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May 28, 2021

लघुकथा रोटी का कर्ज laghukatha _Roti Ka Karj लेखक संदीप कुमार

 लघु कथा  (रोटी का कर्ज )                   

    बात कुछ दिनो पूर्व की है, मेरे मुहल्ले में तीन कुत्ते के पिल्ले ने जन्म लिया। वे अक्सर खेलते लड़ते मेरे घर के सामने आ धमकते थे।       


                        

     अचानक दो पिल्ले के बिछड़ने के बाद वह अकेला पड़ गया था और हमेशा उदास रहने लगा था। अपने साथियों के साथ उछल कूद करने वाले इस पिल्ले की उदासी मुझसे देखी नहीं जाने लगी, और मै कभी -कभी उसके साथ समय देने लगा, मानो मुझे थोड़ा लगाव हो गया था । उसे मैंने टोमी नाम भी दे दिया था।                                            अहले सुबह जब मै मॉर्निंग वॉक के लिये निकलता तो घर की बची रोटियाँ उसे आवाज लगाकर दे देता। और वह फुर्ती से खा कर मेरी और देखने लगताऔर प्यार से मै उसके सर पर हाथ फेर देता, अब यह मेरा दिनचर्या- सा हो गया था।                  

कुछ महीनों के बाद मेरे घर में एक छोटा सा प्रोग्राम था, कुछ मेहमान लोग आये थी। एक सुबह उनके बच्चे बाहर खेल रहे थे, तभी एक जहरीले सर्प  बच्चों के पीछे-पीछे रेंगते हुए आ रहा था, बच्चे इससे अंजान अपने खेल में व्यस्त थे। 

तभी टोमी की नजर उस सर्प पर पड़ी और बिजली की भाँति वह उस पर टूट पड़ा। अचानक हमले से सर्प तो लहूलुहान हो गया लेकिन उसे डस लिया। 

आवाज और शोर गुल सुनकर जब में बाहर निकला, तबतक देर हो चूकी थी। रोटी का कर्ज अदा कर टोमी निढाल हो चुका था........! 

                                लेखक -  संदीप कुमार                   

                              संपर्क:- पूजा हार्डवेयर स्टोर

                               इसरी बाजार (गिरिडीह)

July 31, 2020

लघुकथा - 15 अगस्त पर माँ की आश pndrah August par maa ki aasha

लघुकथा - 15 अगस्त पर माँ की आश


          पंकज की दादी 15 अगस्त की सुबह जल्दी से ही तैयार हो गयी थी।जैसा कि उसे मालूम था कि 15 अगस्त पर सभी टीवी के समाचार चैनलों पर भारत देश के सैनिकों को दिखाया जाता है।हर बार की तरह वह भी अपने पोते पंकज की एक झलक पाने के लिए टीवी के सामने बैठ गई। 65 साल की दादी को यह उम्मीद थी कि किसी ने किसी चैनल पर सैनिकों के इंटरव्यू के बीच में उसके फौजी पोते पंकज की झलक भी उसको दिखाई देगी और उसी इंतजार में उन्होंने सुबह से ही टीवी चला लिया।

          अचानक पंकज के पिता उनके कमरे में आए और उन्होंने अपनी मां की तरफ गुस्से से देखा और बिना कुछ कहे काफी गुस्से के साथ कमरे से बाहर निकल गए।पंकज की दादी का अभी पूरी तरह टीवी पर ही ध्यान था।कुछ समय बाद पंकज के पिता फिर कमरे में आए।इस बार अपनी मां से वह गुस्से से बोले क्या माँ तुम 26 जनवरी और 15 अगस्त पर टीवी चला कर बैठ जाती है।क्यों बार-बार भूल जाती हो कि तुम्हारा पोता पंकज दो साल पहले बॉर्डर पर दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो चुका है।

          यह कहते हुए पंकज के पिता की आँखों में आंसू आ गए और पंकज की दादी की आँखे भी काफी नम थी।लेकिन पंकज की दादी ने कहा बेटा मुझे टीवी पर जो भी सैनिक दिखाई देता है।मुझे उसमें अपना पोता ही दिखाई देता है और उन्होंने बड़े प्यार से अपने बेटे को गले से लगा लिया।इसके बाद माँ और बेटे दोनों ही नम आँखों से टीवी में आ रहे समाचार देखने लगे।


नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
मोबाइल 09582488698
65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001
June 23, 2020

लघुकथा नया पकवान (लेखक डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी) lekhak chandresh kumar chhatalani

नया पकवान

एक महान राजा के राज्य में एक भिखारीनुमा आदमी सड़क पर मरा पाया गया। बात राजा तक पहुंची तो उसने इस घटना को बहुत गम्भीर मानते हुए पूरी जांच कराए जाने का हुक्म दिया।

सबसे बड़े मंत्री की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई जिसने गहन जांच कर अपनी रिपोर्ट पेश की। राजा ने उस लंबी-चौड़ी रिपोर्ट को देखा और आंखें छोटी कर संजीदा स्वर में कहा, "एक लाइन में बताओ कि वह क्यों मरा?"

सबसे बड़े मंत्री ने अत्यंत विनम्र शब्दों में उत्तर दिया, "हुज़ूर, क्योंकि वह भूखा था।"

सुनते ही राजा की आंखें चौड़ी हो गईं और उसने आंखे तरेर कर मंत्री को देखते हुए कहा, "मतलब... मेरे... राज्य में... कोई... भू...खाथा।" यह कहते समय राजा हर शब्द के बाद एक क्षण रुक कर फिर दूसरा शब्द कह रहा था।

मंत्री तुरंत समझ गया और बिना समय गंवाए उसने उत्तर दिया, "जी हुज़ूर। वह 'भू... खाता'। इसलिए मर गया। यही सच है कि उसने भू ज़्यादा खा लिया था।"

रिपोर्ट में उस अनुसार बदलाव कर दिया गया और उस राज्य में 'भू' नामक एक नए पकवान का अविष्कार हो गया, जो काजू-बादाम और देसी घी से बनाया जाता था।
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मेरा परिचय निम्न है: 
नाम: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
शिक्षा: पीएच.डी. (कंप्यूटर विज्ञान) 
सम्प्रति: सहायक आचार्य (कंप्यूटर विज्ञान)

सम्पर्क 

फ़ोन: 9928544749
डाक का पता: 3 प 46, प्रभात नगरसेक्टर-5, हिरण मगरीउदयपुर (राजस्थान) – 313 002
यू आर एल:  http://chandreshkumar.wikifoundry.com

लेखन: लघुकथाकविताग़ज़लगीकहानियाँबालकथाबोधकथालेपत्र

प्रकाशित पुस्तकें व प्रकाशन वर्ष :- 
1. The Era of Cloud Computing, 2014, 
2. Rogopachar ki Vaidic evam Dharmik Vidhiya’n, 2014 and 
3. Semantic Web: Concepts, Technologies and Applications, 2016
4. 'उंगलियों पर जिंदा मछलीलघुकथा संग्रह अमेज़न किंडल पर प्रकाशित, 2019
5. 'प्रेरक बाल कथाएंसंग्रह अमेज़न किंडल पर प्रकाशित, 2019
6. 'हास्य-व्यंग्य कथाएं-1' संग्रह अमेज़न किंडल पर प्रकाशित, 2019
7. 'Three Laghukahas' Published on Amazon Kindle , 2019
8. 'बदलते हुए' - एकल लघुकथा संग्रह, 2020 

