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कहानी कातिल कौन था ? Kahani kaatil koun??

कातिल कौन था ?

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रोज की तरह आज फिर वही चीखने चिल्लाने की आवाजे आ रही थी।छोटे-छोटे बच्चों के मुंह से निकलते शब्द मेरे हृदय को फटने पर मजबूर कर रहे थे; प्लीज पापा....मत मारो,पापा......, पापा....., अरे पापा ! मत मारो... मम्मी को। आए दिन ही यही सब सुनने को मिलता था ।
शुरू में मोहल्ले के लोग,आस पड़ोस के लोग जाकर समझा आते थे, पर अब किसी को भी इन चीजों से शायद ही कोई मतलब रहा हो ?  या यूँ कहें कि लोगों की आदत पड़ चुकी थी, उन्हें सुनकर ध्यान न देने की।
 मैं भी प्राय: दफ्तर आते-जाते लड़ने झगड़ने, रोने चीखने की आवाजे सुना करता था, पर जैसे मोहल्ले भर के अन्य लोगों को कोई मतलब नहीं था, मैं भी इनके प्रति अभ्यस्त हो गया था।
      उस दिन शनिवार था।दफ्तर में अर्ध अवकाश था मैं जल्दी घर जाने की तैयारी में था, मैंने अपने ड्यूटी रजिस्टर पर प्रस्थान से पूर्व के हस्ताक्षर किए ही थे कि कमीज की जेब में रखा फोन बज उठा, नंबर मुन्नी का था , "मुन्नी मेरी छोटी बहन".  हाँ मुन्नी क्या हुआ? 
" भैया.... भैया....." वह बहुत घबराई हुई लग रही थी, "भैया.. वह उसने ....." मैंने मुन्नी को शांत रहने को कहा, मुन्नी की घबराई आवाज मुझे भी डरा रही थी।क्या हुआ मुन्नी शांति से बताओ? थोड़ी देर बाद मुन्नी ने जो बताया सुनकर मैं सन्न रह गया; मेरे पैरों तले जमीन खिसकने लगी,सिर चकराने लगा, क्या ..........?
"हां भैया सूरज ने अपने दोनों बच्चों और बीवी को मारकर आत्महत्या कर ली मुझे बहुत डर लग रहा है भैया.. आप जल्दी से चले आओ ?
अभी आया मुन्नी, मैंने जल्दी से फोन जेब में डाला और घर की ओर चल पड़ा रास्ते भर अनेक विचार दिमाग में कौंध रहे थे कैसे..? क्या.....? यह  क्या किया सूरज ने. ? क्यों आये दिन झगड़ा होता था उस घर में?  पर.....पर  उसने अपने छोटे-छोटे मासूम बच्चों को भी.....? पर कैसे... क्यों... मार डाला?
 घर पहुँचा तो नजारा देखकर कुछ समय के लिए सुन्न हो गया । चारों तरफ लोगों का जमावड़ा था, पुलिस के आला अफसर पहुंच चुके थे, पुलिस ने पूरे घर  को अपने कब्जे में ले लिया था, सूरज के घर के आँगन में सफेद चादर से ढकी दो छोटी-छोटी लाशों के पास दो बड़ी लाशें पड़ी थी। वहां मौजूद हर शख्स के चेहरे पर एक ही प्रश्न था आखिर सूरज ने ये सब क्यों किया ...? कैसे उसने अपने ही मासूम बच्चों के साथ बीवी का गला रेत कर आत्महत्या कर ली!
