे लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था कि कूएं मे पैंतीस हाथ पानी था भला ऐसे में कौन पानी मे उतर सकता। पर पहलवान तीर की तरह कूएं के तलहटी में पहुंच गये और बच्चे को खोज रहे थे। ऊपर सबकी सांसे अटकी हुई थी कहीं पहलवान खाली हाथ ऊपर वापस न आवें नहीं तो डेला बाबा जीते जी मर जायेंगे एक ही बेटा था जो पहले ही भगवान को प्यारा हो गया था अब नाती भी एक ही था जिसका हाल सामने था। सभी लोग  निराशा के अंतिम शिखर पर खड़े थे। इतने में नीचे से पहलवान तीव्रता से ऊपर आये जोर से बोले - जय बजरंग सभी लोग जय बजरंग जय बजरंग जोर - से चिल्लाने लगे। कंधे पर बच्चे को लादे हुए थे बच्चा बेहोश था। बच्चे को लोगों ने पहले ही थाम्हं लिया और बाहर लेटा दिया । बच्चे को इधर-उधर पलट कर देखें कि बच्चा कहीं अधिक पानी तो नहीं पी लिया है। पर भगवान् का शुक्र था कि वह एक बूँद भी पानी नहीं पीयें था।
सभी ने कहा बच्चा खतरे से बाहर है अभी थोड़ी देर मे होश आ जायेगी।

      इधर पहलवान पुनः नहा-धोकर अपना बस्त्र पहन लिए घर की तरफ चलने को उद्यत हुए तो निगाह डेला बाबा पर पड़ी, जिनके आंखों मे आँसू भरा था। वो पहलवान से कुछ कहना चाहते थे पर कह नहीं पाया रहे थे। तब पहलवान मुस्कराते हुए कहा - भाई अब हम चलें, इतना सुनते ही डेला पहलवान के चरणों पर गिर पड़े मुख से कृतज्ञता के शब्द भी प्रकट नहीं हो पाया रहे थे।
पहलवान - भाई यह मेरा फर्ज था आपका बेटा मेरा बेटा।
डेला बाबा-आज आप हमारे खानदान के लिए ईश्वर बनकर आ गये यह कहकर डेला फफक पडे़।
पहलवान - अरे भाई यह क्या कर रहो कहकर डेला को अपने हृदय से लगा लिया तथा पहलवान की आंखें भी आंसू से भर गयीं। यह दृश्य देखकर सभी खड़े लोगों के आंखों मे आंसू आ गये। तभी किसी ने बताया कि बच्चे को होश आ गया है, सभी लोग तथा पहलवान भी डेला के दरवाजे पर वर्षों के बैर को भूलकर चले गये।

स्वलिखित                   ।। कवि रंग। ।
                        पर्रोई - सिद्धार्थ नगर (उ0प्र0)

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