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October 06, 2024

नादान दोस्त कहानी के लेखक प्रेमचंद है, नादान दोस्त कहानी का सारांश

 नादान दोस्त कहानी के लेखक प्रेमचंद है। , नादान दोस्त कहानी दो भाई-बहन पर आधारित है।,  इस कहानी में प्रेमचंद जी ने केशव और श्यामा नामक भाई-बहन की नादानी का जिक्र किया है।.  इस कहानी में बच्चों की नादानी की झांकी देखने को मिलती है।,  नादान दोस्त की कहानी का सारांश नीचे पढ़े।,

 

 

नादान दोस्त कहानी का सारांश / Nadan dost kahani Saransh

 

 कहानी का सारांश 

केशव और श्यामा दो भाई-बहन हैं। उनके घर के कार्निस के ऊपर चिड़िया ने अंडे दिए थे। दोनों भाई-बहन हर रोज चिड़िया को आते-जाते देखते हैं। दोनों भाई उनको देखने में इतने मगन हो जाते कि अपना खाना-पीना भी भूल जाते थे। चिड़िया के अंडों को देखकर उनके मन में कई सवाल उठते थे 

जैसे बच्चे कब बड़े होंगे, किस रंग के होंगे, बच्चे किस तरह से निकलेंगे। बच्चों के इन प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई नहीं था क्योंकि उनके पिता पढ़ने-लिखने में तो माँ घर के कामों में व्यस्त रहती थीं। इसलिए दोनों आपस में ही सवाल-जवाब करके अपने दिल को तसल्ली दे दिया करते थे।

इस तरह तीन चार दिन गुजर जाते हैं। दोनों चिड़िया के बच्चों के लिए परेशान होने लगते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं चिड़िया के बच्चे भूख-प्यास से न मर जाय।

नादान दोस्त की कहानी का सारांश 

वे चिड़िया के अंडों की सुरक्षा हेतु विभिन्न उपाय करते हैं जैसे खाने के लिए चावल और पीने के लिए पानी, छाया के लिए कूड़े की बाल्टी और अंडों के नीचे कपड़े की मुलायम गद्दी को बनाकर रखना। यह सारा कार्य उन्होंने पिता के दफ़्तर जाने और दोपहर में माँ के सो जाने के बाद किया।

परन्तु उनके उपाय निरर्थक हो जाते हैं। चिड़िया अपने अंडे स्वयं ही तोड़ देती है। बच्चों की माँ को जब यह बात पता चलती है तो वे उन्हें बताती है कि चिड़िया के अंडों को छेड़ने से वह दोबारा उन्हें सेती नहीं बल्कि उन्हें तोड़ देती है। यह सुनकर दोनों को बहुत पछतावा होता है। परन्तु बहुत देर हो चुकी होती है। वे दोनों अंडों की सुरक्षा के लिए अच्छे कार्य ही करते हैं। परन्तु ज्ञान और अनुभव की कमी के कारण वे उनकी बर्बादी का कारण बन बैठते हैं। उसके बाद उन्हें वह चिड़िया कभी दिखाई नहीं देती है। उनके छूने से अंडे खराब हो जाते थे इस बात की जानकारी इनको नहीं थी और अनजाने में बच्चों ने चिड़िया के अंडे को खराब कर दिया।

 नादान दोस्त कहानी के लेखक प्रेमचंद है।

दोनों बच्चों की नादानी से चिड़िया के अंडे खराब हो जाते हैं। ये दोंनो चिड़िया की मदद करना चाहते थे पर अनजाने में अंडे खराब कर देते हैं इसीलिए प्रेमचंद ने उन दोनों को नादान दोस्त कहा है। यह कहानी हमें सीख देती है कि किसी भी कार्य को करने से पहले पूरी तरह से सुनिश्चित कर लें कि जो आप कर रहे हैं, वह सही है या नहीं। केशव और श्यामा ने चिड़िया के बच्चों के लिए जो भी किया था यदि वे अपने माता-पिता से एक बार पूछ लेते, तो शायद वे उन चिड़िया के बच्चों को अपने सामने देख पाते।

January 21, 2022

Nadan dost kahani Saransh नादान दोस्त कहानी का सारांश Premchand

 नादान दोस्त कहानी- प्रेमचन्द / Premchand - Nadan Dost 

 
Nadan Dost नादान  दोस्त  कहानी के लेखक प्रेमचंद  जी है। नादान दोस्त कहानी दो भाई-बहन पर आधारित है इस कहानी  में प्रेमचंद जी ने  केशव और श्यामा  नामक  भाई - बहन की  नादानी का  जिक्र  किया है।  इस  कहानी में  बच्चों की  नादानी की  झांकी देखने को  मिलती है।  नादान दोस्त की सम्पूर्ण कहानी संक्षेप में निचे लिखा है
 
 

नादान दोस्त कहानी का  सारांश / Nadan dost kahani Saransh

 

 कहानी का सारांश / Nadan Dost

केशव और श्यामा दो भाई - बहन हैं। उनके घर के कार्निस के ऊपर चिड़िया ने अंडे दिए थे।  दोनों भाई-बहन हर रोज चिड़िया को आते- जाते देखते हैं। दोनों भाई उनको देखने में इतने मगन हो जाते कि अपना खाना-पीना भी भूल जाते थे। चिड़िया के अंडों को देखकर उनके मन में कई सवाल उठते थे 
 
जैसे बच्चे कब बड़े होंगे?
किस रंग के होंगे 
बच्चे किस तरह से निकलेंगे? 
 