संपादन :
लघुकथा मंजूषा–3, सहोदरी लघुकथाअक्षय लोकजन
सम्मान:
प्रतिलिपि लघुकथा सम्मान 2018, ब्लॉगर ऑफ़ द ईयर 2019, शोध प्रवीण 2016, मगन शिक्षक रत्न 2015  एवं कुछ अन्य सम्मान 

पत्र-पत्रिकाओं का नाम जिनमें रचनाएँ प्रकाशित हुईं

मधुमति (राजस्थान साहित्य अकादमी की मासिक पत्रिका)लघुकथा पर आधारित पड़ाव और पड़ताल” के खंड 26 में लेखककथा समय (लघुकथा संग्रह)लघुकथा में किसान (साझा लघुकथा संग्रह)अविराम साहित्यिकीलघुकथा अनवरत (साझा लघुकथासंग्रह)कॉफ़ी हाउस (साझा लघुकथा संग्रह)लाल चुटकी (रक्तदान विषय पर साझा लघुकथा संग्रह)देश-विदेश की कथाएँ (लघुकथासंकलन/अशोक भाटिया)नयी सदी की धमक  (साझा लघुकथा संग्रह),  अपने अपने क्षितिज (साझा लघुकथा संग्रह)सपने बुनते हुए (साझा लघुकथा संग्रह)अभिव्यक्ति के स्वर (साझा लघुकथा संग्रह)स्वाभिमान (साझा लघुकथा संग्रह)बेटियाँ (सांझा काव्य संग्रह)वागर्थलघुकथा कलशविभोम-स्वरनव-अनवरतदृष्टि (पारिवारिक लघुकथा विशेषांक),दृष्टि (राजनैतिक लघुकथाविशेषांक)हिंदी जगत (विश्व हिंदी न्यासन्यूयॉर्क द्वारा प्रकाशित)हिंदीकुञ्ज,laghukatha.comopenbooksonline.comविश्वगाथाशुभ तारिकाअक्षर पर्वअनुगुंजनक्षितिज पत्रिका लघुकथा विशेषांक अंक 9 वर्ष 2018एम्स्टेल गंगा (नीदरलैंड से प्रकाशित)हिमालिनी (काठमांडूनेपाल)सेतु पत्रिका (पिट्सबर्ग)मिन्नी (पंजाबी पत्रिका)शोध दिशापलाश पत्रिकाककसाड़साहित्य समीर दस्तकअटूट बंधनसुमन सागर त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिकादैनिक भास्करदैनिक राजस्थान पत्रिकाकिस्सा-कृति (kissakriti.com), वेबदुनियाथाक्रम पत्रिकाकरुणावती साहित्य धारा त्रैमासिकसाहित्य कलश त्रैमासिक,मृग मरीचिकाअक्षय लोकजनबागेश्वरीसाहित्यसुधा (sahityasudha.com),  सत्य दर्शनसाहित्य निबंध,युगगरिमायुद्धरत आम आदमीजय-विजयशब्द व्यंजनासोच-विचारकिस्सा कोताहजनकृति अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिकासत्य की मशालsabkuchgyan.comरचनाकार (rachanakar.org), swargvibha.in,hastaksher.comekalpana.netthepurvai.comstorymirror.comhindilekhak.com,bharatdarshan.co.nzhindisahitya.orghindirachnasansar.combharatsarthi.comअमेजिंग यात्रा,निर्झर टाइम्सराष्ट्रदूतजागरूक टाइम्स, Royal Harbinger, pratilipi.comdawriter.comनजरिया नाउ,दैनिक नवज्योतिएबेकार पत्रिकासच का हौसला दैनिक पत्रसिन्धु पत्रिकावी विटनेसनवलसृजन सरोकार आदि में रचनाएँ प्रकाशित

लेखक
डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
June 01, 2020

रिक्शावाला की ईमानदारी Rikshawala ki imandari

लघुकथा :- रिक्शावाला की ईमानदारी 

बात करीब रात दस बजे की आस - पास की है,पूजा राजनगर रेलवे स्टेशन पर विश्वविद्यालय दरभंगा से काम काज निपटा कर आई, काफ़ी रात होने के कारण पूरा जगह सुनसान रहा, न गाड़ी नहीं कहीं आदमी, थोड़ी दूर पर एक रिक्शा रहा, वहां जाकर रिक्शा पर सवार हो गई, और क्या अपने घर चली गई

अपनी बस्ता तो ली पर रिक्शा पर ही काम की काग़ज़ की फाईल छोड़ दी , इस तरह दो दिन बीत गई, पूजा परेशान थी , कि कहां फाईल छोड़ दी, डर के मारे घर वालों को न कह पा रही थी, रिक्शावाला भी अपना रिक्शा लेकर दो दिन में कितने जगह गये आये पर वह फाइल देखा नहीं, फाईल रिक्शा वाला का बेटा देखा उसमें पैसे और रिजल्ट के काग़ज़ सब रहें, दौड़े - दौड़े वह पापा के पास आया, और बोला पापा पापा यह फाईल पूजा नाम की लड़की की है , इसमें पैसे और उसके काम के काग़ज़ भी है, पता न कहां रहती है, क्यों न पापा इस फाइल को पुलिस स्टेशन में दे आये , न बेटा सब पुलिस ईमानदार ही नहीं होता , पैसों रख लेंगे, काग़ज़ कहीं फेक देंगे , कुछ देर हमें सोचने दो हां हां मंगलवार को रात दस के आसपास एक लड़की को स्टेशन के पास ही ले गये रहे, जाकर उसके घर के पास पता लगाता हूं, उस मौहल्ला में जाकर रिक्शा वाला पूछा एक आदमी से यहां कोई पूजा नाम की लड़की रहती है क्या , तो वह आदमी बोला हां क्या काम है मैं ही हूं उसका पिता, रिक्शावाला साहब यह फाईल आपकी लड़की की है , इसमें पैसे और उसकी काम काज की काग़ज़ है, ये लीजिए साहब , फिर रिक्शावाला जाने लगा, तब पिता वैसे कैसे जाते हो , आज के जमाने में तुम्हारे जैसे ईमानदार कहां, अपनी ईमानदारी की परिणाम तो लेते जाइए, कल से आप हमारे कार्यालय में काम करने आइये ,फिर क्या रिक्शावाला का जीवन अन्धेरा से रोशन हो गया, जो रिक्शा चलाकर महीने में पाँच हजार भी नहीं कमा रहे थे,वह अब महीने के पन्द्रह हजार कमाने लगे, कैसे तो ईमानदारी के कारण ।
 रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत
May 10, 2020

