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April 21, 2020

हमीद कानपुरी के मुक्तक Hamid kanpuri ke muktak

तिरंगा


फर फर  फहरा  खूब  तिरंगा।
जन जन का  महबूब  तिरंगा।
इसकी अज़मत सबसे आला,
भारत   का   मतलूब  तिरंगा।


क़ातिल


रूप  बदलकर  आया क़ातिल।
दहशत भर कर लाया क़ातिल।
मौत  बना   जो   घूम   रहा  है,
जर्जर सी  है   काया  क़ातिल।


 वाइरस


हर किसी को नहीं  हम ख़ुदा मानते।
वाइरस  को महज़  इक वबा मानते।
हो गया कुलजहां आज दहशतज़दा,
मर्ज़ सब  सेर इस  को सवा  मानते।

 रिवायत


पुरानी      रिवायत    हटानी   पड़ेगी।
रिवायत   नयी  इक   बनानी  पड़ेगी।
मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत  हो जिसमें, 
सियासत  नयी अब  चलानी  पड़ेगी।


हमीद कानपुरी,
अब्दुल हमीद इदरीसी,
वरिष्ठ प्रबंधक,सेवानिवृत्त,
पंजाब नेशनल बैंक,
मण्डल कार्यालय, बिरहाना रोड, कानपुर
August 06, 2019

मुक्तक


   
   *मुक्तक*


अब अंगारों  में चलने की  आदत डाल लिया।
जब से  गले में इश्क़  की आफ़त डाल लिया।।
दिल के सारे ज़ख़्म घूंघट खोल के निकल पड़े।
जबसे चेहरे में नक़ाब-ए-ख़जालत डाल लिया।।
💧💧💧💧💧💧💧💧💧💧
मैंने मुस्कुराना छोड़ दिया, उसके हँसी के लिए।
ग़मों से रिश्ता जोड़ लिया, उसके हँसी के लिए।।
उसके हँसी में  एक ग़ैर की  झलक है, फ़िर भी;
अपनों से नाता तोड़ दिया, उसके हँसी के लिए।।
💧💧💧💧💧💧💧💧💧💧
एक आसूदाह ने जब मेरी क़ीमत पूँछा।
मैंने भी उसकी दौलत की हकीकत पूँछा।।
वो ख़मोंश हो गया, बेजान के माफ़िक;
मैंने जब उससे ये गुश्ताख़ भरी हिमाकत पूँछा।।
💧💧💧💧💧💧💧💧💧💧
मैं बदल कैसे गया, उसे बड़ा ही  इजाज़ लगा।
मेरा स्वभाव जमाने से बड़ा ही इम्तियाज़ लगा।।
मैंने जब वफ़ा के डगर में सुकूं से चलने लगा;
तो जमाने के सारे तकलीफ़ों को नासाज़ लगा।।
💧💧💧💧💧💧💧💧💧💧
वो शक्स मुझको लूटने से बाज़ नहीं आया।
मैं भी पागल हूँ, लुटने से बाज़ नहीं आया।।
अमलन वो मुझे कंकाल कर देगा बे - शक़।
"दर्द" बाज़ नहीं आया, वो बाज़ नहीं आया।।

