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राजा हसन खॉं की कहानी " मेवाती "


मिलिये एक अज़ीम वतनपरस्त बादशाह "हसन खॉं मेवाती" से जो आज ही के दिन इस मुल्क के लिये लडते लडते शहीद हो गये थे ।

15 मार्च 1527 को राजा हसन खां ने राणा सॉंगा के साथ मिलकर 'खानवा' के मैदान में बाबर की सेना के खिलाफ़ जंग लडी । जंग के दौरान जब अचानक एक तीर राणा सांगा के सिर पर आ लगा और वह हाथी से नीचे गिर पडे और सेना के पैर उखडने लगे तो पूरी सेना की कमान खुद राजा हसन खां मेवाती ने संभाली और बाबर की सेना को ललकारते हुऐ उनपर जोरदार हमला बोल दिया। राजा हसन खां मेवाती के 12 हजार घुडसवार सिपाही बाबर की सेना पर टूट पडे, बहादुरी से लडते हुए राजा ने बाबर की सेना के छक्के छुडा दिये, जंग के दौरान ही एक तोप का गोला राजा हसन खां मेवाती के सीने पर आ लगा और हसन खॉं इस मिट्टी के लिए लडते हुए शहीद हो गये ।

 शहीद राजा हसन खां के मृत शरीर को उसके पुत्र ताहिर खां, नजदीकी रिश्तेदार जमालखां और फतेहजंग लेकर आये, उसके बाद राजा हसन खां के पार्थिक शरीर को अलवर शहर के उत्तर में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। यहां पर राजा हसनखां के नाम पर एक यादगार छतरी बनाई गई थी।
 1947 के बँटवारे के दौरान फ़िरक़ापरस्त उपद्रवियों ने इस महान राजा हसन खॉं के स्मारक को भी नष्ट कर दिया ।

इतिहास कभी शहीद राजा हसन खॉं को वो सम्मान नहीं दे सका जिसके वो हक़दार थे ।

  Op Merotha hadoti kavi
छबड़ा जिला बारां ( राज०)

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