श्री गर्ग संहिता भगवान श्री कृष्ण की दिव्य लीला का वर्णन करता
महामुनि महर्षि गर्गाचार्य ऋषि द्वारा रचित पावन ग्रन्थ
हमारे देश की पावन धन्य धरा पर अनेक ऋषि मुनि व लोक संत हुए है जिन्होंने हमें जीवन के पथ पर चलने का मार्ग प्रशस्त करवाया है। ऐसे कई ऋषि महर्षि हुए जिन्होंने अपनी शिक्षाओं व अपने द्वारा रचित सद्ग्रन्थ से मानव हितार्थ व लोक कल्याण के लिए वर्णन प्रस्तुत किया है। ऐसे ही महान ऋषि हुए जगद्गुरु भगवान श्री गर्गाचार्य जी जिन्होंने भगवान श्री कृष्ण की जीवन लीला का बहुत सुंदर वर्णन किया है अपने लोकप्रिय सद्ग्रथ ' श्री गर्ग संहिता ' में। महर्षि महामुनि गर्ग ऋषि या महर्षि गर्गाचार्य जी भगवान श्री कृष्ण जी के गुरू थे। तथा श्री कृष्ण के कुल यदुवंशीयों के कुलगुरू भी थे। महर्षि श्री गर्ग ऋषि ने ही भगवान श्री कृष्ण जी का नामकरण संस्कार व भविष्य वर्णन किया था। महर्षि गर्ग ज्योतिष के महान आचार्य व गणितज्ञ रहे थे । इन्होंने शास्त्र में अनेक ग्रन्थ व शास्त्रों की रचना की थी। महर्षि गर्ग ऋषि ज्योतिष शास्त्र के प्रधान प्रवर्तक रहे थे ।
श्री गर्ग संहिता महामुनि महर्षि गर्गाचार्य ऋषि की रचना :-
Mahamuni maharshi gargachary rishi dwara rahit paavan granth
श्री गर्ग संहिता यदुवंशियों के कुल आचार्य रहे महामुनि महर्षि गर्ग ऋषि की रचना है। इस संहिता में मधुर श्री कृष्ण लीला परिपूर्ण है। इसमें राधाजी की माधुर्य-भाव वाली लीलाओं का वर्णन किया गया है। श्रीमद्भगवद्गीता में जो कुछ सूत्ररूप से कहा गया है, श्री गर्ग-संहिता में उसी का बखान किया गया है। अतः यह भागवतोक्त श्री कृष्ण लीला का महाभाष्य है। द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण की पूर्णाता के संबंध में महामुनि महर्षि गर्ग ऋषि ने कहा है कि -
' यस्मिन सर्वाणि तेजांसि विलीयन्ते स्वतेजसि ।
त वेदान्त परे साक्षात् परिपूर्णं स्वयम् ।। '
श्री कृष्ण भगवान की जीवन लीला अनुपम वर्णन :-
Shrikrishna bhagwan ki jivan lila ka anupam varnan
श्रीमद्भागवत में इस संबंध में महर्षि व्यास ने मात्र 'कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्'- इतना ही कहा है। ,भगवान श्री कृष्ण की मधुरली की रचना हुई दिव्य रस के द्वारा उस रस का रास में पावन पवित्र सद्ग्रथ ' श्री गर्ग संहिता ' प्रकाश हुआ है। श्रीमद्भागवत् में उस रास के केवल एक बार का वर्णन पाँच अध्यायों में किया गया है। जबकि इस 'श्री गर्ग संहिता' में वृन्दावन में, अश्व खण्ड के प्रभाव सम्मिलन के समय और उसी अश्वमेध खण्ड के दिग्विजय के अनन्तर लौटते समय तीन बार कई अध्यायों में बड़ा सुन्दर वर्णन है। इसके माधुर्य ख्ण्ड में विभिन्न गोपियों के पूर्वजन्मों का बड़ा ही सुन्दर वर्णन है और भी बहुत-सी नयी कथाएँ हैं। यह दिव्य पावन ग्रन्थ श्री गर्ग संहिता भक्तों के लिये परम समादर की वस्तु है; क्योंकि इसमें श्रीमद्भागवत के गूढ़ तत्त्वों का स्प्ष्ट रूप में उल्लेख है।
श्री गर्ग संहिता ज्योतिष शास्त्र में श्रेष्ठ :-
Shri garg sanhita jyotish shashtr me shreshth