रफ़्तार और मां की ममता Raftaar or maa ki mamta

लघुकथा 

रफ़्तार और मां की ममता

जिंदगी बहुत ही तेज़ रफ़्तार से दौड़ रही थी। मार्च माह का अंतिम सप्ताह अपनी इस दौड़ में तीव्रता से अपनी  शक्ति दिखा रहा था।तब ही अचानक 24मार्च को यह पता लगा कि इस दौड़ को यहीं थम जाना है।भारत और विश्व में एक महामारी ने अपने कदम पसार लिए हैं जिसका नाम कोरोना है। भारत में लाक डाउन का निर्णय लिया गया।
अब क्या था जो जहां था वो वहीं पर रुक गया।पर धीरे धीरे लोगों ने अपने अंदाज में अपने आप को घरों में रहकर सुरक्षित रखने का निर्णय लिया।

हां इस लाक डाउन का सबसे सकारात्मक  पल माताओं ने महसूस किया।  मेरी एक सहेली है जिसकी दो बेटियां हैं दोनों ही नौकरी में व्यस्त थी अचानक इस दौड़ को लाक डॉउन ने रोक दिया था।दोनों की शादी जून में होने वाली थी।पर यह भी रुक गई। मां जो बेटियों की शादी की हर समय चिंता में रहती थी उसे आज सुख महसूस हुआ ।क्योंकि उसे अपनी बेटियों के साथ कुछऔर   समय बिताने का अवसर मिल गया ।
मां की भावना के आगे कर्तव्य कुछ देर के लिए थम गए और  मां की ममता ने विजय तिलक लगा दिया।

मनीषा व्यास
May 01, 2020

कोरोना का डर Corona ka dar

लघुकथा - कोरोना का डर

         पिछले कुछ दिनों से हर जगह कोरोना के बारे में लगातार खबरे चल रही है।अनिल इन बातों से काफी परेशान है।हर समय मन मे एक व्याकुलता बनी हुई है।अनिल एक पचास वर्षीय व्यक्ति है और एक हार्ट पेशेंट भी है।लगातार इन खबरों से एक घबराहट सी उसके मन मे बन गयी हैं।

          21 दिन के लॉक डाउन के कारण वो घर से भी कहीं नही निकल पा रहा था।लेकिन उसके इर्द गिर्द ये खबरे लगातार चल रही थी। एक ह्रदय रोगी होने के कारण उसे इन बातों से काफी डर लग रहा था।घर के अंदर भी हर स्थिति में उसे इन बातों को सुनना ही पड़ रहा था।

          श्याम को अपने मन को खुश करने के लिए वह पार्क में जाकर बैठा। घर के पास ही पार्क था इसलिए उसे इसमें बैठे में कोई आपत्ति नहीं लगी। लेकिन वहाँ भी जितने भी लोग उसके आसपास में बैठे हुए थे।वो सब भी कोरोना से मरने वाले लोगों के बारे में ही बातें कर रहे थे यहां आकर भी उसका मन काफी व्याकुल रहा।

           सारी बातों से थक कर दोबारा वो अपने घर चला गया।घर पर आने के बाद अपने मन से एक मूवी लगाई। तभी उसके बेटे ने बोला पापा कहीं समाचार लगा लो।समाचार लगाने के बाद फिर से वही खबरें उसे परेशान करने लगी।परेशान होकर अनिल अपने कमरे में पहुंचा और कमरे में जाने के बाद सो गया उसका मन काफी परेशान था।

          अनिल के मन मे कोरोना का ख़ौफ़ कुछ इस कदर हो गया था कि उसे बहुत देर तक तो नींद ही नही आई और ना जाने कब उस की आँख लग गयी और वो सो गया।सुबह जब अनिल के बेटे ने उसे काफी देर से उठाया और अनिल नही उठा।तब अनिल के बेटे को पता चला कि अनिल अपनी जीवन खो चुका था।

         कोरोना से जो होना था वह तो बाद की बात है लेकिन बार-बार उन्हीं बातों को सुनते-सुनते अनिल के दिल पर इतना जोर पड़ा कि शायद रात को ही उसने अपने प्राण त्याग दिए।

           *कहानी का सार सिर्फ इतना है कि लोगों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस तरीके के रोगियों के सामने कोरोना वायरस से होने वाली परेशानियों के बारे में हर समय जिक्र नहीं करते रहना चाहिए। कहीं ऐसा ना हो कि लोगों की बातें किसी के लिए खतरनाक बन जाए। कृपया ऐसे रोगियों से इस तरीके की बातें लगातार ना करें और उन्हें इन बातों से दूर रखे।*

नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
मोबाइल 09582488698
65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने 
ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001
May 01, 2020

आज का शेखचिल्ली Aaj ka shekhchilli

लघुकथा - आज का शेखचिल्ली 


          राम और अमर बचपन के बहुत अच्छे मित्र हैं।दोनों इस वक्त दसवीं कक्षा के विद्यार्थी है।एक दूसरे से हर बात शेयर करते हैं।कोरोनावायरस संकट के समय जहां हर आदमी अपने-अपने घरों में रुका हुआ है और सिर्फ जरूरत के कामों से ही घर से बाहर जा रहा है।ऐसे दौर में भी अक्सर राम ने देखा कि अमर बिना मास्क लगाए घर से बाहर घूमता रहता है।

          सब पाबन्दियों को नकारता हुआ वह अक्सर पार्क में सुबह और शाम घूमता नजर आता है।यहां तक कि अपनी रोज सुबह रनिंग करने की आदत के कारण पार्क में रोज रनिंग करने और योगा करने से भी बाज नही आ रहा है।

           राम ने उसे बातों ही बातों में कई बार समझाया यार रनिंग और योगा का टाइम तो आगे बहुत मिलेगा। लेकिन इस समय थोड़ी सावधानी रखनी चाहिए और अपने घर में ही रहने की कोशिश करनी चाहिए और हो सके तो घर मे रहकर ही योगा करो।

          राम ने उसे समझाया कि केवल जरूरी काम से ही बाहर निकलो।अमर बचपन से बड़बोला किस्म का लड़का है।उसने बड़े ही लापरवाही से राम को जवाब दिया और कहाँ "अरे यार कुछ नहीं होता मैं किसी से नहीं डरता। कोरोनावायरस मेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला,तुम बहुत ज्यादा डरते हो।

           धीरे-धीरे जब लॉक डाउन का समय समाप्त होने का समय आया तो अचानक शहर के कुछ हॉट स्पॉट जगह को सील करने की खबर आई।राम ने अब भी अमर को समझाया,यार अब तो बहुत ही सावधानी रखने की जरूरत है।माना कि हमारा एरिया सील नहीं हो रहा लेकिन हमारी कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि उसको सील करने की नौबत ही ना आए।

               फिर भी अमर ने राम की बात नही मानी उसका जवाब फिर वही था।अरे यार कुछ नहीं होता तू डरता बहुत है,जो होगा देखा जाएगा।अमर की लगातार इस तरीके की बातो से राम का भी मन को भटकने लगा।वह काफी समय से घर में पड़े-पड़े बहुत परेशान हो गया था।

          उसने विचार बनाया कि वह भी अमर की तरह सुबह-सुबह घूमने जाएगा और कुछ रनिंग करने की भी कोशिश करेगा।अमर भी राम की इस बात से बहुत खुश था और शाम को दोनों ने पार्क में घूमने का विचार बनाया।सब लोग अंदर थे लेकिन दोनों पार्क में घूमने लगे।

