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मुक्तक (muktak)

मुक्तक               

इक बात बताऊँ.. तुम्हें मैंने अपना खुदा मान लिया,
जीना भूल चुका था मगर,जीने की वजह मान लिया,
तुमको मुझसे मोहब्बत थी या नहीं, जो भी हो..मगर,
तुमने कभी कहा नहीं,तो मैंने हक़ीक़त मान लिया.

बेवजह हमसे रूठकर तुम फसाद कर लेते हो,
फिर चुपके से आकर दिल से मलाल कर लेते हो,
सारे नाते तोड़कर हमसे, कहते हो खुश रहना,
बहुत सही!क्या बात है!अच्छा मज़ाक कर लेते हो.

क्या मोहब्बत भी कभी किसी की जागीर रही होगी, 
अच्छा ये बताओ तुम्हारे पास उसकी तस्वीर तो रही होगी,  ठुकरा   दिया   जिसने   तुमको   गरीब   कहकर,
तुम्हीं बताओ क्या वो लड़की दिल की अमीर रही होगी.

                    आशीष सिंह

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