श्री गर्ग संहिता शास्त्र ज्योतिष शास्त्र के 6 भागों पर गर्ग संहिता नाम से महामुनि महर्षि गर्ग ऋषि ने एक संहिता शास्त्र की रचना की। श्री गर्ग संहिता ज्योतिष पर लिखे गये प्राचीन शास्त्रों में नारद संहिता, गर्ग संहिता, भृगु संहिता, अरून संहिता, रावण संहिता, वाराही संहिता आदि प्रमुख संहिता शास्त्र है। महामुनि गर्ग ऋषि को यादवों का कुल पुरोहित भी माना जाता हैं। इन्हीं की पुत्री महान विदुषी देवी गार्गी के नाम से प्रसिद्ध हुई है। भारत में ज्योतिष को वेदों का एक प्रमुख अंग माना गया हैं। वैदिक ज्योतिष शास्त्र की नींव माने जाने वाले 18 ऋषियों में से महामुनि महर्षि गर्ग ऋषि का योगदान भी महत्वपूर्ण व सराहनीय रहा हैं। प्राचीन काल से ज्योतिष शास्त्र पर विशेष अध्ययन हुआ। ज्योतिष ऋषियों के श्री मुख से निकल कर, आज वर्तमान काल में अध्ययन कक्षाओं तक पहुंचा चुका है।
श्री गर्ग संहिता पर ज्योतिष में अनुसंधान :-
Shri garg snhita pr jyotish me anusndhan
महर्षि महामुनि गर्ग ऋषि की रचना 'श्री गर्ग संहिता' न केवल ज्योतिष पर आधारित शास्त्र है, बल्कि इसमें भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का भी वर्णन बहुत सुंदर व मनोहारी रूप से किया गया है। यह एक प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रन्थ हैं। इस महा श्री गर्ग संहिता ग्रन्थ को ज्योतिष के क्षेत्र में रिसर्च के लिए प्रयोग किया जाता हैं। श्री गर्ग संहिता में भगवान श्री कृष्ण चरित्र का विस्तार से निरुपण किया गया है। इस ग्रन्थ में तो यहां तक कहा गया है, कि भगवान श्री कृष्ण और राधा का विवाह हुआ था संपूर्ण जीवन लीला का वर्णन किया गया है। श्री गर्ग संहिता में ज्योतिष शरीर के अंगों की संरचना के आधार पर ज्योतिष फल विवेचन किया गया हैं।
श्री गर्ग संहिता पवित्र और दिव्य ग्रंथ :-
Garg snhita pavitr or divya grnth
भगवान श्री कृष्ण में समस्त भागवत-तेजों के प्रवेश का वर्णन करके श्री कृष्ण की परिपपूर्णता का वर्णन किया है। श्री कृष्ण की मधुरमय की रचना हुई दिव्य ‘रस’ के द्वारा; उस रस का रास में प्रकाश हुआ है। श्रीमद्भागवत् में उस रासके केवल एक बार का वर्णन पाँच अध्यायों में किया गया है; किन्तु इस श्री गर्ग-संहिता में वृन्दावन में, अश्वखण्ड के प्रभावसमिलन के समय और उसी अश्वमेधखण्डके दिग्विजय के अनन्तर लौटते समय—यों तीन बार कई अध्यायों में उसका बड़ा सुन्दर वर्णन है। पर प्रेमस्वरूपा, श्रीकृष्णसे नित् अभिन्नस्वरूपी शक्ति श्रीराधाजी के दिव्य आकर्षण से श्रीमथुरानाथ एवं श्रीद्वारकधीश श्रीकृष्ण ने बार-बार गोकुल में पधारकर नित्यसेश्वरी, नित्यकुञ्जश्वरी के सात महारासकी दिव्यलीला की है—इसका विशद वर्णन है। इसके माधुर्यख्ण्में विभिन्न गोपियों के पूर्वजन्मों का बड़ा ही सुन्दर वर्णन है और भी बहुत-सी नयी कथाएँ हैं। श्री गर्ग संहिता बहुत ही रोचक धार्मिक भगवान श्री कृष्ण की दिव्य लीलामृत व पूजा स्थल में आदर से रखा जाने वाला पवित्र श्री भागवतोक्त सद्ग्रथ हैं।
- ✍🏻 फौजी साहब... सूबेदार रावत गर्ग उण्डू
( सहायक उपानिरीक्षक - रक्षा सेवाऐं भारतीय सेना
और स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी, आकाशवाणी श्रोता )
प्रदेशाध्यक्ष :- अखिल भारतीय श्री गर्ग रेडियो श्रोता संघ राजस्थान ।
निवास :- ' श्री हरि विष्णु कृपा भवन '
ग्राम :- श्री गर्गवास राजबेरा,
हेड पोस्ट ऑफिस :- उण्डू,
तहसील उपखंड :- शिव,
जिला मुख्यालय :- बाड़मेर,
पिन कोड :- 344701, राजस्थान
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