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निगरानी तंत्र को मजबूत करने की जरूरत Tantra ko majabut karne ki jarurat

 निगरानी तंत्र को मजबूत करने की जरूरत


एक तो महामारी और उपर से निगरानी तंत्र की गैर जिम्मेदाराना रवैया सिस्टम पर ही सवालिया निशान छोड़ रहा है।यह बात मैं नही यह आंकड़े कह रहे हैं।चारो तरफ हाहाकार है ऐसे में बडी मात्रा में टीका का बर्बाद होना सवालिया निशान खड़ा करता है।अब तक देश में लगभग 44-45 लाख  से अधिक टीका की खुराकें बरबाद हो चुकी है।वो भी उस समय जब देश के अधिकांश हिस्से आज महामारी से त्रस्त हैं। देश की स्वास्थ्य सेवा की बदइंतजामी का यह जीता जागता उदाहरण है । इसमें ऐसे राज्य सबसे उपर है जहां यह बीमारी जोरों पर है बिहार, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडू, हरियाणा, महाराष्ट्र,गुजरात और राजस्थान । भारत दुनिया में आबादी के लिहाज से दूसरे स्थान पर है, ऐसे में किसी तरह की दवा की बर्बादी आबादी पर भारी पड़ सकता है ।यह बात स्वास्थ्य कर्मियों एवं वितरण प्रणाली को समझना होगा।आज भारत में प्रत्येक दिन  लगभग 2000 लोग दम तोड़ रहे है और 2 लाख प्रतिदिन नये संक्रमित मिल रहे हैं। श्मशान में लंबी कतारें लग रही है और स्वास्थ्य विभाग की बदइंतजामी से दवा बर्बाद हो रहे है आखिर जब प्रोटोकाल तय किया गया तो उसका अनुपालन क्यों नही हुआ ? 

राज्य और केन्द्र के बीच सम्बन्ध अच्छे न होना एक अलग और संघीय ढांचे का हिस्सा हो सकता है लेकिन कुछ मसले महामारी के वक्त यह बद इंतजामी उन सरकारो पर सवालिया निशान जरूर छोड गये हैं जो लाशों पर अपनी राजनीति की रोटी सेक रहे हैं।

आज अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने 15-20 प्रतिशत लोगों को टीकाकरण कर चुका है जबकि भारत अभी तक 1 प्रतिशत के दायरे में सिमटकर अपनी टीका की बर्बादी गाथा लिख रहा है।

हम ऐसी जगह आ पहुँचे है जहां कोताही की तनिक भी गुंजाइश नहीं है हमारी मृत्युदर बढ़ रही चारो ओर हाहाकार है, ऐसे में तमाम राज्यों के स्वास्थ्य सेवाएं और निगरानी तंत्र को वेहद मुस्तैदी से काम करना ही होगा क्योंकि यह मानवता की पुकार है ।इस समय वेहद सर्तकता से जीवन बचाने के लिए सामने आए चुनौतीयों से लड़ना होगा।

जीवन रक्षक दवाओं एम्बुलेंस सेवाओं और जरूरी खाद्य सामग्री का सुचारू रूप से उपलब्धता बढ़ानी होगी ।लोकतंत्र में विश्वास रखकर जात पात से परे हटकर मानवता के लिए  सभी आगे आएं और जीवन की रक्षा करें ऐसे संकल्प बनाने होंगे।डरना नही,हमें तो लड़ना है, एक तंत्र से, दूजा कोरोना से, यही विवशता है, और समय की मांग भी?




                                          आशुतोष
                                        पटना बिहार

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