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इंसान के प्रति हमारी बदलती संवेदनाएं.. Kitna Badal gya insaan

     【कितना बदल गया इंसान】

रचना है इंसान के प्रति हमारी बदलने की संवेदनाएं

इंसान कभी कबार झूठ को भी सच में तब्दील कर जाता है| सच को परदे से ढक जाता है ये  नहीं की हर इंसान संसार में गलत है |कुछ चंद्र गलतियां या भ्रांति हमारे सन्मुख भी होती हैं| इंसान कभी किसी की गलती की कल्पना भी  ना करता हो वह भी गलत अभीकल्पना के रूप में हमारी जिंदगी में उभर कर सामने आ जाती है| इंसान के दायित्व के ऊपर आरोप प्रत्यारोप अब हर इंसान की स्वाभाविक दैनिक प्रतिक्रिया हो गई |है परंतु इंसान को सच में साबित करना कठिन हो गया है |हर इंसान की जिंदगी में एक दूसरे से मिलती-जुलती कुछ कहानियां होती हैं| बरसों लग जाते हैं इंसान को अपनों की कहानियां भूल पाने में फिर भी कुछ कहानियां रह जाती है| अधूरीहर इंसान के अंदर आज क्रोध ईर्ष्या की भावना ज्वालामुखी की तरह पनप रही | है हर इंसान की संवेदना भी स्वार्थी इंसान की तरह दम तोड़ चुकी हैं लालच में आकर अपनी निजी संवेदनाएं बिखेर रहा है| आज की युग में इंसान के विचारों को सत्य की नीड से मिलान कराया जाए इंसान सत्य की निड को झुठलाकर असत्य की नीड अपनाएगा | हर इंसान असाध्य को साध्य होने के लिए भर ले हुकार तो चट्टानों से पिघलकर  मिट्टी बना सकता है |इंसान | हर इंसान की जिंदगी में दुखदाई मेघ बरसते रहते हैं फिर भी जिंदगी की बरसात में जीने की का हुनर रखता है इंसान | चाहत हो इंसान की जीने की जिसमें चैन की राहत हो किसी किसी भी समय अपना संयम रोश में न लाए  अपनों को संयम में रखें फिर देखना संसार के दुखी इंसान के चेहरे पर मुस्कान आ जाए |अंत में यही कहूंगा कुलदीप शर्मा इंसान के अंदर अंदर उत्कर्ष हो हर इंसान के प्रति हर्ष हो अपनों से बड़ों का आदर के साथ शुभ लाभ करें आराधना भरी प्रेम प्रगति के नव चेतना हो अपने अंदर मर्यादा आदर्शों  हो|आपके विचारों से हर इंसान हर्षित एब  प्रफुल्लित हो |जाएगा इन विचारों को भलीभांति कर लेगा इंसान|
लेखक -  कुलदीप कुमार शर्मा अशोकनगर
(इटावा)

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