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स्कूल kahani school (लेखिका डॉ ज्योत्सना गुप्ता)

स्कूल


"निधि ओ निधि"
"जी मम्मी"
"जरा ये कपड़े तो छत पर डाल आ, फिर कुछ देर पढ़ लिख ले ।सारा दिन मटरगश्ती करती रहती है।"
 "माँ बोल रही थी कि पढ़ लूं ,पर क्या और कैसे ? जैसे तैसे किताबें तो आ गयी पर समझ मे तो कुछ आता नही ।खोलो इन्हें तो नींद आती है अलग ।"यही सोचते हुए निधि हिंदी की किताब खोल कर पाठ पढ़ने लगी ।

        यूँ तो स्कूल की मेधावी तो नही तो औसत दर्ज़े से ऊपर की छात्रा थी ।ऑनलाइन पढ़ाई चल रही थी पर एक फ़ोन वो भी पापा ले जाते थे काम पर ।रात देर घर आने पर फ़ोन खोलकर देखने को करो तो सौ ताने और डांट फटकार अलग से ।अब करे तो क्या करे?
  कितना अच्छा था न .... सुबह सुबह तैयार होकर नाश्ता करके लंच साथ मे रखकर स्कूल जाते थे ।सहेलियों से गप्पे लड़ाकर दिन कैसे फुर्र होता था पता ही नही चलता था ।वो निर्मला की माँ क्या चटनी बनाती थी और स्वाती की कचौरी उफ्फ मुँह में पानी आ गया । पढ़ाई कैसे करनी है ये तो सिखाया ही नही गया कभी ।बस होती चली गयी पढ़ाई और न जाने कब 7वीं कक्षा में पहुँच गयी।
  "  उस रोज फीस न जमा हो पाने के कारण अदिति बाहर खड़ी की गई थी तब कैसे अपने साथ साथ उसका भी काम फटाफट पूरा कर दिया था और जब मैं बीमार पड़ गयी थी पूरे पन्द्रह दिन स्कूल नही गयी थी तो मेरी सब कापियों के काम स्वाती निर्मला अदिति रेखा ने बाँट कर पूरे कर दिए थे ।
मुझे तो कभी भी करेले की सब्जी अच्छी नही लगती थी पर स्वाती की जबरदस्ती के आगे झुकना पड़ा खाकर देखा तो इतनी भी बुरी नही थी जितना बुरा मैने करेले को बना रखा था ।
    निर्मला कितनी सारी चीजें बना लेती है और हमेशा अपनी माँ की मदद भी करती है।उसी ने सिखाया कि जो काम बड़े बड़े नही कर सकते वो हम लोग खेल खेल में कर लेते हैं जैसे छोटे छोटे बर्तन धुलकर रख देना, झाड़ू लगा देना, गमलों में पानी डाल देना कपड़े फैलाना और उठाकर तह लगाना ।बस मम्मी भी खुश और फिर वो वक्त निकाल कर कुछ न कुछ नया अवश्य पकाती है हमारे लिए । मैंने भी करके देखा और सच पाया ।अब मम्मी कितनी खुश भी रहती है ।वो स्नेहा के बताए सैंडविच बनाये थे तो मम्मी कितनी खुश हुई थी पापा, दादी  ,ताई ,मौसी सबको बता दिया ।सच्ची कितना अच्छा लगा था ।
     अदिति गणित में कितनी तेज़ है मेरी सारी परेशानी चुटकी में हल कर देती है और वो पुष्पा मैडम वो तो जान छिड़कती है उस पर ।मैं तो भीगी बिल्ली बन जाती हूँ उनके सामने ।अदिति होती तो कितना अच्छा होता पर सब दूर दूर है ।अब ऐसे कैसे पढ़ाई करूँ वो स्कूल वाली बात घर पर कैसे आ सकती है ? "निधि यह सोचते सोचते और खुद से बात करते करते सो गई।
        क्या इतना कुछ किताबें सिखा सकती हैं जितना स्कूल सिखा देता है? यूँ तो किताबें बहुत कुछ सिखाती हैं पर जीवन का प्रारंभिक ज्ञान तो यहीं स्कूल में खेल खेल में मिल जाता है।

रचना स्वरचित / मौलिक है
नाम....... डॉ ज्योत्सना गुप्ता
पता ..... अलीगंज रोड, निकट रेलवे क्रासिंग,गोला गोकरणनाथ, जनपद लखीमपुर खीरी
पिन कोड....... 262802
योग्यता....    एम.फिल., पीएच. डी 

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