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साथी चाहे जैसा हो राजू कुमार मस्ताना

साथी चाहें जैसा हो

बाप को भा जाता है भैंसा भी
चरित्र हो उसका जैसा भी
शराबी हो या जुआरी हो
या अंधेरे का स्वामी हो
बाप दादा की दौलत ढेर सारी हो;
बेटी कमसिन कुवारी हो
बाँध देता है उस खुटे से
लंगड़ा, लुलह या रण्डवा हो
लड़की क्यों ना रूपमती हो,
गुणवती हो, चाहे शिक्षित हो
उसको दिखता पैसा है
सथी चाहे जैसा है।

खुशी खुशी लाखो तिलक है देता
खुद जाता है जिसके पास है पैसा
उसका डिमांड भी है वैसा, है पैसा,
कार, लैपटॉप,फ्रिज,इत्यादि
उसका मन ना इनसे भरता
शुरू करता है दण्ड देना बेटी को
बाप सिर पकड़  है रोता
लड़की को भी दिखता पैसा  है
अब बताऔ वो कैसा है
सिर्फ उसपे पैसा है,पैसा है
सथी चाहे जैसा है।

सोच तुम्हारी थी जैसी
लड़का बिल्कुल वैसा है
दौलत भी ढ़ेर सारी है
फिर कैसे लड़की प्रतारित है;
दहेज को बढ़वा देते तुम हो
बोली लगाकर, अमीरी खरीदते तुम हों
अब भुगतो जमाई चाहे जैसा है
उसपे ढेर सारा पैसा है
साथी चाहे जैसा है।
   राजू कुमार मस्ताना

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