तुम
तुम पहाड़ नहीं उठाती भार तो उठाती हो
लोग सोये ही होते हैं तुम तो उठ जाती हो
तुम्हारे पास फुर्सत है कहाँ जो सो सकोगी
झिलमिलाती चाँदनी रात में भी खो सकोगी
तुम तो खो चुकी हो पहले ही सपने अपने
तेरे श्रम ही दो रोटी के काम आते हैं अपने
झूठी है यह पूरी दुनिया ही झूठी है समझो
ख्वाब दिखावे तो भी मत बातों में उलझो
श्रम तेरे ही बस यहाँ काम आयेंगे तुम्हारे
लोग यहाँ निष्ठुर हैं, काँटे हैं और हैं अंगारे
विद्या शंकर विद्यार्थी
रोहतास, ( बिहार )
बेहतरीन सृजन
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