💐✍🏻बीरेन्द्र कुमार शायर "दर्द"
मों  - 8358872705
June 26, 2019

धीरज कुमार पचवारिया मुक्तक muktk

अदावत,ख़िलाफ़त, बग़ावत से ज्यादा कुछ नहीं है
ये  सब  बातें  सियासत  से  ज्यादा  कुछ   नहीं  है
खामखां   तुम   हम   पर   इल्ज़ाम   धर.......बैठे,
मेरे  दिल  में  मोहब्बत  से  ज्यादा  कुछ   नहीं   है

~~~धीरज कुमार पचवारिया~~~
June 23, 2019

Dhiraj kumar pachwariya ke muktak


मुक्तक

अश्क़ों  की  ज़द  में  डूबते  अख़बार  भी  देखे  हैं
सिसकियों की चर्चाओं से गरम बाजार भी देखे  हैं
जीतने  को  दुनिया  जो   ख़ुद  सिकंदर  हो   गए,
लुटती आबरू पर ख़ामोश  चौकीदार  भी  देखे हैं

धीरज कुमार पचवारिया✍✍
June 21, 2019

धीरज कुमार पचवारिया के मुक्तक

जमीं  की  छोड़ो  अब  तो  आसमान   बोलने   लगा
ग़ुरूर   से    लबरेज़    हर    इंसान    बोलने    लगा
जबसे   इंडिया   ने   छक्कों   के   छक्के   छुड़वाए,,
तबसे हाफ़िज़ भी रोहित को अब्बाजान बोलने लगा

कवि धीरज कुमार पचवारिया✍
राजगढ़ (म.प्र.)
📞 व्हाट्सएप नं.- 8120287397
June 15, 2019

धीरज कुमार पचवारिया के मुक्तक (muktak)

दुआओं पे  जब  से  मैं चलने लगा हूँ
मोहब्बत  के  सांचे   में ढलने लगा हूँ
मेरी  शोहरतें  क्या छपी  कागज़ों पर,
ज़माने की आंखों को खलने लगा  हूँ

कवि धीरज कुमार पचवारिया
June 12, 2019

मुक्तक ....धीरज सुथार

मुक्तक

दरिन्दे बेटियों की इज्जत नोंचते रहे
पीड़ित खुद ही अपने आँसू पोछते रहे
ओर मिला नही न्याय उनको
न्याय वाले भी पीड़ितों को कोसते रहे

धीरज सुथार
डूँगरपुर(राजस्थान)
June 05, 2019

महेश चन्द्र पाटीदार के मुक्तक.. Muktak

मुक्तक

मै भारत माँ का बेटा हू घर में घुस कर मार गिराउँगा,
मै भारत माँ का बेटा हू छाती पर वार करूँगा।
सौगंध मुझे मेरी मिट्टी की जो अबकी बार भिड़ा तो,
सरहद पार आकर ही बरसी, तीर, कटार दिखाऊँगा।।

मुझे यह सब मंजूर न था,
इसके अलावा मेरा कसूर न था।
माफी तो हम भी मांग सकते थे,
पर मेरे लहजे में वो सुर न था।।

नाम- महेश चन्द्र पाटीदार
जिला - बांसवाड़ा
April 20, 2019

हास्य मुक्तक रचना

हास्य_muktak


(1)
तू मुझसे रूठ जाएगी जमाना छोड़ दूंगा मै,
तुझे कल से ही पगली अब सताना छोड़ दूंगा मै,
तू गर रूठी रहेगी अब सदा अपने दीवाने से,
अगर ठंडी पड़ेगी अब नहाना छोड़ दूंगा मै।
(2)
जो भी सुनता अब तक लगा गीत है,
कल की बातें भी मुझको लगी प्रीत है,
चाहता था तुझे डेरे पर मै सदा,
तू मेरी जीत है कि हनीप्रीत है।
(3)
तुम्हारी प्यार वाली बातों को मै म्यूट कर दूंगा,
तुम्हारी चाहतों का बल्ब अब मै फ्यूज कर दूंगा,
अगर तुम प्यार की ऐसे छुपाओगी यहां रह के,
कसम से प्यार को तेरे मै ब्रेकिंग न्यूज़ कर दूंगा।
(4)
कुछ बोल के लगता है पगली सारमाय गई हो हमसे अब,
ना मिलन कभी होगा सुनकर भरमाय गई हो हमसे अब,
लाठी तो तुमसे ज्यादा मिली हमको बजरंगदल वालों से,
सब न्यूज हमारा देख रहें तुम छाए गई हो हमसे अब

हास्य कवि आशीष कविगुरु
( प्रयागराज) उत्तर प्रदेश
April 19, 2019

मुक्तक muktak

           मुक्तक

1) नहीं खोलते किसलिए मन के बंद किवाड़?
कबतक रोकेगी तुम्हें कठिनाई की आड़ ?
चलो सतत् चलते रहो अपनी दुर्गम राह,
चोटी चूमेगी चरण, चढ़ते रहो पहाड़!
         
2)  करने निज आभा से तिमिर-संहरण आई।
नभ-निवास को तजकर धरा की शरण आई।
जन-जन तक संदेशा जागरण का पंहुचाने,
सखियों की मंडली संग भोर की किरण आई।
         
3) न देवदूत है कोई, नहीं दरिन्दा है!
मुहब्बतों की उड़ानों के साथ ज़िन्दा है!
सलाम करती हैं दीवारो सरहदें उसको,
वो आदमी नहीं  शायद कोई परिन्दा है!

4)  सृष्टि शाश्वत परम्परा!
जननी माँ, पोषिता धरा!
जन्म तथा मृत्यु के मध्य,
शैशव, यौवन और जरा!

5) मंजुल मनमोही महती हैं धरोहरें!
सभी प्रहारों को सहती हैं धरोहरें!
किसे पता ये कब हो जाएंगी ध्वस्त,
सुनो ध्यान से क्या कहती हैं धरोहरें!

           -रशीद अहमद शेख 'रशीद'


लेखक परिचय :-

1- रचनाकार पूरा नाम:रशीद अहमद शेख़        'रशीद'

2- पिताका नाम:श्री नसरूद्दीन शेख़

3- माता का नाम: बानो बी शेख़

4- वर्तमान: 795/235, मदीना नगर' आज़ाद नगर, गली नं 4, इन्दौर (म• प्र•)

5- स्थायी पता: __,,___

6- फोन वं वाट्सएप नं.:9827508664

7- जन्म एवं जन्म स्थान: 01/04/1951
        महू ज़िला इन्दौर

8- शिक्षा: एम• ए•(हिन्दी व अंग्रेजी     साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल• बी•, साहित्य रत्न, कोविद

9- व्यवसाय: सेवा निवृत्त प्राचार्य

10- प्रकाशित रचनाओं की संख्या: 1964 से अबतक सैकड़ों  रचनाएँ  (गद्य-पद्य) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, स्मारिकाओं और साझा काव्य संकलनों में प्रकाशित हो चुकी हैं। कुछ पत्र-पत्रिकाओं सहित पांच काव्य संकलनों का  संपादन किया है।
-रशीद अहमद शेख रशीद
(रचनाकार का नाम)
दिनांक-    19 अप्रैल , 2019