।। अकेले।।
बारिश का मौसमघर पर अकेले हम
पानी के बगूले
हम नहीं है भूले
सब है असार
झूठा तेरा संसार
मिटता जीवन
तो कैसी अनबन
गिरती बूँदें छम_छम।।
बूँदों की आघात
सहते गिरि नाथ
धुले तरु पात
दो दिन का साथ
झुका ना अहं मे माथ
अब जाने की बेला
खत्म सारा खेला
गरजते मेघ घम-घम।।
घूमने निकली
थोड़ी सी फिसली
मेघ मेहरबान
अकड़ मे है शान
शून्य का है दान
गुणों की है खान
बढ़ा धरा का मान
दमके दामिनी दम-दम।।
घेरे निराशा
ना मिलने की आशा
पास रहके दूर हो
आंखों के नूर हो
बड़े मशहूर हो
पर मगरूर हो
समझ ना पायी
जग भर मे धायी
मेरी औकात बड़ी कम।।
उठते सत् विचार
तुम ठहरे निर्विकार
ना अवलंब ना आधार
कार्य सब है साकार
मन मे है मैला पानी
जिसकी अमर कहानी
गवां दी मैने जवानी
थोड़ी बची है दम- खम।।
चले हैं सब अकेले
राहों मे लगे मेले
सामने हैं जग झमेले
कमर में ना अधेले
इच्छित लगे ठेले
बिन पैसों का ले ले
जीवन को जैसे खे ले
बनो शून्य के चेले
पीछे काल आता धम-धम।।
।। कविरंग।।
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