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कहानी बेजोड़ बंधन kahani bejod bandhan

 बेजोड़ बंधन 


"   सिमरन देख किरन से बोल दे मेरे नोट्स न चुराया करे "  मानवी ने गुस्से में बोला
यूँ तो तीनों पक्की सहेलियां थीं पर कक्षा में प्रथम आने की होड़ में झगड़े हो ही जाते ।
 ज़िन्दगी अपनी रफ्तार से गुजरती रही ।समय ने तीनों में सूझबूझ और परिपक्वता ला दी । अब झगड़े न के बराबर होते और दुनिया भर की पंचायत ज्यादा ।
   कल मानवी को लड़के वाले देखने आएंगे तो यह सोचकर उदास हो गयी कि अब बिछड़ जाएंगी तीनो ।अनाथ थी तो उसके मामा मामी भी अपनी जिम्मेदारी पूरी करके मुक्त होना चाहते थे ।
"कहते हैं लड़कियों की दोस्ती ज्यादा वक्त नही चलती ।"
"अरे क्यों नही चलती , मैं पहले ही बता दूँगी कि तुम दोनों से भी पूरा पूरा रिश्ता निभाना पड़ेगा ।बिल्कुल घर जैसा " मानवी ने हँसते हुये कहा।
 फिर तीनो खिलखिलाकर हँस दीं और घर की तरफ चल दीं।
     शादी हरियाणा जाकर होगी लड़के वालों की शर्त थी तो शादी में शामिल होने का ख्वाब भी ख्वाब रह गया ।पंजाब के एक छोटे से शहर से बाहर जाने की अनुमति नही मिल सकी।
   मानवी विदा होकर ससुराल चली गयी । जैसा कि होता आया है ससुराल की जिम्मेदारियां मायके से लकीरें खींच ही देती हैं ।
     कुछ वक्त गुजरते किरनप्रीत के रिश्ते की बात चलती रही और उसकी सांवली रंगत आड़े आती रही । उसकी रंगत और मध्यम वर्गीय स्थितियाँ हृदय के पटल पर हर बार चोट पहुँचाती। देखते देखते पांच साल गुजर गए।
 "  क्यों सिमरन एक लड़की के लिए शादी करना क्यों जरूरी है ? क्यों वो अपने परिवार के साथ हँसी खुशी नही रह सकती? किसने उन लोगों को ये हक़ दिया कि उसकी रंगत और परिवार का मज़ाक बनाया जाए ?" बोलते बोलते किरनप्रीत रो पड़ी।
     एक रोज़ सिमरन किरनप्रीत के घर पहुंची ।
  "चाची एक बात कहूँ ।आप तो जानती हो माँ पापा के बाद रेशम भैया ही हमको और मेहर को पढ़ाये लिखाये हैं ।मेहर अभी छोटा है जिसकारण भैया शादी को नही मान रहे है।अगर आप सही समझे तो एक बार किरनप्रीत के लिए भैया से ...." सिमरन के शब्द मुंह मे ही रह गए।
  किरनप्रीत की माँ अवाक रह गयी ।छोटी सी उम्र में इतनी समझ ।सच है माँ पिता न होने पर बच्चे उम्र से जल्दी बड़े हो जाते हैं ।
 किरनप्रीत ब्याह कर सीमा की भाभी बनकर आंगन में आ गयी ।
     जीवन हर पल रंग बदलता रहता है । सीमा का रिश्ता भी तय हो गया । विदाई पर दोनों ननद भौजाई यूँ लिपटी जैसे माँ बेटी हों ।
   सिमरन का ससुराल में पहला दिन ,आज कुछ मेहमान ही रह गए थे घर लगभग खाली हो गया था, एक बीजी थीं और उनकी बेटी प्रीतो बस । आते ही सिमरन ने घर सम्हाल लिया था और अपनी भाभी और प्रिय सखी के साथ ने उसे सुघड़ गृहणी भी बना दिया था । 
   'यह अपने मकान के पीछे कौन रहता है ? कोई नौकर है क्या ?" सिमरन ने अपने पति से पूछा ।उधर किसी के भी आने जाने की मनाही थी । ताला खोलकर खाने पीने का सामान रखवा दिया जाता था ।छत से थोड़ा सा हिस्सा दिखता था बस । कोई कृशकाय स्त्री लगती थी ,पर अंधेरा सा था उस ओर।
   "अपने काम से काम रखो ज्यादा ताकाझांकी मत किया करो" राजन ने कठोर स्वर में कहा।
   "आज करवा चौथ है ,सुनो शाम को जल्दी ही आ जाइएगा "  सिमरन ने कहा
प्रतिउत्तर में सर हिलाकर उसका पति राजन बाहर निकल गया ।
     रात को चाँद की पूजा होने के बाद पीछे का ताला खुला और राजन अंदर प्रवेश कर गया ।
  "कौन होगा वहां जो आज रात को इस वक्त जाना पड़ा, क्या भाभी को बोलूं ? नही, इस मामले में उनसे पूछना शायद ठीक न हो " सिमरन के मन मे सवाल उभर रहे थे ।
   वैसे ही ताला लगाकर चाभी अलमारी में रख कर राजन सो गया । सिमरन ने कई बार जानने का प्रयास किया तो डांट ही पड़ी । 
      " हम लोग प्रीतो के लिए लड़का देखने जा रहे हैं तुम और प्रीतो सही से रहना ।मैं और बड़ी बीजी  रात तक आ जायेंगे "सहमति में सर हिलाकर सिमरन ने हामी भरी।
  प्रीतो कभी एक क्षण को अकेला नही छोड़ती ।यूँ तो बहुत प्यारा स्वभाव था उसका ,पर बंद दरवाजे की बात वो भी हर बार टाल जाती ।
     "भाभी...... शन्नो आई है ,आप शर्बत बना दो और दुपट्टा निकाल दो...... हम लोग फुलकारी काढ़ेगें ।" प्रीतो ने कहा
  "ठीक है " सिमरन ने रसोई में जाकर शर्बत बनाकर प्रीतो को दिया,अलमारी से दुपट्टा निकालते सिमरन की नज़र चाभी पर पड़ी ।थोड़ी हिम्मत कर चाभी को हाथ में दबाकर निकाल लिया और दुपट्टा प्रीतो को देकर तेज़ी से बाहर निकल आई ।ऐसा पहली बार हुआ कि धड़कने सीने से बाहर निकलने को उतारू हो गईं थीं । जैसे कुछ गलत करने पर होता है ।
     इधर उधर  सब अच्छे से देख कर सिमरन ने डरते हुए धीरे से  ताला खोला।  एक पतली सी गली पार करके कोठरी सी दिखी ।कोठरी में ही रसोई थी । पीठ थी उस दुबली पतली नाम मात्र की स्त्री की।
  आहट सुनकर जब वो पलटी तो दोनों ही डर गयीं एक दूसरे को देखकर ।चीखने को हुई तो उस स्त्री ने सिमरन  के मुंह पर हांथ रख दिया । मुंह बंद था तो आंखों से आंसू बहने लगे ।जैसे सैलाब बह निकला हो ।
 हाथ मुँह से हटाने पर मुश्किल से शब्द निकले .....
"मानवी   , मानवी तुम  तुम यहाँ , इस हाल में , कैसे ,क्यों , तुम .... तुम्हारी तो......  "  सिमरन हतप्रभ सी बोले जा रही थी और रोये जा रही थी ।
" हाँ , यही कि मेरी शादी हो गयी थी , यही सब को पता था ।पर राजनदीप ने मेरी सुंदरता देख कर मुझे पूरे दो लाख में खरीदा था बच्चे पैदा करने के लिए और जब  मैं माँ नही बन सकी .......तो तुम्हे ब्याह लाया  । " मानवी ने रोते हुए बताया
 ये सुनकर सिमरन के पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गयी।
"तो तुमने ज्यादती क्यों बर्दाश्त की ,वापस क्यों नही आ गयी" सिमरन ने कांपती आवाज़ में मानवी को गले लगाते हुए पूछा