 पर इन प्रश्नों का  उत्तर शायद किसी के पास नहीं था। मैं चुपचाप पुलिस कार्यवाही देख रहा था चारों शवों को पुलिस ने लोगों की मदद से एंबुलेंस में डलवाया और अस्पताल की ओर रवाना हो गई। मैं विस्मित उदासी के साथ घर लौट आया मुन्नी घर की चौखट पर खड़ी थी, मुझे देखकर लिपट गई । "भैया सूरज ने सब को क्यों मार डाला ". मैंने मुन्नी को चुप रहने को कहा, मेरे पास उसके इन सवालों का कोई जवाब नहीं था शाम को पोस्टमार्टम के बाद पुलिस मौजूदगी में चारों शवों का एक ही चिता पर अंतिम संस्कार कर दिया गया।
 पर मूल प्रश्न जिसका उत्तर मुझे जानना था वह यह था; आखिर सूरज ने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया ?  सूरज मेरा पड़ोसी था,वह मेरे घर से कुछ घर छोड़ कर रहता था।, मुझे रोज रोज की उठापटक जो प्राय: उसके घर से सुनाई देती थी, याद आने लगी; क्यों होता था यह सब ?  क्यों सूरज का व्यवहार बदल गया था? क्यों वह  आए दिन ही बीवी और बच्चों से मारपीट करता था, ऐसा क्या था कि उसने अपने बच्चों तक को नहीं छोड़ा ? इन्हीं प्रश्नों में उलझा में राधेश्याम तिवारी के पास गया; राधेश्याम रिश्ते में सूरज की बुआ का लड़का था,
धीरे-धीरे बातों का सिलसिला शुरू हुआ जब मैंने सूरज की इस करतूत के बारे में राधेश्याम से पूछा और उसने जो बताया सुनकर मैं चौंक पड़ा।
सूरज, हेड मास्टर लक्ष्मीनारायण जी का सबसे छोटा बेटा था,उसके तीन बड़े भाई और थे;जो गांव में अपने-अपने परिवार के साथ रहते थे। हेड मास्टर साहब कि कुछ साल पहले कैंसर से मौत हो गई थी, सूरज अपने बड़े भाई गोपाल के साथ रहने लगा वैसे सभी भाई आपस में प्रेम से रहते थे,पिता की मौत के 2 साल बाद गोपाल ने सूरज का विवाह पास ही के गाँव की गायत्री के साथ करवा दिया।
 गायत्री सूरज से 2 साल छोटी थी, गठीला बदन,गोरा रंग,चंचल हिरणी सी गायत्री हर किसी को नजरे उठाने के लिए विवश कर देती ।
गायत्री अपने पिता के साथ पास ही के कस्बे में एक किराए के घर में रहती थी, उससे एक बड़ी बहन और थी। गायत्री अपने मकान मालिक के  लड़के प्रदीप की ओर  धीरे-धीरे आकर्षित होने लगी,वह भी गायत्री को चाहने लगा, लेकिन एक दिन पिता को इस बात की भनक लग गयी,उसने गायत्री को अपनी इज्जत,समाज का डर दिखाकर समझाया,और वह परिवार सहित गाँव लोट आया। कुछ दिनों बाद गायत्री का विवाह सूरज के साथ कर दिया। गायत्री अपने ससुराल चली आयी। पर गायत्री का प्रदीप से रिश्ता खत्म नही हुआ वे जब भी मौका मिलता बाते करते,कभी- कभी प्रदीप गायत्री के घर पर भी आ जाता। और सूरज के आने से पहले लोट जाता।
यह सिलसिला चलता रहा।
           विवाह के 2 साल बाद गायत्री के बड़े बेटे आकाश का जन्म हुआ। उसके 1 साल बाद  गायत्री फिर गर्भवती हो गई और अमन का जन्म हुआ।
सूरज पास के कस्बे में किराने की दुकान पर काम करने लगा। सुबह जाता देर शाम तक लोटता; घर में सब तरह से सुख संपन्नता थी, एक दिन सूरज दुकान से जल्दी ही लोट आया ; जब वह घर आया तो उसने देखा कि एक युवक गायत्री के साथ जोर- जोर से हँस हँसकर बातें कर रहा है। सूरज ने गायत्री से उस दिन उस युवक के बारे में कुछ न पूछा,न किसी प्रकार कि कोई शिकायत की।पर जब भी दोनों पति-पत्नी बातें करते गायत्री उस युवक प्रदीप को बातों के बीच में ले आती ,जब कभी गायत्री अपने बचपन की  कहानियाँ सुनाती,प्रदीप उन कहानियों का हिस्सा बन जाता। सूरज को पत्नी द्वारा प्रदीप को लेकर बातें करना अच्छा नहीं लगता; उसे गायत्री और प्रदीप पर शक होने लगा। इस तरह सूरज का व्यवहार चिड़चिड़ा हो गया, उसका  मन न दुकान पर लगता और न किसी काम में।
