किस दिशा की ओर अग्रसर है कदम आज की युवा पीढ़ी का
हमारा देश युवाओं का देश हैं। युवा पीढ़ी ही पर देश का भविष्य टिका हुआ हैं। परंतु आज के आधुनिक युग में और पाश्चात्य संस्कृति के मकड़ जाल के चक्रव्यूह में अपने कदम डगमगाने लगे हैं। आज की युवा पीढ़ी को भावी व चरित्रवान बनाना तथा पौराणिक ज्ञान से दनुप्रमाणित होकर आधुनिक तकनीक और विज्ञान में भी किसी से पीछे न रहने की पद्धति का अनोखा संगम बच्चों के भविष्य को एक स्वर्णिम राह की ओर ले जाएगा। अगर सभी अच्छे बन जाएंगे तो निश्चित रूप से समस्त समाज भी अच्छा हो जाएगा। शिक्षक के रूप में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शिष्यों को सभ्य एवं शिक्षित बनाना है न केवल साक्षर। शिक्षक होने के नाते हमारा दायित्व हो जाता है कि बच्चों में नैतिक मूल्यों को भी भरें और संस्कारों को लेकर उनके साथ रोजाना बातचीत की जाए। रोजाना अगर संस्कार की बात होगी तो बच्चे स्वयं ही नैतिक मूल्य व संस्कारों के प्रति सजग रहेंगे जिससे हमारा दायित्व भी पूरा हो जाएगा।
वर्तमान युग में प्रश्न प्रबल हो गया है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति क्या अपने दायित्वों की पालना कर रहा है कि नहीं। यदि हां तो समाज में फैली हुई निराशा और असंतोष का वातावरण क्यों बन रहा है। समाज की यह तस्वीर डराने वाली है, जिसमें कहीं शिष्यों द्वारा अध्यापकों का कत्ल किया जा रहा है। तो कोई अपने माता-पिता, जिन्होंने पैदा कर उन्हें सक्षम बनाया, उन्हीं पर अत्याचार कर रहा है। कहीं नारी का अपमान, चोरी, लूटपाट की घटनाएं, शोषण, नशाखोरी, भ्रष्टाचार की घटनाएं आने वाली पीढ़ी को भ्रमित कर रही हैं। इसमें हमारा दायित्व बन जाता है कि हम भटक रही इस पीढ़ी को नैतिकता का पाठ पढ़ाएं, जिससे उन्हें संस्कार मिल सकें। अच्छे संस्कार होंगे तो अच्छे व बुरे में फर्क का भी पता लग सकेगा। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि मन की असीम शक्ति और सामर्थ्य को पहचान कर व्यक्ति न केवल विचारवान हो सकता है, बल्कि अच्छे इंसान में भी परिवर्तित हो सकता है।
अंधेरे की ओर बढ़ती इस पीढ़ी को संवेदनशील बनाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को यह दायित्व निभाना होगा कि वह नई पीढ़ी को सही मार्ग दिखाए। यही हम सबके जीवन का दायित्व होना चाहिए। समाज में रह रहे सभी लोगों को समय-समय पर दायित्वों के प्रति प्रेरित करते रहना चाहिए। कुछ प्राणी ऐसे हो सकते हैं जिनको दायित्वों से कुछ लेना-देना नहीं है। अपनी जिम्मेदारियों सही ढंग से निभाना ही दायित्व है। एक अध्यापक होने के नाते मैं यह कहना चाह रही हूं कि आज के शिष्यों में वह सहनशीलता नहीं रही है जो प्राचीन काल में हुआ करती थी। उनके अंदर के अवगुणों को निकाल अच्छे गुणों को भरा जाए। शिष्यों को नैतिकता, शिष्टाचार, अच्छे विचार, आदर, विनम्रता व सहनशीलता की शिक्षा देनी चाहिए। उन्हें प्राचीन ग्रंथों को पढ़ाया जाए ताकि वह समझ सकें कि बड़ों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए और हमारे समाजिक सांसारिक व राष्टीय दायित्व क्या है।
ईश्वर ने मनुष्य को एक अलग ही सोचने व समझने की शक्ति प्रदान की है। अगर हम संस्कारों व नैतिकता को छोड़ संस्कारविहीन होने लग जाएं तो मनुष्य व पशु में क्या अंतर रह जाएगा। हमारा यह दायित्व बनता है कि भटके हुए को अच्छे आचरण व स्नेह तथा दयालुता से उन्हें अच्छे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करें।
- ✍🏻 सूबेदार रावत गर्ग उण्डू 'राज'
( सहायक उपानिरीक्षक - रक्षा सेवाऐं भारतीय सेना
और स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी )
निवास :- ' श्री हरि विष्णु कृपा भवन '
ग्राम :- श्री गर्गवास राजबेरा,
तहसील उपखंड :- शिव,
जिला मुख्यालय :- बाड़मेर,
पिन कोड :- 344701, राजस्थान ।
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