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March 03, 2020

गीत - बम बम बोले , हे भोले Bam bam bole he bhole

गीत - बम बम बोले , हे भोले 

मेरी बिगड़ी अभी बना दे , बम बम बोले , हे शिव भोले .....
तेरी शरणी आकर हम तो , सुन ले हम तो  इत उत डोले .....

शरण पड़े हम तेरी आकर , आशीष दो धरा पर आकर 
भक्त सभी तेरे ही प्यारे , तुम ही हो अब नाथ हमारे 
तेरी शरण में अभी हम हैं , नाम तेरा तो अमृत घोले .....
आज हम ये राज़ ही खोलें , बम बम बोले शिव भोले .....

हमको नहीं न ठोकर खानी , चरणों की रज है पानी 
मन में हमने यही है ठानी , कभी न करते हैं मनमानी 
दुनिया तेरी है दीवानी , तेरी शरण में अमृत पी लें .....
आज तुला पर बातें तोलें , बम बम बोले , हे शिव भोले .....

सुन लो अब तो विनय हमारी , तेरे ही कारण दुनिया सारी 
माया से हमें अब बचाओ , प्यार से हमें गले लगाओ 
दो आधार अभी तुम अपना , भवसागर से पार लगा दे .....
नैया अब यह डगमग डोले , बम बम बोले  हे शिव भोले .....

तेरी शरणी आकर हम तो , सुन ले हम तो इत उत डोले .....
मेरी बिगड़ी अभी बना दे , बम बम बोले , हे शिव भोले .....

   रवि रश्मि 'अनुभूति ' 

19.2.2020 , 8:47 पी.एम.पर रचित ।
August 19, 2019

लोकगीत गोरिया

गोरिया


गोरिया   पतरकी  रहिया  अगोरे।
गिन - गिन बितेला समवा औ भोरे।।

जबसे  कमाये गइला पिया कलकतवां
हिया मोरा खुरके जइसे पीपर कै पतवा
बढ़ल बाय   दुखवा तूं   समझेला    थोरे ।।गोरिया - - - -

आइल  त्योहार  प्यारा    रक्षाबंधनवां
गुड़िया मचवलिन घरवां मे  ठनगनवां
सुबहियें से रोवत बाटिन बहुतै जोरे-जोरे।। गोरिया - - -

फुच्चे रिषियाई गइलैं  झंडा वनके  चाही
मधुवा के नरखा नाहीं सचिनवां के स्याही
केहू  नाहीं आगे - पीछे  सईंयां   जी  मोरे।। गोरिया - - -


       ।। कविरंग ।।
            पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)
August 06, 2019

राह दिखाता है

*राह दिखाता है*

विधा :  गीत

मुझे राह दिख,
लाने वाले मेरे मन।
कभी राह खुद तुम,
यूही न भटकना।
मुझे राह....…...।

मोहब्बत में जीते, 
मोहब्बत से रहते ।
मोहब्बत हम सब,
जन से है करते।
स्नेह प्यार की दुनियां,
हम हैं बसाते।
मुझे राह........।।

न भेद हम करते,
जाती और धर्म में।
न भेद करते,
ऊंच और नीच में।
में रखता हूँ समान भाव, 
अपने दिल में।
मुझे राह..........।।

हमे अपनी संस्कृति,
को है बचना ।
दिलो में लोगो के,
प्यार है जगाना।
अपनी एकता और 
अखंता बचाना।
मुझे राह .........।।

जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
03/08/2019
August 06, 2019

खुशियां दो

*खुशीयाँ दो*

विधा : गीत

मेरी मुस्कराहट पर,
तुम्हें हंसी आती है।
मेरे दुख दर्द तुमको,
कभी देखते ही नहीं।
मेरा तो दिल करता हैं,
खुशी दू हर किसी को।
मैं अपने गम भूलकर,
तभी तो बाटता ख़ुशीयां।।

गमो की परवाह बिना,
सदा ही रहता हूँ प्रसन्न।
अब तुम ही बतलाओ,
मेरा क्या हैं इसमें दोष।
जब मुझको मिलती हैं,
शक्ति उस परवरदिगार से।
तो क्यो न भूल जाऊं मैं,
अपने सारे गमो को।।

समय कि पुकार को,
तुम समझो जरा लोगो।
प्रसन्नता ही जीवन का,
मूल आधार है लोगो।
तभी तो खुश रहो,
और खुशीयाँ बाटो तुम।
तुम्हारा जीवन सुखमय,
निकल जाएगा लोगो।।

जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
02/08/2019
August 06, 2019

गुरु सेवा

गुरू सेवा

गुरुदेव मेरे, गुरुदेव मेरे, 
 चरणों में अपने,
हमको बैठा लो।
सेवा में अपनी,
हमको लगा लो,
गुरुदेव मेरे, गुरुदेव मेरे।

मुझको अपने भक्तो की, 
 दो सेवादारी।
आयेंगे सत संघ सुनने , 
 जो भी नर नारी।
मैं उनका सत्कार करूँगा, 
 वंदन बारम्बार करूँगा।।
गुरुदेव मेरे, गुरुदेव मेरे,
 चरणों में अपने,
हमको बैठा लो।

मुझको अपने रंग में,
रंग लो तुम स्वामी।
मैं अज्ञानी मानव हूँ ,
तुम अन्तर्यामी।
मेरे अवगुण,
तुम बिसरा दो,
मन में प्रेम की,
ज्योत जला दो।।
गुरुदेव मेरे, गुरुदेव मेरे, 
 चरणों में अपने,
हमको बैठा लो।
सेवा में अपनी,
हमको लगा लो,
गुरुदेव मेरे, गुरुदेव मेरे।

गुरुदेव मेरे, गुरुदेव मेरे,
 चरणों में अपने,
हमको बैठा लो।।

जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई )
01/08/2019
August 06, 2019

भारत माँ के लाल

भारत माँ के लाल*

मिलें अपनो का प्यार हमको,
तो सफलता चूमेंगी कदम।
रहे सभी का अगर साथ,
तो जीत जाएंगे हर जंग।
और मिल जाएगा हमको,
वो खोया हुआ आत्म सम्मान।
इसलिए हिल मिलकर,
 रहो देशवासियो तुम सब।।

तुम्हें कसम भारत मां की, दिखाओ अपना जौहर तुम।।
तुम्ही तो कणधार हो,
अब भारत माँ के मेरे बच्चों।
इसलिए में कहती हूँ ,
बहुत छला हैं गद्दारों ने।
तुम्हें अपनी माँ की रक्षा,
 करने उतर जाओ मैदान में।।

जब बात माँ की आती हैं,
तो भूल जाते जाती धर्म।
और कस के कमर अपनी,
कूद जाते रणभूमि हम।
दिखाते अपनी बहादुरी, 
 हम उन गद्दारो को।
छोड़कर भाग जाते हैं,
वो गद्दार मैदाने जंग।।

जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
30/07/2019
July 05, 2019

मोक्ष जाने का पथ गीत


*मोक्ष जाने का पथ*

विद्या;- गीत

छोड़ दो मिथ्या दुनियां
सार्थक जीवन के लिए।
इससे बड़ा सत्य कुछ
और हो सकता नहीं।
चहात अगर प्रभुको
 पाने की हो ।
तो ये मार्ग से अच्छा
कुछ और हो सकता नहीं।।
छोंड़ दो.......।।

मन में हो उमंग प्रभु को पाने की।
करना पड़ेगा कठिन तपस्या तुम्हें।
मिल जाएंगे तुमको प्रभु एक दिन।
बस सच्ची श्रध्दा से उन्हें याद करो।।
छोड़ दो........।।

आत्म कल्याण का पथ ये ही हैं।
बस इस पर चलने की  तुम कोशिश करो।
मोक्ष का द्वार तुम को मिल जाएगा।
और जीवन सफल तेरा हो जाएगा।।
छोड़ दो.......।।

जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
02/06/2019
June 27, 2019

ऊलुल जुलूल गीत..... Utptang geet


विषय –लेख

शीर्षक–‘ऊलुल–जुलुल गीत’

“ ऊलूल–जुलूल गीत से तात्पर्य यह हैं कि वह गीत जो स्वर विहीन होते हुए  भी लोककाव्यॊं में  ,खड़ी बोली के काव्यॊं में व भिन्न –भिन्न, देश/ विदेश की बोलियों में पायी जाए जिसे हम सब आम बोल चाल की भाषा में अनाप –शनाप कहते हैं । किन्तु लोक व्यवहार की इस भाषा में कालान्तर में कुछ साहित्यकार का नाम भी जुड़ा जिन्हें बहुत ही ख्याति प्राप्त हुई ।
जैसे कि बांग्ला भाषा के साहित्यकार सुकुमार राय ने ‘नाइको माने’ काव्य गीत  लिखा।वहीं अग्रेंजी भाषा काव्य में एक उच्च कोटि का व्यंग्य लिखा गया एडवर्ड लियर द्वारा‘ नानसेंस ’ जो कि बहुत ही प्रसिद्ध हुआ । वहीं हिन्दी भाषा साहित्य में भी रामनरेश त्रिपाठी जी ने  सफल प्रयोग किया उनकी कविता की एक पंक्ति कुछ इस प्रकार से हैं–‘अाई एक छींक नंदू को,
                                            एक रोज वह इतना छीका।’
 इसी कारण इस विषय पर विचार करते हुए अनाप –शनाप गीत ,काव्य,चुटकुलों  को भी हिन्दी भाषा साहित्य में स्थान देना चाहिए क्योंकि इन्हीं हास्य /व्यंग्य गीतों के माध्यम से ही हास्य/ व्यंग्य चित्रकला का भी ज्ञान होता हैं साथ ही इन्हीं गीतों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के विषयों पर वास्तविकता से हटकर होते हुए भी वास्तविक रूप बतला दिया जाता हैं जो कि हर क्षेत्र के लोगों पर स्वाभाविकता की छाप छोड़ जाता हैं जिसे हर  व्यक्ति असहाय सी मुस्कान लिए तिलमिलाता हुआ सहजता पूर्वक सुनता हैं और उस द्वंद्व में वह मनोरंजन के साथ असंगत पूर्ण बातों में भी ज्ञान की बात सुन लेता हैं/सुना देता हैं। हालाॅऺकि इस बार के गीतों  को अधिकाधिक बालक/बालिकाओं के द्वारा निरर्थक ध्वनि के साथ लोकोत्सवों व खेलों में देखने व सुनने को मिलता हैं जो कि इस प्रकार के गीतों के रचनाकार बच्चें स्वयं होते हैं उनकी स्वयं की शैली होती हैं किन्तु वह लोक व्यवहार का सफल मार्गदर्शन भी करती हैं।जिसके माध्यम से बच्चे अपनी देशज बोलियों को सुरक्षित करते हुए अपनी मातृ भाषा  के साथ– साथ अन्य भाषाओं का  भी सम्मान करते हैं। जैसे –
‘अक्कड़ बक्कड़ बंबे बोल,
             अस्सी नब्बें पूरे सौं।
                       सौं में लगा धागा 
                               चोर निकल कर भागा।।’
अतः इस बार के गीतों में भी सूचनाओं को सुनने को मिलता हैं इसलिए यह ऊलूल– जूलूल होते हुए भी एक एक प्रकार का सूचनात्मक गीत काव्य की रचना मानी जा सकती हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए इन गीतों को भी हिंदी भाषा साहित्य में स्थान दिया जाना चाहिए । क्योंकि अधिकांश बोलियां धीरे धीरे अपने मूल स्वरूप से हटकर खड़ी बोली में परिवर्तित हो रही हैं जिसके कारण क्षेत्रीय भाषा की बोली 
 निरंतर घट रही हैं जिसे सुरक्षित करने हेतु अनाप– शनाप गीतों को भी हिन्दी भाषा साहित्य के काव्य भाषा वा गद्य भाषा में शामिल करने हेतु प्रचार /प्रसार करना चाहिए जिससे बच्चे सहजता के साथ पढ़ कर/ सुन कर समझ सकें । साथ ही अपने देश की विधिध बोलियों को सुरक्षित रख सकें ।।"

रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश 
May 11, 2019

गीत नया मुक़ाम (Geet naya mukam)

 

गीत* नया मुकाम*

सुबह हो शाम हो, दिन हो या रात हो।
आओ मेहनत मिलकर करे।
एक नया मुकाम हासिल करे।
एक नया मुकाम हासिल करे।।

काम की होड़ में दौड़कर देखिये।
काम चोरी को तभी छोड़कर देखिये।
मेहनत और लगन की तुम दो एक मिसाल।
इसमें खुद को डूबोकर तुम देखिये।
तुम अगर साथ दो , हाथो में हाथ दो।
सारी दुनिया को पीछे छोड़ दे ।।
एक नया मुकाम हासिल करे।
एक नया मुकाम हासिल करे।।

काम करने कोई न होता है वक्त।
जब भी जी चाहे इसे करो तुम सब।
सिर्फ दो अंक का प्रश्न हल को मिला।
जोड़ करना था हम ने दिया है घटा।
एक अंक हम है एक अंक तुम हो।
आओ दोनों यु जोड़ दे।।
एक नया मुकाम हासिल करे।
एक नया मुकाम हासिल करे।।

मेहनत और लगन की हम शादी करे।
संग रहने का इनको आदि करे।
अब न होंगे एक दूसरे से हम यू अलग।
सारी कर्मशाला में ये मुनादी करे।
हमने जितना देखा बस उतना लिखा।
अब ये पन्ना यही मूड दे।।
एक नया मुकाम हासिल करे।
एक नया मुकाम हासिल करे।।

सुबह हो शाम हो दिन हो या रात हो।
आओ मेहनत मिलकर करे।
एक नया मुकाम हासिल करे।
एक नया मुकाम हासिल करे।।

संजय जैन (मुम्बई)
April 25, 2019

रचनाकार विकास चौबीसा लिखते हैं एक गीत

*गीत*

क्या गजब दीवाने थे भारत के वन्देमातरम गाते थे
मातृभूमि की सेवा खातिर वे अर्पित हो जाते थे।

छलनी छलनी सीना होता, हर अंग भंग हो जाते थे
आजादी के मतवाले वीर, बलिदानी वे हो जाते थे ।
जय इंकलाब के नारे गाते,आगे बढ़ते जाते थे
क्या गजब दीवाने थे भारत के, वन्दे मातरम गाते थे

वीर सिपाही बम वाले, वे निर्भय होकर लड़तें थे
लोहा लेते दुश्मन से, केसरिया जामा पहने थे।
रंग दे बसंती चोला गाते, शूली पर चढ़ जाते थे
क्या गजब दीवाने थे भारत के, वन्देमातरम गाते थे।।

दुष्टो की गोली लगने पर, लाशें लथपथ हो जातीं थी
रक्त्तमय गगन होता और, धरती भी रंग जाती थी।
लहू की नदियां बहती थी, जब वे गोली खाते थे
क्या गजब दीवाने थे भारत के, वन्देमातरम गाते थे।।

अंतकाल से नही डरते वे,कफ़न बांधकर चलते थे
सीना तानकर चलते ओर,शत्रु से डटकर लड़तें थे।
जय घोष लगाते हिन्द देश की वे अर्पित हो जाते थे
क्या गजब दीवाने थे भारत के,वन्दे मातरम गाते थे।।

नाम - विकास चौबिसा
जन्मतिथि - 04/06/1997
जन्म स्थान - गाँव धोलागिर खेड़ा शहर सलूम्बर उदयपुर राजस्थान।
शिक्षा - बी. ए.(हिंदी साहित्य)
रुचि - शेरो शायरी व देश भक्ति कविताएँ लिखना।
व्यवसाय - पढ़ाई
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ई मेल आईडी vikaschoubisa382@gmail.com