          आमतौर पर राम को घूमने फिरने और रनिंग की आदत नही थी।वह अपने शरीर पर ज्यादा ध्यान नही देता था।उसे लगा इस लॉक डाउन के समय मे वह भी अपने शरीर को काफी हद तक घूमने का आदि बना लेगा।खैर अमर पार्क में रनिंग करने लगा लेकिन क्योंकि राम को रनिंग करने की आदत नहीं थी तो उसने पार्क में धीरे धीरे चलना शुरू कर दिया।

           कुछ देर बाद राम को पुलिस के गाड़ी की हॉर्न की आवाज जोर-जोर से सुनाई पड़ने लगी।राम बिना अमर की तरफ ध्यान दिए अपना धीरे-धीरे पार्क में घूम रहा था।अचानक पार्क के अंदर पुलिस वाले आ गए और ठीक राम के सामने खड़े हो गए।

          राम ने चारों तरफ अमर को देखा तो उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।उसने देखा कि अमर बहुत तेजी से भागता हुआ पार्क के बाहर निकल गया और अपने घर की तरफ भाग गया।वह अब समझ गया कि एक शेखचिल्ली की बातों में आकर आज वह फस गया है।राम खुले पार्क में पुलिस वालों के हाथों दंड स्वरूप अपनी गलती पर उठक-बैठक लगा रहा था।उसने अपने कान पकड़े और पुलिस वालों से माफी मांग कर अपने घर की तरफ चल पड़ा।

           *कहानी का सार सिर्फ इतना है कि हर समय लोगों की बातों पर ध्यान नही देना चाहिए और अपना दिमाग भी लगाना चाहिए।क्योंकि कुछ लोग अगर बातों को गलत तरीके से बता रहे हैं तो जरूरी नहीं है संकट पड़ने पर वह आपका साथ देंगे।ऐसे मित्रों से कान पकड़िए और इनकी बातों में ना आने का प्रयास करें।अक्सर ऐसे शेखचिल्ली आपको अपने इर्द गिर्द काफी दिखाई देते हैं।इनसे बचने का प्रयास करें।*

नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
मोबाइल 09582488698
65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने 
ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001
April 27, 2020

रशीद ग़ौरी... लघुकथा पीड़ित Laghukatha pidit

       पीड़ित 


      सड़क से गुजर रहे मोटर साइकिल सवार दो पुलिस के जवानों ने  उस वीरान सड़क पर एक तन्हा जीव को वहां से विचरण करते हुए देखा तो उन्होंनें तत्काल गाड़ी रोक दी।

     ' अबे... कहां जा रहा है... कहां से आया...और...इस  थैली में...? ' 

     जवाब में, उसने सामने वाली शान से खड़ी उस बहुमंजिला इमारत की ओर इशारा किया। उसका इशारा पूरा होता उससे पहले ही, उस भूखे और सूखे हुए कमजोर आदमी की टांगों पर कानून के उल्लंघन में डंडे बरस गए। वह पीड़ा से बिलबिला उठा। इसी बीच हाथ में मजबूती से पकड़ी हुई थैली गिर पड़ी। और... उस बिल्डिंग के कचरा पात्र में से बीन कर लाए दो चार फल, दो कच्चे आलू, एक टमाटर और दो सूखी रोटियां उस सूनी सड़क पर खनखन करती हुई बिखर गई। रोटियां बिल्डिंग के चौकीदार ने दी थी। 

     उसे, जल्दी से अपने घर जाने की सख्त  हिदायत देते हुए वे पुलिस वाले आगे बढ़ गये। 

      भूख के वायरस से पीड़ित वह गरीब आदमी,  सड़क पर बिखरे अपने कीमती सामान को जल्दी-जल्दी समेटने में लग गया। 
                          .....
- रशीद ग़ौरी, सोजत सिटी।
- मौलिक- अप्रकाशित।
April 21, 2020

रोबोट Robot

रोबोट


सुंदर चंचल नवयौवना छनकती घुंघरुओं की आवाज के साथ पूरे घर मे डोलती। खिलखिलाती हँसी जैसे पूरा जहाँ खुद में समेटने को आतुर।
अरे ये कैसे बेहुदे ढंग से हँसती हो। बस हँसी ठट्ठा के अलावा भी कुछ सीखा
ये आज कैसी सब्जी बना दी तुम्हे पता नही मुझे सब्जी में मीठापन पसंद नही।
उफ्फ्फ पार्टी में चल रही हो न कि किसी बाबा जी के सत्संग में , ये कैसी सारी पहन ली।
ये क्या हर वक्त कुछ न कुछ बोलती ही रहती हो। जरा देर शांत नही बैठ सकती। मैं भी बाहर से थका हुआ आता हूँ।
अरे घूमने जा रही हो चार दिन को ये महीने भर को , ये कितने कपड़े भर लिए।
खाते वक्त इतनी आवाज़ क्यों आती है, फूहड़ता की निशानी है।
आज घर मे प्रवेश करते वक्त किसी भी प्रकार की कोई आवाज़ नही हुआ । पूरा घर व्यवस्थित था। कही गयी है लगता ,शायद मंदिर पर इस वक्त ।
तभी गिलास में पानी और हलवा लिए आती दिखी जो सामने रखकर चली गयी बिना किसी आवाज़ के।
सब कुछ करीने से था । हलवा हमेशा की तरह स्वादिष्ठ था। उसका मन व्यथित होने लगा।
क्या चुभ रहा था ।..?
खाने की मेज सज चुकी थी । सब कुछ उसी की पसंद का था ।पेट भर गया। पर कुछ चुभ रहा था।
क्या था...  क्या था....
प्रत्येक चीज उसकी इच्छानुसार बिना कहे हो रही थी।
वो हर जगह घूम आया देख आया ।
सामने बिना आवाज़ किये काम करती रोबोट दिखी जो कंगन पड़े हाथ और बिना पायल के पैर और भावहीन चेहरा लिए थी।
   अब उस घर मे चंचल खिलखिलाती नवयौवना न थी वो रोबोट में परिवर्तित हो चुकी थी।
©
डॉ ज्योत्सना गुप्ता
गोला गोकरननाथ
जनपद खीरी
February 27, 2020

