कुण्डलिया छंद
शीर्षक - गरीब
(१)
चादर फटी गरीब की, करती खड़े सवाल।
उसके जीवन का कहो, सुधरे कैसे हाल।।
सुधरे कैसे हाल, खुशी कब उसे मिलेगी।
जीवन में अँधियार, कभी क्या धूप खिलेगी।।
अपनाएगा कौन, जगत में उसको सादर।
होगी उसे नसीब, नई सुंदर कब चादर।।
(२)
आँसू पोंछ गरीब की, गले लगा ले और।
पीड़ा सह वह जी रहा, करे बात पर गौर।।
करे बात पर गौर, सुधारें उसकी हालत।
पाये जग में मान, सहे मत और जलालत।।
कहे ‘श्लेष' नादान, काम यह करना धाँसू।
रोता दिखे गरीब, पोंछना उसके आँसू।।
(३)
शोषित वंचित दीन को, अपना मीत बनाय।
गुजरे अच्छी जिंदगी, उसका बनो सहाय।।
उसका बनो सहाय, जगह दो अपने दिल में।
लेगा वह भी साँस, जगत की इस महफिल में।।
सुन्दर लगते बाग, पेड़ पौधे हो पोषित।
दुनिया लगे खराब, अगर हो मानव शोषित।।
श्लेष चन्द्राकर,
पता:- खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.- 27,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़) पिन - 493445
संपादक मंडल का हार्दिक आभार मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए।
ReplyDeleteभावपूर्ण कुण्डलिया छंद।बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteहार्दिक बधाई उत्तम सृजन 🌹
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
Deleteबहुत खूब सर जी बधाई हो
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका आदरणीय
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