*बेटा पढ़ाओ - संस्कार सिखाओ अभियान*
*शृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज एक अलग विषय आपके समक्ष लाने का विचार मन में आया है - कवयित्री उपाध्याय*
*आपको आवश्यकता है ये सारी जानकारी जुटाने की क्योंकि यू ट्यूब पर परोसी जा रही अश्लीलता बच्चों पर दुष्प्रभाव डाल रही है।*
*लक्ष्मणगढ़ - (सीकर) - 12 - मार्च - 2020*
बेटा पढ़ाओ - संस्कार सिखाओ अभियान को लेकर एक नए विषय पर प्रकाश डालते हुए कवयित्री डालते निरुपमा उपाध्याय ने कहा कि युवा कवि हरिश शर्मा के प्रयास से उत्तरोत्तर प्रगतिशील अभियान -बेटा पढ़ाओ, संस्कार सिखाओ -समाज के भटके हुए युवावर्ग को दिशा देने के लिए उठाया हुआ एक महत्वपूर्ण एवं साहसिक कदम है। शृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज एक अलग विषय आपके समक्ष लाने का विचार मन में आया है। हमने अपने छोटे -छोटे,अपरिपक्व बच्चों के हाथ में एंड्रॉइड मोबाइल देदिया,इंटरनेट रिचार्ज कर दिया।हम खुश हैं हमारा बच्चा भी झुश है,लेकिन बच्चे उस मोबाइल का उपयोग किस प्रकार कर रहे हैं,क्या कभी हमने सोचा है? क्या कभी कोशिश की ,यह जानने की कि बच्चे कौन- कौन सी जानकारी उसमें से ले रहे हैं ?किस दिशा में जा रहे हैं?
आपको आवश्यकता है ये सारी जानकारी जुटाने की क्योंकि यू ट्यूब पर परोसी जा रही अश्लीलता बच्चों पर दुष्प्रभाव डाल रही है।उनको भटका रही है।पोर्न साइट्स का जहर समाज में बड़ी तेजी से फैल रहा है।
बढ़ती उम्र में बच्चों में जिज्ञासु प्रवृत्ति अत्यन्त तीव्र होती है। वह बहुत कुछ जानने की,देखने की और साथ ही साथ क्रियान्वयन के इच्छुक होते हैं।
इन्सान सदैव अपूर्ण ही रहता है।कोई भी उम्र ऐसी नहीं जहाँ कुछ सीखने को न मिले या किसी की सलाह की आवश्यकता न पड़े।विचारों का आदान-प्रदान जीवन -पर्यन्त प्रेरणा दायक भी होता है साथ ही आवश्यक भी।समय बदलता है,नयी टेक्नोलॉजी आती है ,जो बड़ी अवस्था के लोग आसानी से नहीं समझ पाते ,लेकिन बच्चे आसानी से आत्मसात कर लेते हैं,इसलिए आवश्यक है कि उनको सही दिशा में मोड़ने का प्रयास किया जाये।यद्यपि बच्चे को जन्म से ही संस्कारित करना आवश्यक है लेकिन टीन एजर्स को उचित मार्गदर्शन की महती आवश्यकता होती है।ये अवस्था बहुत ही नाजुक होती है।। बेटा हो या बेटी-बचपन की देहलीज को पार कर किशोरावस्था की ओर बढ़ते हैं।ये आयु का संक्रमण काल है।जहाँ न बाल्यकाल है न किशोरावस्था ।शारिरिक परिवर्तन भी बच्चों को विचलित करता है ,नवीन उत्सुकतायें जागृत होती हैं,एक अल्हड़पन होता है,दिशा भ्रमित होने का यही समय है। अभिभावकों को अवस्था के इस दौर में बच्चों का साथ देना चाहिए।अधिक से अधिक समय उनके साथ व्यतीत करना चाहिए। उनके विचारों को ,उत्कंठाओं को,जिज्ञासाओं को जानने का ,समझने का प्रयास करना चाहिए।
चाणक्य नीति में समझाया गया है -
लालायेत् पंचवर्शाणि,दशवर्शाणि ताडयेत् ।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे,पुत्रम् मित्र वत् समाचरेत् ।।
अर्थात् पाँच वर्ष तक बच्चे को प्यार से समझाना चाहिए,दश वर्ष तक ताड़ना अर्थात् दृढ़तापूर्वक समझाना चाहिए और सोलह वर्ष का होने के बाद उससे मित्रवत् व्यवहार करना चाहिये ।उसकी समस्याओं को समझना चाहिये, उनका समाधान निकालने का प्रयास करना चाहिए,अपनी समस्याओं को भी बच्चों के साथ बाँटना चाहिए,उनके साथ जबरदस्ती नहीं करनी चाहिये, नाही अपने विचारों को,अपनी आकांक्षाओं को थोपना चाहिये। स्नेह का वातावरण बनाइये,वो आपको अपना साथी,हमदर्द समझकर आपसे विचार विमर्श करने की हिम्मत कर सकें।तभी समाज में पनपती कुत्सित विचारधारा से स्वयं को दूर रख पायेगा।
सजग रहिये,आपका बेटा आपकी शान हैऔर बेटी अभिमान। अपनी शान पर बट्टा मत लगने दीजिये और अभिमान से सिर उठाकर चलने की हिम्मत रखिये। फिर आप इस संसार के सबसे सुखी और सम्पन्न प्राणी होंगें।
आभार सजग युवा हरीश शर्मा का, जिसने समाज को जागृत करने का बीड़ा उठाया है।आइये हम सब साथ चलकर सँभालते हैं अपनी संस्कृति को,अपने नौनिहालों को,अपनों को,अपने समाज को और देश को।
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