प्यार लाया परिवर्तन Pyaar Laya Parivartan

प्यार लाया परिवर्तन


कितने अजीब होंगे वे लोग जो प्यार जैसी फालतू बातों में पडकर अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेते हैं ।अरे जिंदगी तो ऐश करने के लिए है। आसपास जाने कितने रंगीन चेहरे हैं दिल बहलाने के लिए। जिसे इशारा कर दो, पलक झपकते ही चली आएगी।" दोस्तों के बीच प्यार का मजाक उड़ाने वाला रोहित आज हतप्रभ उसके गाल पर तमाचा जड़ कर जा रही शेफाली को अपलक देख रहा था। उसका एक हाथ बाइक का हैंडल पकड़े हुए था और दूसरा गाल सहला रहा था दरअसल शेफाली कुछ दिन पहले ही उसके कॉलेज में आई थी सीधी साधी साधारण वेशभूषा वाली शेफाली ज्यादा लोगों से घुल मिल नहीं पाई थी। क्लास की लड़कियों से उसने रोहित और उसके दोस्तों के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था।
शेफाली रोहित तो क्या, किसी भी लड़के की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखती थी ।लड़कों को यह गंवारा नहीं था। इसलिए उन्होंने रोहित को उकसाया कि वह शेफाली को अपने जाल में फंसा कर दिखाए।यदि उसने ऐसा कर दिया तो उसे मनचाही जगह पर पार्टी मिलेगी ।रोहित ने उनके इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार करते हुए हामी भर दी। उसे अपने 'गुड लुक्स' और' अमीरी 'पर कुछ ज्यादा ही घमंड था। इन्हीं के दम पर लड़कियां उसकी ओर सहजता से आकर्षित हो जाती थीं। रोहित ने शेफाली का ध्यान आकृष्ट करने के लिए जतन करने प्रारंभ कर दिए किंतु सब बेकार। अंत में एक दिन झल्लाकर कॉलेज कैंपस में सबके सामने उसने शेफाली का हाथ पकड़ लिया और बदले में शेफाली ने उसे झन्ना टेदार तमाचा रसीद करते हुए दोबारा ऐसा न करने की चेतावनी दे डाली। रोहित को लगा कि कहीं शेफाली कॉलेज प्रबंधन से शिकायत न कर दे और बात घर तक पहुंच जाए लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
रोहित रात भर शेफाली के बारे में सोचता रहा।उसे न जाने क्यों उसके ऊपर क्रोध भी नहीं अा रहा था।उसके जीवन में यह पहली लड़की थी जिसे उसके बाह्य व्यक्तित्व और आडंबर से कोई सरोकार नहीं था।सम्भवतः इसी कारण से वह चाहकर भी खुद को उसके विचारों से मुक्त नहीं कर पा रहा था।उसे आज पहली बार अपने व्यवहार से ग्लानि का अनुभव हो रहा था। उसे पहली बार यह एहसास हो रहा था कि लड़कियों को लेकर उसकी सोच कितनी गलत थी। हर लड़की केवल शारीरिक सौंदर्य और धन वैभव पर फ़िदा नहीं होती। कितनी अलग है वह।उसने शेफाली से माफी मांगने का निर्णय लिया।वहां शेफाली को भी यह महसूस हो रहा था कि उसे रोहित को थप्पड़ नहीं मारना चाहिए था।
अगली सुबह नई ताजगी लिए थी। रोहित कॉलेज पहुंचा और शेफाली के आते ही उससे माफी मांगी और यह भी कहा कि यदि वह चाहे तो वह सबके सामने भी उससे माफी मांग सकता है। शेफाली ने उसे ऐसा कुछ न करने को कहते हुए कहा कि तुम्हें अपनी गलती का एहसास है यही काफी है। मुझे अब तुमसे कोई नाराजगी नहीं है। मैं भी तुमसे कल की बात के लिए माफी मांगना चाहती हूं। मुझे तुम पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था। रोहित ने उसके सामने दोस्ती का प्रस्ताव रखा तो उसने स्वीकार कर लिया क्योंकि उसने यह अनुभव किया कि रोहित इतना भी बुरा नहीं है जितना कि वह समझती थी। रोहित को शेफाली का साथ अच्छा लगने लगा था। उसके कहने पर वह नियमित लेक्चर अटेंड करने ,लाइब्रेरी जाने और पढ़ाई में मन लगाने लगा था। उसे शेफाली की छोटी से छोटी बात और सलाह याद रहती थी।सभी लोग उसके व्यवहार में आए इस परिवर्तन से आश्चर्यचकित थे। खराब स्वास्थ्य के कारण शेफाली दो दिनों तक कॉलेज नहीं आ सकी तो वह बेचैन हो उठा।उसने उसका फोन पर हाल चाल पूछा और लापरवाही के लिए डांटा भी। शेफाली को भी उसकी डांटऔर उसकी परवाह अच्छी लगी।दोनों ही एक दूसरे का ख्याल रखते थे और ज्यादातर वक्त साथ गुजारते थे।इस दोस्ती में छिपे असीम प्यार को दोनों ही समझ नहीं पा रहे थे।बहरहाल वार्षिक परीक्षा में जब वह प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ तो शेफाली ने उसे खुशी से गले लगा लिया ।वह अंदर तक रोमांचित हो गया।शेफाली भी शरमाकर चली गई।
 रोहित सोच में पड़ गया कि कहीं यही तो वह सच्चा प्रेम नहीं है जिसके बारे में वह आज तक सुनता आया था।हां,यह वही सच्चा प्रेम था जो उसके जीवन में नयापन लेकर आया था।

प्रेषक:कल्पना सिंह
पता:आदर्श नगर, बरा, रीवा ( मध्यप्रदेश)
February 13, 2020

स्वाबलंबी जीवन पथ swawlambi jivan path

लघुकथा
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स्वाबलंबी जीवन पथ

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सोहन और सरिता की शादी हुई दोनों बहुत खुश थे और अपने जीवन को लेकर गंभीर भी।सरिता का मैके सोहन की अपेक्षा आर्थिक रूप से सुदृढ़ थी।जबकि सोहन एक साधारण परिवार से था और एक छोटी सी नौकरी करता था पर वह मेहनती था।

कुछ समय पश्चात सोहन की नौकरी छुट गयी सोहन को परेशान देख उसकी पत्नी ने सोहन के जानकारी के वगैर अपने मैके से मदद मांग ली।इस बात की जानकारी जब सोहन को हुई तो उसे बहुत दुख हुआ और उसने पत्नी से केवल इतना ही कहा तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।
 
दोनो के बीच लंबी झडप उसी समय से आरम्भ हो गयी।दरअसल सोहन एक खुद्दार और स्वावलंबी इंसान था।इस बात को उसकी पत्नी कभी समझने की कोशिश नही कर पा रही थी।जिसके कारण दोनो की दूरियां बढ़ती गयी।इधर सोहन अपने परिश्रम से खुद का रोजगार लगा दिया था जिसके कारण वह घर पर समय नही दे पाता पर पत्नी कुछ और समझती और झंझट का सिलसिला बढता ही जा रहा था।
 
आखिर कार वही हुआ जो झंझट के बाद अक्सर होता है दोनों का तालाक।सोहन आज पैसे वाला है पर अकेला?उसकी पत्नी पैसे के साथ है लेकिन अकेली? गलती उन माँ बाप की जिसने दामाद के पूछे वगैर उनके घरेलू जीवन में मदद देकर गलती की और दोनों के जीवन को अकेली कोठरी मे कैद कर दिया।

                                   आशुतोष
                                पटना बिहार
February 05, 2020

लघुकथा दर्प laghukatha darp

लघुकथा-"दर्प"


