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प्रवासी मजदूरों की वर्तमान दयनीय स्थिति और समस्याएं pravasi mazdooro ki vartman dayaniy sthiti or samasyaen

   प्रवासी मजदूरों की वर्तमान  समस्याएं


शीर्षक :- "आ अब लौट चलें"


          कोई दो जून की रोटी तो कोई भौतिक विलासिता का सुखमय जीवन जीने की चाह में गाँवो को छोड़ शहरों में चले गए । कुछ वतन को छोड़कर विलायत में बस गए । तभी एक कोरोना रूपी महामारी की एक आहट सुनाई देती है कि सभी को अपने गाँव लौटने की याद आ जाती हैं । हल्की सी आहट हुई तो विदेश के आसमानी रास्ते से हवाई उड़ानों की गूँज सुनाई देने लगी, देगी भी क्यों नही ? आखिर बड़े-बड़े धन्नासेठों, अधिकारियों एवं नेताओं के परिवारों की सुरक्षा का सवाल था । सुरक्षा की चिंता होनी भी जायज बात थी, क्योंकि  ये महामारी चीन के वुहान शहर से हवाई सफर करके ही अन्य देशों में फैली थी । सरकार के तमाम रक्षा-चक्रों को भेदकर इसने भारत में पैर पसार दिये । धीरे-धीरे जब विदेशों के बड़े-बड़े विकसित राष्ट्र चीन, इटली, स्पेन, फ़्रांस, अमेरिका,ब्रिटेन इत्यादि में भी इस महामारी ने अपना रौद्र रूप दिखाया तो सरकारों ने भी रक्षा-कवच के रूप में लॉकडाउन का सहारा लिया । भारत में सब कुछ सामान्य चल रहा था , तभी लॉकडाउन के फैसले से हवाई सफर पर तो रोक लगी ही, साथ में आम आदमी के सफर की संगिनी रेल - बस सहित तमाम परिवहन पर भी अघौषित रोक लग गई । अब हालत ये हो गई कि जो जहाँ था वहीं कैद हो गया । लॉकडाउन का जब पहला चरण शुरू हुआ तो लगा कि अब ये थोड़े दिनों की ही बात हैं ,इसी आशा में भूखे-प्यासे कष्ट सहनकर भी दिन गुजार लिये । लेकिन ज्यों ही लॉकडाउन का दूसरा चरण शुरू हुआ और महामारी के प्रकोप को देखते हुए जल्द लॉकडाउन खुलने के आसार न दिखने पर प्रवासी मजदूरों का सब्र जवाब दे गया । कुछ मकान मालिक की ज्यादतियों तो कुछ अपने रहने, खाने-पीने का इंतजाम न होने के कारण घरों की और निकल पड़े । सरकार तमाम अपीलें करती रही कि खाने-पीने तथा रहने के समूचे इंतजाम है मजदूरों पर इस अपील का कोई असर नही हुआ । दिल्ली, सूरत, मुम्बई, अहमदाबाद, पटना इत्यादि जगहों पर मजदूरों के विरोध प्रदर्शनों को भुलाया नही जा सकता । मजदूरों का आरोप था कि रसूखदारों को घर भिजवाया जा रहा हैं और हमें घर जाने की अनुमति नही दी जा रही है । प्रशासन की लाख समझाईश के बावजूद लाखों की तादाद में मजदूर पैदल नंगे पाँव ही घरों की और चल पड़े । हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा के दौरान छोटे-छोटे बच्चें, गर्भवती महिलाएं, बूढ़े लोग आदि के दृश्य जब भी आँखों के सामने आते हैं तो रूह कांप जाती है । राष्ट्र के शिल्पी जब इस हालत में पैरों में छाले और सरकार की बेरुखी का शिकार होते हैं तो दिल पसीज जाता हैं । क्या उनका दोष सिर्फ इतना ही है कि वो मजदूर हैं ? अरे ! साहब, वो मजदूर भी है और हालात का मारा मजबूर भी है , वो देश की बुनियाद को खड़ी करने वाला मेहनतकश शिल्पी है । वो सोच रहें कि काश इस समय चुनाव भी साथ होते तो नेता लोग भी हमारी मदद कर पाते । ध्यान देने योग्य बात यह है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है । लोकतंत्र की मजबूत कड़ी मताधिकार हैं । सरपंच चुनाव से लेकर विधायक, सांसद तक के चुनाव में एक एक वोट की कीमत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता हैं कि व्यक्ति सात समंदर पार हो तो उसको लाने के लिये पुख्ता इंतजाम किये जाते है । लेकिन अब कोई चुनाव नही है, अब चारों तरफ यदि कुछ है तो अजीब संक्रमण का खौफ । इस अवस्था में मजदूरों का ऊपर वाला ही रखवाला है । जान जोखिम में डालकर सड़कों पर सफर कर रहे मुसाफिरों को कभी प्राकृतिक तो कभी कृत्रिम आपदा का शिकार होना पड़ रहा हैं । महाराष्ट्र के औरंगाबाद में 16 मजदूरों की मालगाड़ी से कटकर दर्दनाक मौत का मामला हो या हाल ही में उत्तरप्रदेश के औरैया के सड़क दुर्घटना में करीब दो दर्जन मौतों का मामला हो, हर जगह बस घर जाने की आस लगाए मजदूरों के अवशेष रह गए है और इन हादसों में कुछ जिन्दा भी बचे तो उनकी चीखें रहरहकर खौफ का मंजर बयान करती हैं। अब बस यह दुआ करने की जरूरत है कि जो भी प्रवासी सफर में है वे स्वस्थ और सकुशल रूप से अपने गाँव अपने परिवारजनों के पास पहुँचे । सरकारें भी युद्धस्तर पर प्रयास करके इन प्रवासी मजदूरों का दिल जीतें, उनको सुरक्षित रूप से घर भिजवाने का भरोसा दिलाएं ।

लेखक
कैलाश गर्ग रातड़ी
शिक्षक ( समसामयिक मुद्दों पर निरन्तर लेखन)
जिला बाड़मेर ,राजस्थान

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