सांसदो और विधायकों की बंदर गुलाटी पर सब मौन क्यो?
मध्य प्रदेश की राजनीति में मची हलचल से अल्प मत की और जाती कमल नाथ सरकार और मुख्य मंत्री कमल नाथ के द्वारा गृहमंत्री आमित शाह को लिखा गया वह पत्र जिसमें उन्होंने बेंगलुरु में मौजूद कांग्रेस के 22 विधायकों को सकुशल मध्य प्रदेश वापस पहुँचाने की बात कही हैं, ये बहुत से सवाल खड़े कर रही है , जैसे- क्या कांग्रेस के 22 विधायकों का अपहरण हुआ हैं ? अगर विधायकों का अपहरण हुआ हैं तो विधायकों के परिजनों अथवा कमलनाथ सरकार ने को एफआईआर क्यो नहीं दर्ज कराई ?
यदि विधायक गण अपनी मर्जी से घुमने गए हैं तो वह अपनी सरकार को संकट की घड़ी में छोड़ कर क्यो गए ?
या फिर ये 22 विधायक वास्तव में बागी हो गए हैं ?
ऐसे अनगिनत सवाल मध्य प्रदेश की राजनीति में मची हलचल से निकल कर आ रहें हैं ।
और एक बड़ा सवाल यह है की क्या वास्तव में सरकार बनाने और गिराने के लिए विधायकों की खरीद फरोक्त की खबरें सिर्फ खबरें नहीं रही अब सच्चाई हो गई हैं ?
यह तो लोकतंत्र के नाम पर होने वाले चुनाव के द्वारा चुने जाने वाले जन प्रतिनिधियो और चुनाव आयोग सभी पर बड़ा सवाल खड़ा कर देता है की क्या दोनों ही जनता को मूर्ख बनाने का कार्य करते हैं ?
इन सब सवालों से एक अत्यंत गंभीर सवाल यह उठता हैं की आतंकियो के लिए रात में खुलने वाला हमारा सर्वोच्च न्यायालय जो सरकार गिराने और बचाने के लिए भी रात में सुनवाई कर लेता हैं। क्या हमारे माननीय सर्वोच्च न्यायालय को विधायकों की खरीद फरोक्त, विधायकों के बंधक बनाने जैसी घटनाओं पर स्वतः सज्ञान लेने का विवेक कहाँ चला जाता हैं ? माननीय सर्वोच्च न्यायालय का विवेक ऐसे गंभीर तथा लोकतंत्र की मजाक उड़ाने वाले मुद्दों पर आँखे क्यो मूंद लेता हैं? क्या माननीय सर्वोच्च न्यायालय को सिर्फ आतंकियो और सत्ता के लालचीयो की ही आह सुनाई देती हैं और लोकतंत्र की हत्या की चीख माननीय सर्वोच्च न्यायालय के कानों तक नहीं जाती ?
ये सब वह सवाल हैं जिनका जवाब अब जनता को मिलना चाहिए ।
क्योकि चुनाव वह प्रक्रिया हैं जो कराता भले ही चुनाव आयोग हैं मगर होती तो जनता के पैसे से ही हैं इसलिए जिन विधायकों , सांसदो को जनता चुनती हैं फिर वह बंदर की तरह इधर से उधर गुलाटी मारते है ऐसा आखिर कब तक होता रहेगा ? एक नेता जब दल बदलता हैं तो क्यो उससे दल बदलने का पुख्ता कारण हमारा सर्वोच्च न्यायालय नहीं पूछता ? और उस नेता के पीछे अनेक विधायक सासंद भेड चाल चलने लगते हैं क्यो इन पर कोई कार्यवाही माननीय राज्यपाल या महामहीम राष्ट्रपति जी के द्वारा नहीं की जाती हैं ? अपितू सरकार गिरने और बनने का खेल देखने में मस्त हो जाता हैं वह तंत्र जो इन पर रोक लगा सकता हैं । क्या हमारा लोकतंत्र वास्तव में मजाक बनकर रह गया हैं ? क्या ? हमरा संविधान सत्ता के लालचीयो के समक्ष बोना लगने लगा हैं आखिर क्यो सत्ता में आने वाले इन लालचीयो के लिए कोई ठोस मापदंड नहीं हैं ठीक उसी तरहा जैसे अन्य सरकारी नौकरियों में अपनाएँ जाते हैं और अगर इन विधायकों सांसदो के लिए मापदंड नहीं बन सकते तो फिर इनको वेतन फिर पैंशन क्यो ?
अरविंद कुमार चौधर
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