            " ये क्या साहब जी, केवल बीस रुपये आपने दिया है?आपके पड़ोसी तिवारी जी ने तो पूरे एक सौ एक दिए हैं।"
          कोई चंदा मांगने वाला कह रहा था।
          "ओह ऐसा क्या?"
         "जी साहब यह चंदे की रसीद आप देख लीजिए।" चंदे मांगने वालों ने कहा।
          राय साहब ने चंदे की रसीद को देखा। वाकई उनके पड़ोसी तिवारी जी ने पूरे  एक सौ एक रुपए दिए थे। वे चुपचाप घर के अंदर गये और पचास का  नोट देते हुए बोले,"लो भाई, अब पचास तो चलेगा न ?"
            चंदा मांगने वालों ने खिसियानी आवाज में कहा," क्या भाई साहब, आप भी इतनी कंजूसी कर रहे हैं। देखिये आपके सामने वाले फ्लैट में रहने  वाले भट्ट जी ने एक सौ इक्यावन रुपए दान किये हैं।"
         तभी राय साहब की धर्मपत्नी बाहर निकलीं। उन्हें जब पता चला कि उनके पड़ोसी तिवारी जी ने एक सौ एक रूपये और सामने वाले पड़ोसी ने एक सौ इक्वान  रूपये दिए हैं तो उसने अपने पति को घर के अंदर बुलाकर कहा,"आप भी न जब देखो तब मेरी नाक कटवाने पर तुले रहते हो। अरे, जब सारी पड़ोसिनें किटी पार्टी में मिलेंगी तो सब  मुझे नीची नजरों से देखेंगी ।वे खूब बातें बनाएंगी ।मेरा रुतबा तो चला जायेगा न? ऐसा करो तुम उन चंदे वालों को दो सौ इक्यावन रूपये दे दो। आखिर हम किसी से कम  थोड़े न हैं।"
         ऐसा कहते हुए उनके चेहरे पर दर्प झलकने लगा।
   

             डॉ. शैल चन्द्रा

            रावण भाठा, नगरी
            जिला-धमतरी
            छत्तीसगढ़
February 05, 2020

मेरी आमदनी, मेरी तनख्वाह, Meri tankhwah vetan

लघुकथा

               मेरी तनख्वाह


              "सुनो जी, मुझे थोड़े पैसे चाहिए।क्या है कि पंद्रह दिनों बाद जया की सगाई है और मेरे पास कोई ढंग की साड़ी नहीं है।एक अच्छी सी मुझे साड़ी लेनी है।"
        विभा अपने पति से कह रही थी।
       " तुम्हारी आलमारी तो साड़ियों से भरी हुई है। फिर तुम्हारी नहीं विभा की सगाई है। तुम क्या करोगी वहाँ नई साड़ी पहन कर?"
         पति का ऐसा बेतुका जवाब सुनकर विभा मन मसोस कर रह गई।
       विभा एक सरकारी द्फ्तर में क्लर्क है।अच्छी खासी तनख्वाह है पर पूरी तनख्वाह  पति के  हाथों में रहती है। पहले ज़माने में नकद राशि तनख्वाह में मिलती थी पर अब तो बैंक खाते में पूरी तनख्वाह जमा हो जाती  है और एटीएम विभा के पति के हाथों में रहता है।
            आज सुबह विभा की मम्मी का फोन आया कि उसके पिता को दिल का दौरा पड़ा है। हॉस्पिटल में एडमिट हैं। ऑपरेशन में पचास हजार की जरूरत है।  विभा ने यह सुना तो वह सबसे पहले बैंक गई। पास बुक उसने आलमारी से चुपचाप निकाल लिया था। उसने अपने खाते में से पचास  हजार निकाला  और  अपनी मम्मी के पास हॉस्पिटल में जमा करवा दिए। ऑपरेशन सफल रहा।
         इस बात को बीते आज पन्द्रह दिन बीत गए।आज विभा के पति पूछ रहे थे-"विभा,तुम्हारी तनख्वाह में से पूरे पचास हजार रुपये निकाले गए हैं।किसने निकाला ?"
          यह सुनकर विभा सहम गई। उसने डरते -झिझकते हुये कहा," वो क्या था पापा को दिल का दौरा पड़ा था तो  उन्हें  ऑपरेशन के लिए मैंने दिए।"
         " क्या? " विभा का पति दहाड़ा। "तुमने अपने मायके वालों को मुझसे बिना पूछे पचास हजार दे दिए।  तुम्हारी हिम्मत बहुत बढ़ती जा रही है। मेरे घर में मेरी मर्जी के बिना  एक पत्ता भी नहीं हिलना चाहिए समझीं ? 
       "मेरा अपना पैसा है। मेरी मेहनत का पैसा है। मेरे माता-पिता ने मुझे इस योग्य बनाया। क्या मेरी कमाई  पर मेरा बिल्कुल हक नहीं है? पढ़ी -लिखी नौकरीपेशा महिलाओं को देखकर  लोग सोचते हैं कि अब महिलाएं शोषण मुक्त होंगी ,पर यह सोच कितना गलत है। आप  कान खोलकर सुन लीजिये ।आज के बाद मेरी कमाई पर सिर्फ मेरा हक होगा।आप मुझे विवश नहीं कर सकते।अब मेँ बेबस बन कर नहीं रहूँगी।मेरे माता -पिता का  मेरे आलावा और कोई भी नहीं है। उनकी देखरेख करना भी मेरी जिम्मेदारी है। " विभा ने दृढ़तापूर्वक कहा।
                     
       विभा का अचानक यह बदला हुआ रूप देखकर विभा का पति सकते में आ गया। 
                  डॉ.शैल चन्द्रा
                 रावण भाठा, नगरी
                 जिला-धमतरी
                 छत्तीसगढ़
February 05, 2020

असली शिक्षा Real Education, Right Education

लघुकथा

            असली शिक्षा

              
             उस पॉश कालोनी के सेक्रेटरी ने कॉलोनी में प्रतिभावान बच्चों के सम्मान करने हेतु एक कार्यक्रम आयोजित किया था। उस कॉलोनी केअधिकांश बच्चों ने अच्छे -अच्छे अंक लेकर परीक्षा उत्तीर्ण  कर कॉलोनी का नाम रोशन किया था।
           कॉलोनी के टॉपर बच्चों के बारे में उनके माता-पिता खूब बढ़ा -चढ़ा कर बता रहे थे। तभी वहाँ एक वृद्धा जैसे -,तैसे लाठी टेकते हुए आई और गुस्से से कहने लगी -"इस कॉलोनी के बच्चे जरूर इम्तिहान में अच्छे अंक लाये होंगे पर इन्हें केवल किताबी ज्ञान ही प्राप्त हुआ है ।तभी तो  इन शैतान बच्चों  ने मिलकर मुझ जैसी बूढ़ी और असहाय महिला का सहायता करने की बजाय मेरे पीछे अपना कुत्ता छोड़ दिया था । जब में डर कर दौड़ने का प्रयास करने लगी तब गिर पड़ी ।ये बच्चे मेरे इस हाल पर ताली बजा-बजा कर हँसते रहे ।मजा लेते रहे। आज इनकी वजह से मेरे एक पैर की हड्डी टूट गई है। अरे!ऐसे कोरा किताबी ज्ञान का क्या फायदा जहाँ  माता-पिता अपने बच्चों को नैतिकता और अच्छा संस्कार न सिखा पाए। असली शिक्षा तो  अच्छे व्यवहार का होना चाहिए।"
           उनकी इस बात को सुनकर  वहाँ उपस्थित  सभी लोगों ने उनका समर्थन किया।
              डॉ.शैल चन्द्रा
              रावण भाठा, नगरी
              जिला-  धमतरी
              छत्तीसगढ़
February 05, 2020

