कूप से आस
मैं चली कुछ सोच कर,
पनघट वाली डगर,
सुना ,सुहानी होती है,
वहां की हर सहर।
भोली भाली गोरियां,
जब जल भरने को आती,
साज श्रृंगार सजाए,
देखो हंसती और इठलातीं।
खींच ,खींच रसरी से,
जल गागर में हैं डालें,
नाजुक नाजुक उन हाथों पर,
पड़ते देखे हैं रे छाले।
कैसे कोई इन्हे है रोके?
कैसे कोई संभाले,
कोई तो इन गांवों की भी
बिगड़ी दशा संभाले।
कहाँ नासा ,कहाँ मंगल?
पानी हेतु मचा है दंगल
त्राहिमाम त्राहिमाम मचा,
घर,उपवन जंगल।
और गोरी गोरी कलाइयां,
लाल पड़ जाने को बेताब हैं
पर यह तो बता दो!
करें किस कूप से आस है
किस कूप से आस हैं।
रश्मि लता मिश्रा
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