देश के पहले मुस्लिम भारतीय वायु सेना चीफ़
भारतीय वायुसेना दिवस
इदरीस हसन लतीफ़
आज भारतीय वायुसेना दिवस है। इस मौके पर हम आपको एक भारत के पहले मुस्लिम चीफ़ चीफ के बारे में बताने जा रहा है।हैदराबाद में एक संपन्न परिवार में 9 जून1923 जन्मे। वह दूसरी आदमी एंड के दौरान भारतीय वायु सेना की स्वयंसेवी रिजर्व में शामिल हुए । कराची में तटीय उड़ान में शामिल होने के बाद , उन्होंने रायल एअर फोर्स साथ ब्रिटेन में एक वर्ष बिताया । नम्बर 03 भारतीय वायु सेना स्कवार्डन हिस्से के रूप में बरता अमिताभ में सेवा की । देश के विभाजन के बाद , उन्होंने भारतीय वायु सेना के साथ रहने का निर्णय लिया। उन्होंने स्कवार्ड्रन 4 की कमान संभाली और 1950 में पहली गणतंत्र दिवस परेड के दौरान फ्लाई-पास्ट में स्क्वाड्रन का नेतृत्व किया। उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में भी के एक स्क्वाड्रन की कमान संभाली ।
इदरीस लतीफ ने 26 जनवरी 1950 को भारत के गणतंत्र बनने के बाद नई दिल्ली में भारत के पहले फ्लाई-पास्ट का नेतृत्व किया था. द्वितीय विश्व युद्ध के एक अनुभवी एयर चीफ लतीफ ने जगुआर स्ट्राइक एयरक्राफ्ट की खरीद में भी अहम किरदार अदा किया और 1 मई 2018 को वो इस दुनिया एक फानी को छोड़ कर जन्नत मकीं हो गए।
इदरीस लतीफ ने 26 जनवरी 1950 को भारत के गणतंत्र बनने के बाद नई दिल्ली में भारत के पहले फ्लाई-पास्ट का नेतृत्व किया था. द्वितीय विश्व युद्ध के एक अनुभवी एयर चीफ लतीफ ने जगुआर स्ट्राइक एयरक्राफ्ट की खरीद में भी अहम किरदार अदा किया था।
पाकिस्तानी एयरफोर्स में मौजूद कमांडिंग ऑफिसर स्क्वाड्रन लीडर असग़र ख़ान और एक तेज़तर्रार पायलट लेफ्टिनेंट नूर ख़ान के अच्छे दोस्त थे।एयर चीफ मार्शल लतीफ़ ने अपने आधिकारिक प्रोफाइल में लिखा है "जब विभाजन के बाद जब सशस्त्र बलों का विभाजन हुआ तो एक मुस्लिम अधिकारी के रूप में लतीफ को भारत या पाकिस्तान दोनों में शामिल होने के विकल्प था। जिसको लेकर इदरीस बहुत स्पष्ट थे कि उनका भविष्य भारत के साथ है. भले ही उनके दोनों अच्छे दोस्त असग़र और नूर ख़ान भारत को छोड़कर पाकिस्तान वायु सेना में शामिल हो गए थे लेकिन लतीफ ने भारत को छोड़ने से इनकार कर दिया था। भारतीय वायु सेना प्रमुख के रूप में लतीफ वायु सेना के उपकरण और आधुनिकीकरण योजनाओं में पूरी तरह से शामिल थे। उस वक़्त की सरकार को लतीफ़ ने ही जगुआर स्ट्राइक एयरक्राफ्ट की खरीद को मंजूरी देने के लिए राजी किया था. जगुआर स्ट्राइक एयरक्राफ्ट एक ऐसा प्रस्ताव था जो 8 साल से ज्यादा वक्त से पेंडिंग पड़ा हुआ था। सूत्र के मुताबिक उस वक़्त की सरकार को लतीफ़ ने ही जगुआर स्ट्राइक एयरक्राफ्ट की खरीद को मंजूरी देने के लिए राज़ी किया था।उन्होंने। चीफ़ के तौर पर मिग-23 और मिग-25 विमान के लिए रूसी सेनाओं से बातचीत की. जिसके बाद में मिग-23 और , मिग -25 विमान को इंडयिन एयरफ़ोर्स में शामिल किया।1981 में अपने रिटायरमेंट के बाद लतीफ ने महाराष्ट्र के राज्यपाल और फ्रांस में भारतीय राजदूत के पदों पर काम किया था।
जब भी एयरफोर्स के इतिहास की बात की जायेगी तो इदरीस हसन लतीफ का नाम अवश्य लिया जाएगा।क्योंकि उन्होंने एयरफोर्स के कई अहम पदों पर काम किया था और आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था।
उनके उत्कृष्ट कार्यों के चलते भारतीय वायु सेना के इतिहास में उनका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा है।
ए एच इदरीसी
कानपुर
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