लघुकथा अनुसरण Laghukatha anusaran

लघुकथा-

              "अनुसरण"

               सरकारी दफ्तर में मिश्रा जी एक  क्लर्क से बहस कर रहे थे। कह रहे थे-"अरे भई, इतने छोटे से काम के आप पांच सौ मांग रहे हैं। यह काम तो सौ पचास में निबट जाता है।"
          क्लर्क कह रहा था-"मिश्रा जी , ये कोई सब्जी मंडी नहीं है ।जहाँ मोल- भाव हो। यह  तहसील ऑफिस है। क्या समझें? हमारे बड़े साहब दस-बीस हजार के बिना तो बात भी नहीं करते तो हम जैसे छोटे कर्मचारी अब हजार-पांच सौ तो लेंगे ही क्योकि हमारे साहब के इज्जत का सवाल है। अब आपही बताइये जैसे मुखिया होगा ।उनके मातहत भी  उनका ही अनुसरण करेंगे  न भई?"
        यह कहते हुये क्लर्क ने अपने मुँह में  पान का बीड़ा ठूंस लिया।
                डॉ. शैल चन्द्रा 
                रावण भाठा, नगरी
               जिला- धमतरी छत्तीसगढ़
February 05, 2020

छुट्टियां chhuttiyan

लघुकथा-"छुट्टियाँ"


        "मेम साहब मुझे चार दिन की छुट्टी चाहिए। क्यों कि मेरा बेटा बहुत बीमार है। डॉक्टर ने उसे टाइफाईड बताया है और कहा है कि उसकी अच्छी तरह देखभाल करूं।"
          नौकरानी ने मालकिन से उदास भरे स्वर से कहा।
         "ओहो!तुमको तो बस आये दिन छुट्टी मारने का बहाना चाहिए।" मालकिन ने क्रोध भरे स्वर से कहा। तभी मालकिन का मोबाईल बज उठा।उनकी भाभी का फोन था।वे कह रहीं थीं-"शीला, तुम्हारे भैया का प्रमोशन हो गया है।इसी ख़ुशी में हम  सबको टूर पर गोवा ले जा रहे हैं।तुमको चलने को कह रहे हैं पर मैंने कहा कि तुम सरकारी कर्मचारी हो न? छुट्टी मिलें न मिले? बोलो क्या इरादा है?"
       मालकिन चहकते हुए मोबाईल पर कह रही थीं-" भाभी बस आप टिकिट बुक करवा लीजिये ।अभी मेरे पास इ. एल. यानि कि अर्जित अवकाश मेरे खाते में जमा है बस एक बढ़िया सा बहाना बनाकर दस दिनों का अर्जित अवकाश स्वीकृत करवा लुंगी फिर हमारी तो मजे ही मजे  होंगे।"
           यह सुनकर नौकरानी बुदबुदाते हुए बोली-",काश! हमारे खाते में  भी ऐसी छुट्टियाँ होतीं तो हम भी मजे कर लेते।"
       मालकिन ने सुना तो पूछा,' तुमने कुछ कहा क्या?"
        नौकरानी ने कहा, " नहीं मेम साहब, मेँ तो ऐसे ही राम का नाम ले रही थी।"
      वह सोचने लगी ।यदि वह ज्यादा छुट्टी मांगेगी तो कहीं मालकिन उसकी हमेशा के लिए  छुट्टी न कर दें। वह बेबस सी  मालकिन को देखने लगी।

             डॉ. शैल चन्द्रा

            रावण भाठा, नगरी
           जिला-, धमतरी
January 19, 2020

लघुकथा चंद सिक्के..... Chand sikke

लघुकथा - चंद सिक्के

ये क्या है पिता जी, आप हर महीने पञ्च हज़ार रुपये मंदिर में क्यों रख आते हो। ये जो पुजारी है लूट लेता है आपको । वैसे आपकी पेन्सन पर अपना हक नही जता रहा पर ये फिजूल खर्च जरुरी है क्या..?
हमें तो हमेशा  खर्च को लेकर चिल्लाते ही हो, पैसों की कद्र करो , जरूरत के अनुसार खर्च करो।
अभी कल नेहा को दो सूट खरीदने पर कितना सुनाया। और अब आप क्या कर रहे हो..???
विनायक चौहान अपने जवान बेटे की सारी बाते मूक बनकर सुनते रहे। ऐसा नही की उनके पास जवाब नही था बस वो देना नही चाहते थे।
अगले महीने फिर विनायक चौहान ने बैंक से पैसे निकाले और उसी मंदिर में देने निकल पड़े। आज इनके पीछे पीछे उनका बेटा भी था।वो देखना चाहता था कि पुजारी इन पैसे का क्या करेगा।
जैसे ही पिता ने पुजारी को पैसे दिए वो दोनों हाथ जोड़ कर नमन करने लगा। आप पीछे 25 साल से ये क्रम दोहरा रहे हैं। वो चंद रूपए तो कब के अदा हो गए।
नही पुजारी जी , मुझे पैसे का मूल्य पता है तब वो पांच हज़ार मेरे लिए करोड़ो रूपये के बराबर थे । ये तो कुछ भी नही,....
और  विनायक चौहान  अपने घर की ओर निकल पड़े। बेटे को ये सब माजरा समझ नही आया।
पिता जी आज आपको बताना ही होगा .... क्या मुझे ये जानने का अधिकार नही।
विनायक चौहान का चेहरा पीला पड़ रहा था।
बात तब की है जब हमारी शादी को 7 वर्ष हो चुके थे। । अब जाकर संतान सुख की सूचना मिली थी , परंतु ऑपरेशन की नौबत आ गयी जैसे तैसे कुछ पैसों का इन्तजाम तो हो गया  पर अभी भी पैसे कम पड़ रहे थे और उस पर भी दोनों में से एक को ही बचाया जा सकता था जहाँ कही से मांग सकता था देख लिया । तुम्हारी माँ दर्द से तडप तड़प कर बेहोश हो गयी, हालत लगातार ख़राब होती जा रही थी, ऐसे वक्त में ईश्वर के अलावा कोई और रास्ता नही दिखा , वही मंदिर में किसी चमत्कार की आशा लिए बैठ गया। तभी सेठ गिरिजा दयाल ने अपने पुत्र के होने की ख़ुशी में पांच हज़ार एक रूपये चढ़ाये। मुझे वो रुपये देखकर लालच या ये खो अँधा हो गया, और चुपके से वो रुपये उठा लाया।मुझे ऐसा करते पुजारी बाबा ने देख लिया था पर नज़रअंदाज करते हुए दूसरे काम में लगे रहे । तुम्हारी माँ और तुम दोनों ही बच गये। पर मैं एक अपराधबोध में घिरा रहा ।
     कुछ वक्त में माली हालत ठीक होने लगी तब वो पांच हजार रुपये लेकर मैं अपने अपराध की क्षमा मांगने पहुँचा। उन सह्रदय पुजारी जी गले से लगाकर बोला की उस रोज़ वो पैसे तुम्हारे लिए ही आये थे। परंतु मेरे लिए चंद रुपये नही दो लोगो का जीवन था  मेरा तो संसार ही बच गया। बस तब से प्रयास करता हूँ कि मेरे दिए चंद सिक्कों से शायद फिर किसी की दुनिया रौशन हो जाये और होती भी है।वो जो झुग्गी में बच्चे रहते है पुजारी जी उनकी लिखाई पढाई और स्वास्थ्य की पूरी जिम्मेदारी निभाते है इन्ही पैसो से।
   पापा ... हमे माफ़ कर दीजिए... हमने अपने मन में न जाने क्या क्या सोच लिया।
  अगर हमारी थोड़ी सी सहायता से किसी को नया जीवन , नयी राह मिलती है तो अवश्य प्रयास किये जाने चाहिए।
ईश्वर स्वयं नही आता पर हमारी सहायता को कोई न कोउ जरिया बन देता है