वह  आए दिन दुकान से छुट्टी ले लेता,जिसने जीवन में कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया,वह  रोज शराब पीकर घर आने लगा। गायत्री ने उसे समझाने का प्रयास किया पर वह  उसे गंदी-गंदी गालियाँ देता, वह प्रदीप का नाम लेकर गायत्री के पर उँगली उठाने लगा गायत्री के साथ मारपीट करता। यह सिलसिला चलने लगा ।
 हद तो तब हो गई जब सूरज ने अमन को अपना बेटा मानने से इन्कार कर दिया। वह अमन को प्रदीप का नाजायज बेटा कहने लगा ।
सूरज गायत्री के साथ- साथ अमन के साथ भी मारपीट करता, उसे घर के बाहर निकालकर कुंडी लगा देता।एक दिन गायत्री ने  सूरज से वादा किया की उसका प्रदीप से अब कोई रिश्ता नही है, सूरज गायत्री की बात मान गया।कुछ दिनों तक घर में शांति बनी रही।पर एक दिन फिर गायत्री को प्रदीप से बात करते सुन लिया। गुस्सें मे सूरज ने गायत्री के साथ बेरहमी से मारपीट की गायत्री बेहोश होकर घर के आंगन में गिर पड़ी; सूरज ने अमन को भी बुरी तरह पीटा ।
.....उस दिन वह  सुबह दुकान पर जाने की कह कर गया था,पर उसका दिमाग किसी और उधेड़बुन में उलझा हुआ था। वह दुकान पर न जाकर सीधे शराब की दुकान पर गया; शराब का एक अद्दा खरीदा और वहीं से पीकर नशे में लडखड़ाता घर  लौट आया।
 गायत्री के लिए यह कोई नई बात नहीं थी,उसने सूरज का हाथ पकड़कर सहारा देने का प्रयास किया,लेकिन सूरज ने गायत्री को धक्का मारकर भद्दी भद्दी गालियां देना शुरु कर दिया,उस पर तो जैसे मौत सवार थी व सीधा रसोई में गया और फिर ....गायत्री कुछ समझ पाती उसके पहले सूरज ने उसे पकड़कर चाकू से गला रेत दिया कुछ ही मिनट में गायत्री तड़प कर हमेशा के लिए शांत हो गई पर सूरज अभी शांत नहीं हुआ। उसने एक एक करके दोनों बेटों को अपने हाथों काल को सौंप दिया।
 तीनों को मौत के घाट उतार कर कमरे में जाकर फंदे से झूल गया.. राधेश्याम कहे जा रहा था मैं चुपचाप पाषाण खंड बना, विस्मित सा सुने जा रहा था। राधेश्याम के अनुसार गायत्री बहुत मिलनसार थी। वह घर की समस्याएं और प्रदीप के रिश्ते को लेकर राधेश्याम को बता चुकी कि  राधेश्याम ने गायत्री को बहुत समझाया था।
 "भाभी अब उसे भूल जा,प्रदीप के बारे में विचार मत कर,लेकिन राधेश्याम की इन बातों का गायत्री पर कोई असर नहीं होता था। पर राधेश्याम को यह पता न था कि  एक दिन बात इतनी बढ़ जाएगी और इस तरह सूरज अपने ही हँसते खेलते भरेपूरे परिवार को उजाड़ देगा ।
मैं राधेश्याम से सारी बातें सुनकर घर लौट आया।
अगले दिन अखबार में एक ही खबर थी  बेरहम शक ने एक भरेपूरे परिवार को उजाड़ दिया।
पर जवाब अभी भी अधूरा था। आखिर इन हत्याओं का कातिल  कौन था? किसने इस परिवार को उजाड़ा था?
सूरज,प्रदीप ,गायत्री या कोई और.. प्रश्न का उत्तर बेहद मुश्किल था 
पुलिस ने शक के आधार पर सूरज को कातिल बता कर कैस बंद कर दिया। पर ..... कातिल कौन था?? इस विषय पर मैं भी  निरुत्तर था।
हेमराज सिंह'हेम'कोटा राजस्थान 
मौलिक

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