प्रेम
मुखरित हो गए आज हृदय के राज सभी ,
प्यार यहां जो कैद पड़ा था ,
हुआ मुक्त वह प्यार अभी ,
नन्ही -नन्ही कुछ आशाएं सफल ,
हो गई यहां अभी ,
तुम आए इस राह अंधेरी ,
बिखर पड़ा है मीहीर अभी ,
विलक्षण प्रतिभा स्नेह की तेरे ,
उजागर हुई है अभी -अभी ,
जान मेरी भी बेजान पड़ी थी ,
मिले जो तुम संजीवन बूटी ,
अमृत बेल चाख-चाख ,
कर हो गई मैं अमर अभी ,
सदियों बड़ी निर्जीव मूर्ति में ,
प्राण फूंक दिए अभी -अभी ,
हर एक दिशा विकलांग थी जो ,
सहज हूई है राह सभी ,
प्रकाश हुआ है कोहिनूर सा ,
मुखरित हो गए छंद सभी ।।
(चंद साॅसे )
✍🏻कमल गर्ग
असोला फतेहपुर बेरी
नई दिल्ली -74
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