पक्षीराज बाज से सीखें संघर्ष व सफलता की सीख
वर्तमान में कोविड-19 महामारी का कहर बरपाने वाले कोरोना वायरस के विकराल संक्रमित हालात के मद्देनजर बहुत ही प्रेरणा दायक कहानी- दिल छूने वाली।
बाज नामक पक्षी लगभग 70 वर्ष जीता है, परन्तु अपने जीवन के 40 वें वर्ष में आते-आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है। उस अवस्था में उसके शरीर के तीन प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं।
1. पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है जो शिकार पर पकड़ बनाने में अक्षम होने लगते हैं ।
2. चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है और भोजन में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है।
3. पंख भारी हो जाते हैं और सीने से चिपकने के कारण पूर्णरूप से खुल नहीं पाते हैं, उड़ान को सीमित कर देते हैं।
इस समय उसे भोजन ढूँढ़ना, भोजन पकड़ना और भोजन खाना तीनों प्रक्रियायें अपनी धार खोने लगती हैं। फिर उसके पास तीन ही विकल्प बचते हैं:- या तो देह त्याग दे या अपनी प्रवृत्ति छोड़ गिद्ध की तरह त्यक्त भोजन पर निर्वाह करे या फिर स्वयं को पुनर्स्थापित करें, आकाश के निर्द्वन्द एकाधिपति के रूप में। जहाँ पहले दो विकल्प सरल और त्वरित हैं, वहीं अंत में बचा हुआ तीसरा विकल्प लम्बा और अत्यन्त पीड़ादायी रास्ता होता है।
लेकिन बाज चुनता है तीसरा रास्ता और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है। वह किसी ऊँचे पहाड़ पर जाता है और एकांत में अपना घोंसला बनाता है और तब स्वयं को पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया प्रारम्भ करता है।
सबसे पहले वह अपनी चोंच चट्टान पर मार-मार कर तोड़ देता है, चोंच तोड़ने से अधिक पीड़ादायक कुछ भी नहीं है पक्षीराज के लिए। कुछ समय वह प्रतीक्षा करता है, चोंच के पुनः उग आने का, उसके बाद वह अपने पंजे भी उसी प्रकार तोड़ देता है और प्रतीक्षा करता है पंजों के पुनः उग आने का। नयी चोंच और पंजे आने के बाद वह अपने भारी पंखों को एक-एक कर नोंच कर निकालता है और प्रतीक्षा करता है पंखों के पुनः उग आने का।
150 दिन की पीड़ा और प्रतीक्षा के बाद मिलती है वही भव्य और ऊँची उड़ान पहले जैसी। इस पुनर्स्थापना के बाद फिर से वह 30 साल और ऊर्जा, सम्मान तथा गरिमा के साथ जीता है।
इसी प्रकार आजकल कोविड-19 कोरोना की भयंकर महामारी से वैश्विक स्तर पर तबाही से मानव जीवन को खतरा उत्पन्न हो गया है जिससे लाखों लोगों की जान चली गई है और लाखों संक्रमित हो चुके है। ऐसी भयावह परिस्थिति में इंसान की इच्छाशक्ति, आत्मशक्ति, सक्रियता और कल्पना सभी निर्बल पड़ने लग गए है। अतः हमें भी आवश्कता है पक्षीराज बाज से सीख लेकर भूतकाल में जकड़े अस्तित्व के भारीपन को त्याग कर कल्पना की उन्मुक्त उड़ाने भरनी होंगी, 150 दिन न सही परन्तु 60 दिन ही बिताए जाएं, तभी मानव जीवन पुनः पुनर्स्थापित हो पाएगा। सरकार व प्रशासन के नियमों व निर्देशों की पालना सुनिश्चित कर भौतिक दूरी रखकर, हर दो घंटे बाद नियमित साबुन से हाथ धोकर, मुंह को रुमाल या मास्क से ढककर इत्यादि की पालना करनी है। कुछ समय हिम्मत, जज्बे,जोश व जूनून के साथ बिताया जाए, स्वयं को पुनर्स्थापित करने में। साथ ही अपने व अपनों के लिए कठोर व दृढ़ निर्णय लेना है, पक्षीराज बाज के निर्णय की तरह।
कोरोना हारेगा, भारत जीतेगा।
जीत जाएगा इंडिया, फिर से मुस्कराएगा इंडिया।
सीख: हमें कैसी भी परिस्थितियों में हार ना मानते हुए जीवन के आखिरी क्षण तक आत्मशक्ति की उड़ान के साथ डटकर मुकाबला करना है व सकारात्मक सोच रखनी होगी, जीत पक्की होगी।
आपका अपना लेखक
शैताना राम बिश्नोई
राउमावि देवानिया, जोधपुर
शुक्रिया जी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार