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उर्वशी पुरवा का प्रेम urwshi ka pati viyog or shraap

उर्वशी 


जब मर्यादा, लोक आचरण और धर्मपरायणता की बात आती है तो स्वत: ही दिमाग में रामायण और श्रीराम का चरित्र उभर आता है। लोक व्यवहार के उच्च मानवीय आदर्शों की अभिव्यक्ति है रामायण और उसके हर एक पात्र में। राजा दशरथ को श्रवण के बुढ़े और अंधे माता-पिता के श्राप का फल पुत्र वियोग के रूप में भोगना पड़ा। श्रीराम को पिता के वचन की पालना और पुत्र धर्म के उच्च आदर्शों की स्थापना के लिए वनवास जाना पड़ा। सीता को पतिव्रत धर्म निभाने के लिए वन जाना पड़ा। लक्ष्मण ने छोटे भाई का फर्ज निभाया और राम के प्रति अटूट प्रेम के कारण वन गमन करना पड़ा। सबने अपना अपना धर्म पालन किया और सबके पास इसकी कुछ ना कुछ वजहें थी। किसी का भी त्याग अकारण या थोपा हुआ नहीं था।जाहिर है रामायण के जरिए महर्षि वाल्मीकि ने समाज के समक्ष उच्च मानवीय आदर्श स्थापित करने की सफल कोशिश की। जिसमें वे पूरी तरह कामयाब भी हुए। मगर इन सब घटनाओं और आदर्शों के मध्य हम सब एक पात्र पर ज्यादा ध्यान नहीं देते और ना ही उस पर चर्चा करते हैं। वो पात्र है उर्वशी। हम सबने इस पात्र का नाम भी सुना है और ये भी जानते हैं कि उसकी भूमिका क्या थी। यहां सवाल खड़ा होता है कि उर्वशी ने पति वियोग का दु:ख भोगा वो किसी कारण के अधीन था या अकारण ही?
जब सारी घटनाएं किसी ना किसी कारण के अधीन थी तो फिर उर्वशी का दु:ख अकारण कैसे हो सकता है? और अगर कोई कारण था तो वो क्या था? इस जन्म या पूर्व जन्म में कहीं ना कहीं इस सजा का कारण अवश्य रहा होगा। क्योंकि जहां उच्च आदर्शों के स्थापना की बात हो, धर्म के संदेश और पुनर्स्थापना की बात हो वहां भला एक नारी के साथ इतना अन्याय कैसे हो सकता है कि बिना किसी कारण उसे चौदह वर्ष के पतिवियोग का भागीदार बनना पड़े। अवश्य इस बारे में कुछ तो रहा होगा। अगर किसी के पास उचित कारण तर्क सहित हो तो जरूर बताएं। फिलहाल इतना अवश्य कहा जाना चाहिए कि त्याग और तपस्या में उर्वशी सबसे भारी थी।

ब्रह्मानंद
जैसलमेर

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