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ऊलुल जुलूल गीत..... Utptang geet


विषय –लेख

शीर्षक–‘ऊलुल–जुलुल गीत’

“ ऊलूल–जुलूल गीत से तात्पर्य यह हैं कि वह गीत जो स्वर विहीन होते हुए  भी लोककाव्यॊं में  ,खड़ी बोली के काव्यॊं में व भिन्न –भिन्न, देश/ विदेश की बोलियों में पायी जाए जिसे हम सब आम बोल चाल की भाषा में अनाप –शनाप कहते हैं । किन्तु लोक व्यवहार की इस भाषा में कालान्तर में कुछ साहित्यकार का नाम भी जुड़ा जिन्हें बहुत ही ख्याति प्राप्त हुई ।
जैसे कि बांग्ला भाषा के साहित्यकार सुकुमार राय ने ‘नाइको माने’ काव्य गीत  लिखा।वहीं अग्रेंजी भाषा काव्य में एक उच्च कोटि का व्यंग्य लिखा गया एडवर्ड लियर द्वारा‘ नानसेंस ’ जो कि बहुत ही प्रसिद्ध हुआ । वहीं हिन्दी भाषा साहित्य में भी रामनरेश त्रिपाठी जी ने  सफल प्रयोग किया उनकी कविता की एक पंक्ति कुछ इस प्रकार से हैं–‘अाई एक छींक नंदू को,
                                            एक रोज वह इतना छीका।’
 इसी कारण इस विषय पर विचार करते हुए अनाप –शनाप गीत ,काव्य,चुटकुलों  को भी हिन्दी भाषा साहित्य में स्थान देना चाहिए क्योंकि इन्हीं हास्य /व्यंग्य गीतों के माध्यम से ही हास्य/ व्यंग्य चित्रकला का भी ज्ञान होता हैं साथ ही इन्हीं गीतों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के विषयों पर वास्तविकता से हटकर होते हुए भी वास्तविक रूप बतला दिया जाता हैं जो कि हर क्षेत्र के लोगों पर स्वाभाविकता की छाप छोड़ जाता हैं जिसे हर  व्यक्ति असहाय सी मुस्कान लिए तिलमिलाता हुआ सहजता पूर्वक सुनता हैं और उस द्वंद्व में वह मनोरंजन के साथ असंगत पूर्ण बातों में भी ज्ञान की बात सुन लेता हैं/सुना देता हैं। हालाॅऺकि इस बार के गीतों  को अधिकाधिक बालक/बालिकाओं के द्वारा निरर्थक ध्वनि के साथ लोकोत्सवों व खेलों में देखने व सुनने को मिलता हैं जो कि इस प्रकार के गीतों के रचनाकार बच्चें स्वयं होते हैं उनकी स्वयं की शैली होती हैं किन्तु वह लोक व्यवहार का सफल मार्गदर्शन भी करती हैं।जिसके माध्यम से बच्चे अपनी देशज बोलियों को सुरक्षित करते हुए अपनी मातृ भाषा  के साथ– साथ अन्य भाषाओं का  भी सम्मान करते हैं। जैसे –
‘अक्कड़ बक्कड़ बंबे बोल,
             अस्सी नब्बें पूरे सौं।
                       सौं में लगा धागा 
                               चोर निकल कर भागा।।’
अतः इस बार के गीतों में भी सूचनाओं को सुनने को मिलता हैं इसलिए यह ऊलूल– जूलूल होते हुए भी एक एक प्रकार का सूचनात्मक गीत काव्य की रचना मानी जा सकती हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए इन गीतों को भी हिंदी भाषा साहित्य में स्थान दिया जाना चाहिए । क्योंकि अधिकांश बोलियां धीरे धीरे अपने मूल स्वरूप से हटकर खड़ी बोली में परिवर्तित हो रही हैं जिसके कारण क्षेत्रीय भाषा की बोली 
 निरंतर घट रही हैं जिसे सुरक्षित करने हेतु अनाप– शनाप गीतों को भी हिन्दी भाषा साहित्य के काव्य भाषा वा गद्य भाषा में शामिल करने हेतु प्रचार /प्रसार करना चाहिए जिससे बच्चे सहजता के साथ पढ़ कर/ सुन कर समझ सकें । साथ ही अपने देश की विधिध बोलियों को सुरक्षित रख सकें ।।"

रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश 

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