 "कहां वापस आती? घर कहाँ था मेरा ? मैं तो बिक चुकी थी ? और मेरे पास पैसे कहाँ थे इतने? आज़ाद कैसे होती ? जो अपने थे वो तो बेच गए और ज्यादा कुछ बोलती तो यहाँ से कहीं और बिक जाती ।मेरी यही किस्मत है। " मानवी ने रोते हुए कहा
  "नही .....मैं तुम्हे ऐसे नही देख सकती ।चलो मेरे साथ" सिमरन ने कहा।

" नही , नही ऐसे तो तुम्हारा जीवन भी बर्बाद हो जाएगा ।मैं ठीक हूँ ।तुमको देख लिया ,तसल्ली मिल गयी कि कोई है मेरा भी आस पास ।अब अपनी किस्मत को भी नही कोसूंगी, तुम यहीं आस पास हो सोचकर खुश रहूँगी ।" मानवी ने सिमरन का हाथ थपथपाते हुए कहा ।
 "पर .... "सिमरन कुछ बोलती इससे पहले उसकी बात काटते हुए बोली" पर वर कुछ नही अब तुम जाओ ,वरना कोई देख लेगा ।"
   सिमरन दुःखी मन से गले लग कर ताला लगाकर वहां से निकली तो देखा दोनों सहेलियां आपस की बातों  में मस्त थीं । अलमारी में चाबी रखते सोचने लगी ऐसी ही तो थी हमारी ज़िंदगी शादी से पहले। कितने अच्छे दिन थे । 
    "भाभी , भाभी " प्रीतो की आवाज़ सुनकर चौक गयी।
 "हां ....लाडो" प्रीतो को ऐसे ही बोलती थी सिमरन।
"क्या सोच रहीं हैं आप मैं दुपट्टा दिखा रही थी।" प्रीतो बोली
"कुछ नही तबियत कुछ ठीक नही है " सिमरन ने बात सम्हाली ।
 शाम को खाली होते ही फोन पर किरन भाभी को पूरी बात एक सांस में बता गयी ।जिसे सुनकर किरण के भी पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गयी ।
  ज़िन्दगी तीनों सहेलियों को कैसे मुकाम पर ले आई थी ।किरण ने तुरंत ही सारी बात सिमरन के भाई रेशम को बताई ।
   रेशम की पुलिस में अच्छी जान पहचान थी ।जिसकी मदद से न सिर्फ मानवी को आज़ादी मिली बल्कि सिमरन को भी अंधे कुएं में गिरने से बचाया जा सका । राजन को उसके किये की सज़ा मिली ।
    आज तीनो सहेलियां आमने सामने एक साथ थीं और साथ थे कुछ पुराने फोटो ।बीते खुशनुमा वक्त की खूबसूरत यादें ।
   लड़कियां समाज का आईना होती हैं आईना साफ रखना और सलीके से रखना बहुत जरूरी है तभी चेहरा साफ दिख सकेगा ।

©डॉ. ज्योत्स्ना गुप्ता
9452800885
स्वरचित एवं अप्रकाशित

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