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महिलाएं और कोरोना corona or bhartiya mahilaen कल्पना गुप्ता

महिलाएं और कोरोना


20 वीं सदी का अभिशाप बन के आया कोरोना
महिला हो या पुरुष, सबको पड़ा है रोना।

इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना ने सबको अपनी लपेट में लिया। अमीर गरीब, गोरा काला, हिंदू मुस्लिम, सिख ईसाई इत्यादि सबके लिए कोरोना का पलड़ा एक जैसा।
इटली हो या इंग्लैंड, अफ्रीका हो या अमेरिका, ब्राजील हो या रूस, हिंदुस्तान हो या पाकिस्तान, इस महामारी का तांडव हर जगह दिखाई दे रहा है।
वूमन हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक इसे सदी की सबसे बड़ी महामारी कहां गया। जहां आधुनिकता की दौड़ में सब एक दूसरे की होड़ में लगे हुए थे, वहीं इस महामारी ने संपूर्ण विश्व को हिला के रख दिया। सब कुछ बदल गया इस संसार में। एक कहावत है हर चीज के दो पहलू होते हैं नकारात्मक और सकारात्मक।
चलो पहले नकारात्मक की बात करते हैं। अभी तक एक करोड़ से भी ज्यादा लोग इस महामारी की चपेट में आ गए हैं। कारोबार बंद हो गए। करोड़ों के हिसाब से लोग बेरोज़गार हो गए। महामारी से तो लोग मर ही रहे थे बहुत से लोग भूख से मर गए। देश की अर्थव्यवस्था मैं भी भारी गिरावट आई। महंगाई पहले ही बहुत थी
अब तो चरम सीमा पर है इत्यादि। निराशाजनक स्थिति उत्पन्न हो चुकी है। नकारात्मक उर्जा ने लोगों के हृदय
मैं अपना स्थान बना लिया है।
जहां तक सकारात्मक ऊर्जा की बात करें तो कोरोना ने कम पैसे, कम चीजों के साथ जीना सिखा दिया। घर का खाना खाकर लोग स्वस्थ हो गए। जंक फूड
खाने की आदतें काफी हद तक दूर हो गईं। चारों ओर का वातावरण स्वच्छ हो गया। नदियों का जल निर्मल हो गया। हमारे वन प्राणियों ने भी आजादी महसूस कर खुशी प्राप्ति की। और वह भी निकल पड़े घूमने शहर की ओर। सागर देवता ने भी जल जीवो को बिना किसी डर के सुस्ताने बाहर भेज दिया।

सबसे बड़ी बात लोगों का कला प्रदर्शन, सबकी कलाएं उनके अंदर से उमड़ उमड़ कर बाहर आ रही है। चाहे वह साहित्यिक जगत हो या रंगों की दुनिया, नृत्य, चित्रकला, संगीत, गायकी आदि।वाह; मेरा देश अनंत प्रतिभा हो से भरा हुआ। क्या छोटे, क्या बड़े क्या बूढ़े।

हमारे देश में एक विशेष वर्ग रहा है वह है नारी जाति।
हर गुण से परिपूर्ण, संपूर्ण, सबसे विशेष। घर हो या बाहर हर जगह पूरी जिम्मेदारी से काम करती हुई। अगर मैं कहूं तो कोरोना काल में नारी जाति पे विशेष असर हुआ। सबसे पहले मैं घरेलू औरतों की बात करूंगी। सबसे बड़ी गाज मेरी इन्ही बहनों पर पड़ी।
पहले ही वह पूरा दिन घर के कामों में व्यस्त रहती थीं
लेकिन अब तो व्यवसाय आदि बंद होने के कारण सारे पुरुष पूरा दिन घर में होते हैं और बेचारी औरतें उन की फरमाइशें पूरी करने में लगी रहती हैं। कभी चाय, कभी पानी ,कभी यह ,कभी वह। कभी-कभी तो यह भी हो जाता है कि ऑनलाइन क्लास के बीच में उठ कर भी फरमाइशें पूरी करनी पड़ जाती हैं। इस पुरुष प्रधान
देश में आज भी नारी के लिए ज्यादा कुछ नहीं बदला।

आजकल प्रेम कहानियां तो कम लिखी जा रही हैं
हां मगर युद्ध का मैदान रोज़ाना ही देखने को मिल रहा है।

सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं गरीब औरतें। अगर कहा जाए तो रोज़ाना कमा के घर चलाने वाली औरतें। सुबह घर से निकलती थी और चार पैसे कमा कर घरवालों की जरूरतें पूरी करती थीं। सब बंद हो गया, केवल बंद ही नहीं मीलों पैदल चलती रही अपने पति के साथ।
""सर पर सामान, एक बाजू में बच्चे को उठाए हुए"
बस यही है तकदीर इन दिनों औरतों की।
"इन बेचारी औरतों के लिए तो कहीं शौचालय नहीं, कहीं पानी नहीं, महावारी के दौरान भी ये औरतें बिना किसी इंतजाम के हजारों मील पैदल चलती रहीं"
हजारों मील पैदल चलना कोई शौक नहीं ,केवल इनकी मजबूरी।
पीने को पानी नहीं, खाने को रोटी नहीं, चलती रही दिनभर तपती धूप में, बिना रुके बिना थके, मंजिल अपना घर, इन महिलाओं की कहानी सदियों तक सुनाई जाएगी।

आफिस में काम करने वाली महिलाओं की तो बात ही
अलग है। कोरोना वायरस के आने से उनके काम में कई गुना बढ़ोतरी हो गई। जैसे कि स्वास्थ्य कर्मचारियों का 24 घंटों पीपी किट पहन के काम करना। महीनों तो वह अपने बच्चों से भी नहीं मिल सकीं। कुछ तो इतनी मजबूर हो गई थी कि अपने छोटे-छोटे बच्चों को साथ लेकर मरीजों की सेवा करनी पड़ी। सच में नमन करने को जी करता है ऐसी महिलाओं को।

पुलिस कर्मचारी महिलाओं की तो बात ही अलग है।
दिन रात ड्यूटी बजाती हुई। अपने छोटे बच्चों को साथ लिए, इस महामारी के दौर में काम करती हुई महिला पुलिस। धन्य है वह माएं जिन्होंने ऐसे वीरांगनाओं को जन्म दिया। अपनी सेहत की फिक्र ना करते हुए लोगों की सेवा में दिन-रात लगी रहीं।
बैंक कर्मचारी महिलाएं जो सुबह 9:00 बजे घर से निकलती तो थीं, लेकिन वापसी का कोई समय निश्चित नहीं था। काम के साथ-साथ खुद को भी बचाए रखना जरूरी था।
शिक्षा विभाग में भी कोरोना की वजह से स्कूल बंद करने पड़े। फिर क्या था ऑनलाइन क्लासेस का ज़ोर।
स्मार्टफोन कैसे चलाए जाएं, यह भी सीखना पड़ा, अलग-अलग एप्स को डाउनलोड करके क्लास ली गईं।
बाकी सब विभाग की औरतों का भी यही हाल था। मास्क पहने आंसर शीट चेक करती महिलाएं, पोस्ट ऑफिस में काम करती महिलाएं आदि।

इस कोरोना का काल में औरतें बड़े सब्र से सब सह रहीं
हैं। आए दिन अखबारों में घरेलू हिंसा के किस्से सुनाई दे रही हैैं। औरतों के लिए दूर दूर रहने का मतलब-बहुत काम करना, कभी बर्तन वाली, कभी झाड़ू पोछा वाली,  कपड़े धोने वाली, आदि। अगर हम इसको सही मायने में बताएं तो
कोरोना कॉल में सब काम करने वाली बाई
तनख्वाह प्लस मुफ्त की बाई
घर में आ रही है कमाई ही कमाई।

इस दर्द से हम भी है गुजर रहें
घर की लाबी में कई बार मोर्चे खुले
नौबत तो यहां तक आई
झाड़ू पोचे से बात तलाक तक आ गई
एक तो ऑनलाइन क्लास
लग रहे घर में सब दगाबाज़
बेलन तथा कड़छी से बजे कई बार साज़
बहुत भाया कोरोना कॉल
फूले पड़े हैं सबके गाल
घर बैठे ही आ रहा माल
शनि राहु केतु का है यह काल
औरतों के लिए ही सब जंजाल।

कल्पना गुप्ता/ रतन
परिचय
नाम_कल्पना गुप्ता सीनियर लेक्चरर
कलमी नाम_कल्पना गुप्ता/ रतन
जन्मतिथि--04-05-1965
जन्म स्थान--भद्रवाह (जम्मू एंड कश्मीर)
पता_1/134 विकास नगर सरवाल शिव मंदिर के सामने जम्मू
जम्मू कश्मीर
पिन 180005

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