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हिंदी साहित्य के प्रमुख आलोचक √

हिंदी के आलोचक:-


१. भारतेंदु हरिश्चंद – भारतेंदु हरिश्चंद को इस विधा का जनक माना जाता है. उन्होंने नाटक नामक एक लम्बा निबंध लिख कर सैद्धांतिक समीक्षा का श्री गणेश किया. इस निबंध में भारतेंदु ने उन सिद्धांतों की बात की है, जिसके आधार पर समीक्षा की जा सकती है

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२. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी – आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने अपने द्वारा सम्पादित साहित्यिक पत्रिका सरस्वती के साथ हिंदी आलोचना के नए युग का आरम्भ किया. आपके द्वारा रचित कालिदास की निरंकुशता, नैषध चरित्र चर्चा, विक्रमांक चरित चर्चा हिंदी आलोचना के सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ हैं.

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३. पं. बालकृष्ण भट्ट – हिंदी की प्रमुख पत्रिका हिंदी प्रदीप के सम्पादक पं बालकृष्ण ने इसी पत्रिका में लाला श्रीनिवास दास द्वारा लिखित नाटक संयोगिता स्वयंवर की आलोचना लिख कर भारतेंदु हरिश्चंद के कार्य को आगे बढाया. यह भी एक नाटक था. अपनी इस आलोचना में उन्होंने जहाँ एक ओर भारतेंदु द्वारा स्थापित मापदंडो को अपनी आलोचना का आधार बनाया. वहीँ दूसरी ओर कुछ नए सिद्धांत भी निर्मित किये.

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४. मिश्र बन्धु – मिश्र बंधुओं ने तुलनात्मक आलोचना का श्रीगणेश किया. उन्होंने हिंदी के नव कवियों का तुलनात्मक अध्ययन किया, साहित्यिक मापदंडों पर उनकी रचनाओं को कसा. उन्होंने हिंदी नव रत्न की रचना की. इस ग्रन्थ में उन्होंने देव को हिंदी साहित्य का सबसे बड़ा कवि घोषित किया

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५. पद्मसिंह शर्मा – हिंदी साहित्य के प्रमुख आलोचक पद्मसिंह शर्मा मिश्र बंधु से सहमत नहीं थे. उन्होंने बिहारी की रचनाओं का बड़ा ही सूक्ष्म विश्लेषण किया. उनका यह ग्रन्थ बिहारी सतसई की भूमिका के नाम से प्रसिद्ध हुआ. इस मिश्र बंधुओं को प्रत्युत्तर भी माना जाता है.

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६. श्यामसुंदर दास – हिंदी साहित्य की समालोचना के क्षेत्र में बाबू श्यामसुंदर दास का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है. आपने कई आलोचनात्मक ग्रन्थ लिख कर आलोचना को एक मुकम्मल स्थान पर पहुंचा दिया. आप द्वारा रचित ग्रन्थ इस प्रकार हैं – साहित्यालोचन, भाषा रहस्य, हिंदी साहित्य. आपने इन ग्रंथों में आलोचना के कई नए और वैज्ञानिक सिद्धांत गढ़े गये

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७. आचार्य रामचंद्र शुक्ल – हिंदी साहित्य में आलोचना विधा को सर्वमान्य और सर्वोच्च स्थान पर पहुचाने का श्रेय आचार्य रामचंद्र शुक्ल हो ही है. आपने अपने लेखों और ग्रंथों में आलोचना के कई प्रमाणिक सिद्धांतों की रचना की. हिंदी साहित्य का इतिहास लिख कर इतिहास लेखन की नयी पद्धति इजाद की. इसके आलावा सूरदास, रस मीमांसा, त्रिवेणी में आपने नये सिद्धांत प्रतिपादित किये.

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८. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ आलोचक माने जाते हैं. आपने ऐतिहासिक आलोचना का सूत्रपात किया. आप द्वारा लिखित हिंदी साहित्य की भूमिका, हिंदी साहित्य का आदिकाल, हिंदी साहित्य: उद्भव और विकास आदि आलोचना के अपरिहार्य ग्रन्थ हैं.