इन दोनों बच्चों के  प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई नहीं था क्योंकि उनके माता -पिता कार्यो  में व्यस्त रहते थे। इसलिए दोनों आपस में ही सवाल-जवाब करके अपने दिल को तसल्ली दे दिया करते थे। इस तरह तीन चार दिन गुजर जाते हैं। दोनों चिड़िया के बच्चों के लिए परेशान होने लगते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं चिड़िया के बच्चे भूख-प्यास से न मर जाय।
वे चिड़िया के अंडों की सुरक्षा हेतु विभिन्न उपाय करते हैं जैसे खाने के लिए चावल और पीने के लिए पानी, छाया के लिए कूड़े की बाल्टी और अंडों के नीचे कपड़े की मुलायम गद्दी को बनाकर रखना। यह सारा कार्य उन्होंने पिता के दफ़्तर जाने और दोपहर में माँ के सो जाने के बाद किया।
 
 
परन्तु उनके उपाय निरर्थक हो जाते हैं। चिड़िया अपने अंडे स्वयं ही तोड़ देती है। बच्चों की माँ को जब यह बात पता चलती है तो वे उन्हें बताती है कि चिड़िया के अंडों को छेड़ने से वह दोबारा उन्हें सेती नहीं बल्कि उन्हें तोड़ देती है। यह सुनकर दोनों को बहुत पछतावा होता है। परन्तु बहुत देर हो चुकी होती है।  वे दोनों  अंडों की सुरक्षा के लिए अच्छे  कार्य ही करते हैं। परन्तु ज्ञान और अनुभव की  कमी के कारण  वे उनकी बर्बादी का कारण बन बैठते  हैं। उसके  बाद उन्हें वह चिड़िया कभी दिखाई  नहीं  देती है।  उनके  छूने से अंडे  खराब हो जाते थे  इस बात की जानकारी इनको  नहीं थी और अनजाने में  बच्चों ने चिड़िया  के अंडे को  खराब  कर दिया। दोनों बच्चों की  नादानी से  चिड़िया के  अंडे खराब हो जाते हैं
   

ये दोंनो चिड़िया की मदद करना चाहते थे पर अनजाने में अंडे खराब कर देते हैं इसीलिए प्रेमचंद ने उन दोनों को नादान दोस्त कहा है। यह कहानी हमें सीख देती है कि किसी भी कार्य को करने से पहले पूरी तरह से सुनिश्चित कर लें कि आप  जो कर रहे हैं, वह सही है या नहीं।  केशव और श्यामा ने चिड़िया के बच्चों  के लिए जो भी किया था यदि वे अपने माता-पिता से एक बार पूछ लेतेतो शायद वे उन चिड़िया के बच्चों  को अपने  सामने  देख पाते।
 
 
 इस प्रकार Nadan Dost / नादाँन दोस्त यह कहानी समाप्त हो जाती है। इस कहानी में बच्चो की नादानी का प्रेमचन्द जी ने बहुत ही सुंदर वर्णन किया है । यह कहानी आपको कैसी लगी, कोमेंट करके जरुर बताये
March 06, 2020

चीफ की दावत कहानी का सारांश Chif ki kahani ka saransh

             चीफ की दावत  कहानी का सारांश        

शामनाथ एक दफ्रतर में काम करते हैं। अपनी तरक्की वेफ लिए चीप़फ को प्रसन्न करने वेफ उद्देश्य से वे उन्हें अपने घर दावत पर आमंत्रित करते हैं। उनवेफ चीप़फ एक अमेरिकन व्यकित हैं अत: उन्हें प्रसन्न करने वेफ लिए घर का पूरा वातावरण उसी रूप में प्रस्तुत करने वेफ लिए शामनाथ और उनकी पत्नी निरन्तर लगे हुए हैं। कहाँ, कब, वैफसे क्या रखना, लगाना, सजाना है-इसी तैयारी में पूरा समय व्यतीत हो रहा था कि अचानक माँ का èयान आते ही दोनों पात्रा बेचैन हो उठते हैं। माँ बूढ़ी हो गयी है अत: चीपफ वेफ सम्मुख उनका 'पड़ना किसी भी दृषिट से उचित नहीं है। कभी कोठरी में, कभी बरामदे में तो कभी उनकी सहेली वेफ पास भेजे जाने वेफ प्रस्ताव एक-एक करवेफ नकारे जाते हैं। अंतत: निश्चय किया जाता है कि माँ बेटे की पसन्द वेफ कपड़े पहनकर, जल्द ही खाना खाकर अपनी कोठरी में चली जायें और साथ ही èयान रखें कि वे सोयें नहीं, क्योंकि उनकी खर्राटे लेने की आदत है।    डरी, सहमी-सी माँ बेटे की हर बात को सिर झुकाकर स्वीकार करती है। वह गाँव में रहने वाली एक अनपढ़ औरत है जो प्रत्येक सिथति में बेटे का भला चाहती है। शर्मीली, लजीली, धर्मिक विचारों वाली माँ को वुफर्सी पर ढंग से बैठने का तरीका भी सिखाया जाता है, क्योंकि अगर कहीं गलती से साहब का माँ से सामना हो जाय तो शामनाथ को शर्मिन्दा न होना पड़े।