डॉ ज्योत्सना गुप्ता

पता अलीगंज रोड, निकट रेलवे क्रासिंग, 
गोला गोकरननाथ ,जिला लखीमपुर खीरी
January 19, 2020

लघुकथा पूजाघर laghukatha pujaghar

लघुकथा पूजाघर

आज कमलेश्वर अपने बेटे के नए घर मे रहने आया था।
घर नया था ,साफ और बहुत सुंदर ....साथ ही सुसज्जित भी।
सारे आराम के साधन होने पर भी मन बेचैन ,आखिर क्यों?..... कमलेश्वर सब कुछ अस्थिर मन से देख रहे थे ।
"पापा" .... "पापा"... मयंक ने आवाज दी।
"हाँ बेटा"
"कैसा लगा घर ... पापा"
"बहुत अच्छा है"
"आपके रूम को बिल्कुल आपके हिसाब से हिना ने खुद सजाया है, ये देखिए पापा ,बालकनी और गार्डेन में सब पौधे आपकी पसंद के ,यहाँ पर आप और नन्नू खेल भी सकते हो और हम सब भी आपकी नजर में रहेंगे , लाइब्रेरी में आपकी पसंद का साहित्य भी है पापा , ये भानू और ये मीना घर के काम के लिए है आप इन्हें कभी भी आवाज़ दे सकते हो "... मयंक ने सब कुछ  प्रसन्नता से चहकते हुए बताया।
..... पर कमलेश्वर की निगाहें कुछ और ही खोज रही थीं।
पापा .... क्या ढूंढ रहे हो...???
"बेटा..... पूजाघर"...???


डॉ ज्योत्सना गुप्ता

पता अलीगंज रोड, निकट रेलवे क्रासिंग, 
गोला गोकरननाथ ,जिला लखीमपुर खीरी
उत्तर प्रदेश
January 19, 2020

शरारती बच्चे को कथा Shararti bachche ki katha

प्रेरक बाल कथा - शरारती अमर 


           अमर दसवीं कक्षा की पढ़ाई कर रहा था।आमतौर पर इस कक्षा के विद्यार्थी काफी शरारती होते हैं और उसी प्रकार अमर का भी व्यवहार काफी शरारती था।

          अमर पढ़ने में एवरेज बच्चा था और उसकी कोशिश हमेशा पेपरों से बचने की रहती थी।दसवीं के प्री बोर्ड के एग्जाम चल रहे थे।अमर काफी घबराया हुआ था क्योंकि उसकी तैयारी पेपरों के लिए अच्छी नहीं थी।
          
          अमर अपने पिता से भी काफी डरता था।हालांकि उसके पिता का स्नेह उसके प्रति बहुत ज्यादा था क्योंकि वह अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था।

           अमर का परसो गणित का एग्जाम है लेकिन उसकी तैयारी बिल्कुल भी नहीं है।पिता से डरा हुआ अमर समझ ही नहीं पा रहा था कि किस तरह पेपर से बचे ताकि उसे अपने पिता से डॉट ना पड़े।

           आखिर वह सुबह आ ही गई जब उसकी परीक्षा होनी थी।अमर काफी घबराया हुआ था।तभी उसने अपना दिमाग लगाया और बहुत जोर से पेट में दर्द होने का नाटक किया।

          वह दर्द से बड़े ही नाटकीय अंदाज में कराह रहा था।क्योंकि उसके माता-पिता उससे बहुत प्रेम करते थे।इसलिए वह दोनों घबरा गए और अमर के पिता उसे तुरंत एक बड़े से हॉस्पिटल में लेकर चल पड़े।

          अमर को इस बात की बहुत खुशी थी कि अपने इस नाटक से वह परीक्षा देने से बच जाएगा।अमर के पिता किसी फैक्ट्री में बड़ी ही मेहनत-मशक्कत से घर की जीविका चलाने लायक ही कमा पाते थे।

           अमर के पिता ने अपनी आमदनी के हिसाब से अपनी औकात से भी ज्यादा बड़े स्कूल में अमर को पढ़ाया था ताकि उसका भविष्य उज्ज्वल हो जाये।

          अब वह अमर को लेकर हॉस्पिटल पहुंच गए।डॉक्टर ने अमर के पेट को हर तरफ से दबाया और काफी देर जांच करने के बाद उन्होंने अमर के पिता को बताया कि शायद अमर को अपेंडिक्स है और उसको एडमिट करके ऑपरेशन भी करना पड़ सकता है।

           अब अमर अपने नाटक पर काफी पछता रहा था।छोटा बच्चा इतना घबरा गया कि शायद उसे ऑपरेशन ना करवाना पड़ जाए इस डर का उसके पास कोई हल नही था और वो अपने ही बुने जाल में फस गया था।

          अमर को अस्पताल में एडमिट कराया गया।दो दिन तक उसके सभी टेस्ट कराए गए जिसके उपरांत डॉक्टर ने उसके पिता को उसे छुट्टी ले कर घर जाने के लिए कहा और बताया कि शायद कुछ खाने-पीने का इंफेक्शन था।जिसकी वजह से उसके पेट में दर्द हुआ।

           दो दिन के इलाज में उसके पिता की बड़ी ही मेहनत की कमाई से जुड़े हुए लगभग ₹40000 इस प्रक्रिया में खर्च हो गए।अमर अपने पिता के मेहनत से कमाए गए पैसे इस तरह जाने से बहुत परेशान हुआ और बहुत ही लज्जा महसूस कर रहा था।

           इसके बाद अमर ने कभी अपनी पढ़ाई से कभी मुँह नहीं फेरा और पूरी लगन से अपनी पढ़ाई में लग गया और दसवीं की परीक्षा में उम्मीदों से परे बहुत ही अच्छे नंबरों से उसने स्कूल को टॉप किया।

          दसवीं परीक्षा को पास करने के बाद उसने अपने पिता को बताया कि उसने प्री बोर्ड में नाटक किया था।जिसकी वजह से उसके पिता के काफी पैसे का नुकसान हो गया था।

           यह बताते हुए अमर की आंखों में पश्चाताप के आँशु थे।अमर के पिता ने अमर के सर पर हाथ रखा और अपने बेटे से कहा कि उसकी पढ़ाई के प्रति इस लग्न को देखने के लिए वह अपना कुछ भी देने के लिए तैयार है।आँखों में आँशु भरा हुआ अमर अपने पिता के गले लग गया।


नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
मोबाइल 09582488698