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९. डॉ. नगेंद्र – डॉ. नगेन्द्र ने अपनी समीक्षा में भारतीय और पाश्चात्य समीक्षा का समन्वय करने का प्रयास किया. शुरूआती दौर में आप पर पाश्चात्य आलोचकों का भूत सवार था. लेकिन जैसे-जैसे आपने हिंदी ग्रंथों और आलोचना ग्रंथों का अध्ययन करना शुरू किया, आपका वह भूत उतर गया. इसके बाद आपने जो आलोचनात्मक ग्रन्थ लिखे. जिसमें साकेत एक अध्ययन, सुमित्रानंदन पन्त, आधुनिक हिंदी का नाटक, आधुनिक हिंदी कविता की प्रवृत्तियां, भारतीय साहित्य शास्त्र की भूमिका, रस सिद्धांत प्रमुख हैं.

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१०.बाबू गुलाबराय – आपने भी हिंदी साहित्य में सैद्धांतिक आलोचना पर काम किया. आप द्वारा रचित सिद्धांत और अध्ययन, काव्य के रूप, हिंदी नाट्य विमर्श आदि प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं!
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११.डॉ. राम विलास शर्मा – डॉ. राम विलास शर्मा ने आलोचना को नई दृष्टि से देखा. उनकी दृष्टि प्रगतिवादी रही. इस समय तक हिंदी साहित्य में प्रगतिशील ग्रंथों की रचना हो रही थी. उनको नियंत्रित करने में डॉ. राम विलास शर्मा के आलोचनात्मक ग्रंथों ने बड़ी मदद की. उनके प्रसिद्ध आलोचनात्मक ग्रन्थ इस प्रकार हैं – प्रगति और परंपरा, प्रगतिशील साहित्य की समस्यायें, निराला की साहित्य साधना, निराला आदि.

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१२.रामस्वरूप चतुर्वेदी – हिंदी साहित्य के प्रमुख आलोचक और साहित्यकार रामस्वरूप चतुर्वेदी ने नव लेखन को लेकर अपनी आलोचना ग्रन्थ लिखे. अपने इस आलोचनात्मक ग्रन्थ को उन्होंने नवलेखन नाम भी दिया. इस तरह से जो नव लेखन बेढंगा होता जा रहा था, उसे एक दिशा मिली.

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१३.धर्मवीर भारती – हिंदी साहित्य के प्रख्यात साहित्यकार और आलोचक धर्मवीर भारती साहित्य में मानवीय मूल्यों के जबरदस्त हिमायती थे, उन्होंने देखा कि हिंदी में मानव मूल्य धीरे-धीरे गौण होता जा रहा है. जो भविष्य के लिए उचित नहीं है, इसी कारण उन्होंने मानव मूल्य और साहित्य नामक प्रसिद्ध आलोचनात्मक ग्रन्थ लिख कर साहित्य को एक सम्यक दिशा दी.

१४.डॉ. नामवर सिंह – डॉ. नामवर सिंह ने हिंदी आलोचना को नई दिशा दी. आपने कविता के नए प्रतिमान लिख कर कविता को एक दिशा देने की कोशिश की.


साहित्य में कई ऐसे आलोचक हुए, जिनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता है. जिनमें सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय, डॉ. फ़तेह सिंह, प्रेमघन, गंगा प्रसाद अग्निहोत्री, अम्बिकादत्त व्यास, डॉ. रामकुमार वर्मा, डॉ. कृष्णलाल, डॉ. केसरी नारायण शुक्ल, जयशंकर प्रसाद, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, डॉ. विनय मोहन शर्मा, डॉ. हरवंशलाल शर्मा, इलाचंद्र जोशी, शिवदान सिंह चौहान, अमृतराय, डॉ. विजयेन्द्र स्नातक, डॉ. विजयपाल सिंह, डॉ. सत्येन्द्र, डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय आदि।

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