                                           साहब और उनवेफ सभी साथी लगभग आठ बजे तक पहुँच गए। विहस्की का दौर चलने लगता। दफ्रतर में रौब रखने वाले साहब यहाँ पूरी तरह से मुक्त व्यवहार कर रहे थे। पीना-पिलाना समात होने पर सभी खाना खाने वेफ लिए बैठक से बाहर जा रहे थे कि अचानक सामने वुफर्सी पर बैठी, सोती हुर्इ माँ सामने पड़ गर्इ। माँ पर बेटे को बहुत क्रोध् आया, पर मेहमानों वेफ सामने वुफछ भी नहीं कह पा रहे थे। शामनाथ साहब वेफ लिए परेशान थे पर साहब तो अलग ही प्रवृफति वेफ व्यकित निकले। उन्होंने माँ से हाथ मिलाया, गाना सुना। विदेशी साहब वेफ इस उन्मुक्त व्यवहार वेफ कारण देसी साहब भी माँ को उसी दृषिट से देखने लगे। पर माँ लज्जा वेफ कारण अपने में सिमटती जा रही थी। साहब वेफ कहने पर उन्होंने एक पुरानी पुफलकारी भी लाकर दिखार्इ। माँ वेफ इस कार्य से प्रसन्न साहब चाहते हैं कि माँ उनवेफ लिए एक नर्इ पुुफलकारी बनाकर दें। हिचकिचाते हुए माँ उनवेफ इस अनुरोèा को स्वीकार करती हैं। बेटे की तरक्की का प्रश्न है इसलिए आँखों की रोशनी कम होने पर भी इसवेफ लिए प्रयत्नशील होने का वायदा करती हैं। वे तो सब वुफछ छोडकर हरिद्वार जाना चाहत थीं पर, इस परिसिथति में उन्हें अपना इरादा बदलना पड़ा। इसवेफ बाद शामनाथ निशिचन्त होकर पत्नी वेफ साथ अपने कमरे में चले गए और माँ भी चुपचाप अपनी कोठरी में लौट गई।

                चीफ़ की दावत कहानी की भाषा-शैली

चीफ की दावत कहानी में भाषा सहज, सरल और अद्वितीय गहनता लिए हुए है। शब्दों में व्यावहारिकता और भावुकता तो है ही, साथ ही लाक्षणिकता से भी सुसजिजत है। लेखक ने प्राय: बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले उस अंग्रेजी तथा पंजाबी भाषा आदि वेफ उन सभी शब्दों को यथोचित रूप में अपनाया है, जो प्राय: मèयवर्गीय हिंदी भाषा जनता में प्रचलित है। लेखक ने उन शब्दों का अर्थ भी प्रस्तुत कर पाठक को सहज होने में सहायता की है। मुकम्मल, डि्रंक, अड़चन, अवाक, साक्षात, रौ, रौब आदि शब्द कहानी के उतार-चढ़ाव व सार्थकता प्रदान करते हैं। सरल, सुबोध् और स्वाभाविक वाक्य कहानी की प्रेषनीयता में सहायक सिd हुए हैं। जैसे-फ्माँ ने झिझकते हुए अपने में सिमटते हुए दोनों हाथ जोड़े, मगर एक हाथ दुपटटे वेफ अंदर माला को पकड़े हुए था, दूसरा बाहर, ठीक तरह से नमस्ते भी न कर पार्इ। शामनाथ इस पर भी खिन्न हो उठे। 'हरिया की माये-गीत में प्रान्तीय प्रभाव कहानी को प्रभावोत्पादक बनाता है।

 'पुफलकारी वेफ प्रसंग से कहानी में जहाँ एक नया मोड़ आता है वहीं कहानी प्रांत-विशेष वेफ वातावरण से ओत-प्रोत हो उठी है। निश्चय ही प्रस्तुत कहानी की भाषा-शैली में रेखाचित्रा सी छटा और सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावनाओं को व्यक्त करने की अपूर्व सामथ्र्य है। इससे कहानी सरसता और कलात्मकता का भी समावेश हुआ है।