कहानी :- रूठी रानी
रेगिस्तान की गोद में बसे सुनहरे शहर जैसलमेर की ख्याति शूरवीर, संत और सुंदरियों के लिए हमेशा ही दूर दूर तक फैलती रही हैं। रावल लूणकरण की राजकुमारी उमादे भी अपने अनुपम सौंदर्य के लिए विख्यात हो चुकी थी।
उस समय मारवाड़ (जोधपुर) पर वीर प्रतापी राव मालदेव का शासन रहा।
राजा मालदेव अपनी शूरवीरता के लिए जाने जाते थे। वे कोई भी युद्ध नहीं हारे थे। उमा दे की शादी राव मालदेव से तय हो जाती है।
भव्य बारात आती हैं धूमधाम से विवाह हो जाता है।
शादी के बाद महारानी उमा दे महल में राव का इन्तजार कर रही होती है मगर राव रास रंग में डूब जाते हैं।
।।छप्पय छंद।।
चितचोर मन लुभाय, सुन्दर रूप मन मोहे।
केश कंचन सुहाय, चातक नयन घन भौंहे।।
अधर खिले पंखुड़ी, ज्यों जल पर जलज सोहे।
खिले उर मंगल ही, यों पिय की बाट जोहे।।
रोम रोम प्रफुल्लित ही, धड़कन संगीत बाजे।
सुजल भाव समझे सही, सदा सजन उर विराजे।।
बहुत रात बाद भी राजा नहीं आते हैं तो रानी अपनी खास दासी भारमली के साथ संदेश भेजती है। और राव को बुलावा कहलाती है।
।।तोमर छंद।।
प्रियतम बैरी हमार। सुध-बुध दीनी बिसार।।
आए नहीं भूपाल। कैसे कहूं अब हाल।।
रचाए कैसो रास। टूट गई हिये आस।।
मैं करती इंतज़ार। गई रजनी बेकार।।
दासी जब राजा को बुलाने जाती है तो राव मदिरा के नशे में धुत होते हैं। वे दासी को ही रानी समझ उसे अपने पास बैठा लेते हैं। काफी इंतज़ार के बाद भी दासी या राजा नहीं आते हैं तो उमादे स्वयं राजा को बुलाने जाती है मगर वहां दासी के पहलू में राजा को बेसुध देखकर रानी क्रोधित हो उठती है। और फिर कभी राजा का मुंह नहीं देखने की कसम खा लेती है।
।।रोला छंद।।
जीवत नहीं बोलूं,मुख नहीं देखूं फिर ही।
द्वार पट ना खोलूं, बैरी मेरे राजवी।।
और उसके बाद फिर कभी रानी मालदेव से नहीं मिली। इतिहास में उमादे को रूठी रानी कहकर याद किया जाता है।
शेरशाह सूरी से 1562 के युद्ध में पराजय होती है मालदेव की।ये उसकी पहली हार रही। मालदेव की मृत्यु के बाद रूठी रानी उनके साथ सती हो जाती है। रूठी रानी का महल अजमेर में तारागढ़ दुर्ग के समीप बना हुआ है।
ब्रह्मानंद गर्ग सुजल©
जैसलमेर, राजस्थान।
9929079001
संदर्भ-कहानी ऐतिहासिक पुस्तकें, गूगल
छंद-स्वलिखित/मौलिक
धन्यवाद
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