संस्कृत के प्रमुख कवियों की जीवनी
Snskrit sahitya ke kaviyon ki jivani
दण्डी
दण्डी संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। इनके जीवन के संबंध में प्रामाणिक सूचनाओं का अभाव है। कुछ विद्वान इन्हें सातवीं शती के उत्तरार्ध या आठवीं शती के प्रारम्भ का मानते हैं तो कुछ विद्वान इनका जन्म 550 और 650 ई० के मध्य मानते हैं। .
बाणभट्ट
बाणभट्ट सातवीं शताब्दी के संस्कृत गद्य लेखक और कवि थे। वह राजा हर्षवर्धन के आस्थान कवि थे। उनके दो प्रमुख ग्रंथ हैं: हर्षचरितम् तथा कादम्बरी। हर्षचरितम्, राजा हर्षवर्धन का जीवन-चरित्र था और कादंबरी दुनिया का पहला उपन्यास था। कादंबरी पूर्ण होने से पहले ही बाणभट्ट जी का देहांत हो गया तो उपन्यास पूरा करने का काम उनके पुत्र भूषणभट्ट ने अपने हाथ में लिया। दोनों ग्रंथ संस्कृत साहित्य के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ माने जाते है। .
भट्टि
भट्टि संस्कृत के प्रसिद्द कवि थे। वे संस्कृत साहित्य के प्रमुख महाकाव्यकारों में से एक हैं जिनकी प्रसिद्द रचना रावणवधम् है जो वर्तमान में भट्टिकाव्य के नाम से अधिक जानी जाती है। भट्टि का काल कम से कम ६४१ ई॰ से पूर्व है क्योंकि उनकी रचना में आये वर्णन के अनुसार उन्होंने श्रीधरसेन द्वारा शासित वलभी में रहकर इसकी रचना की थी और इस नाम के आखिरी शासक का प्रमाण ६२१ ई॰पू॰ ही मान्य है
भर्तृहरि
भर्तृहरि एक महान संस्कृत कवि थे। संस्कृत साहित्य के इतिहास में भर्तृहरि एक नीतिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके शतकत्रय (नीतिशतक, शृंगारशतक, वैराग्यशतक) की उपदेशात्मक कहानियाँ भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। प्रत्येक शतक में सौ-सौ श्लोक हैं। बाद में इन्होंने गुरु गोरखनाथ के शिष्य बनकर वैराग्य धारण कर लिया था इसलिये इनका एक लोकप्रचलित नाम बाबा भरथरी भी है। .
भारवि
भारवि (छठी शताब्दी) संस्कृत के महान कवि हैं। वे अर्थ की गौरवता के लिये प्रसिद्ध हैं ("भारवेरर्थगौरवं")। किरातार्जुनीयम् महाकाव्य उनकी महान रचना है। इसे एक उत्कृष्ट श्रेणी की काव्यरचना माना जाता है। इनका काल छठी-सातवीं शताब्दि बताया जाता है। यह काव्य किरातरूपधारी शिव एवं पांडुपुत्र अर्जुन के बीच के धनुर्युद्ध तथा वाद-वार्तालाप पर केंद्रित है। महाभारत के एक पर्व पर आधारित इस महाकाव्य में अट्ठारह सर्ग हैं। भारवि सम्भवतः दक्षिण भारत के कहीं जन्मे थे। उनका रचनाकाल पश्चिमी गंग राजवंश के राजा दुर्विनीत तथा पल्लव राजवंश के राजा सिंहविष्णु के शासनकाल के समय का है। कवि ने बड़े से बड़े अर्थ को थोड़े से शब्दों में प्रकट कर अपनी काव्य-कुशलता का परिचय दिया है। कोमल भावों का प्रदर्शन भी कुशलतापूर्वक किया गया है। इसकी भाषा उदात्त एवं हृदय भावों को प्रकट करने वाली है। प्रकृति के दृश्यों का वर्णन भी अत्यन्त मनोहारी है।
भवभूति
भवभूति, संस्कृत के महान कवि एवं सर्वश्रेष्ठ नाटककार थे। उनके नाटक, कालिदास के नाटकों के समतुल्य माने जाते हैं। भवभूति ने अपने संबंध में महावीरचरित् की प्रस्तावना में लिखा है। ये विदर्भ देश के 'पद्मपुर' नामक स्थान के निवासी श्री भट्टगोपाल के पुत्र थे। इनके पिता का नाम नीलकंठ और माता का नाम जतुकर्णी था। इन्होंने अपना उल्लेख 'भट्टश्रीकंठ पछलांछनी भवभूतिर्नाम' से किया है। इनके गुरु का नाम 'ज्ञाननिधि' था। अत: इनका समय आठवीं शताब्दी का पूर्वार्ध सिद्ध होता है। .
भीमस्वामी
भीमस्वामी संस्कृत कवि थे। छठी शताब्दी ई० के अंतिम चरण में इनकी स्थिति मानी जाती है। इनका 'रावणार्जुनीय काव्य' प्रसिद्ध है। २७ सर्गों वाले इस काव्य में कार्तवीर्य अर्जुन तथा रावण के युद्ध का वर्णन है। भट्टिकाव्य की तरह इस काव्य में भी काव्य के बहाने संस्कृत व्याकरण के नियमों के उदाहरण उपस्थित किए गए हैं जिससे काव्यपक्ष कमजोर हो गया है। श्रेणी:संस्कृत कवि श्रेणी:संस्कृत व्याकरण.
माघ (कवि)
मारवाड़ के प्राचीनतम महाकवि के रूप में 'शिशुपालवध' के रचियता 'माघ' का जन्म भीन-माल के एक प्रतिष्ठित धनी ब्राह्मण-कुल में हुआ था। वे सर्वश्रेष्ठ संस्कृतमहाकवियों की त्रयी (माघ, भारवि, कालिदास) में अन्यतम हैं। उन्होंने शिशुपाल वध नामक केवल एक ही महाकाव्य लिखा। इस महाकाव्य में श्रीकृष्ण के द्वारा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में चेदिनरेश शिशुपाल के वध का सांगोपांग वर्णन है।
मंखक
मंखक, संस्कृत के महाकवि थे। कश्मीर में सिंधु और वितस्ता के संगम पर महाराज प्रवरसेन द्वारा प्रवरपुर नामक नगर बसाया गया था। यह नगर वर्तमान श्रीनगर से 125 मील उत्तर पूर्व की ओर है। यहीं महाकवि मंखक का जनम हुआ था। पितामह मन्मथ बड़े शिवभक्त थे। पिता विश्ववर्त भी उसी प्रकार दानी, यशस्वी एवं शिवभक्त थे। वे कश्मीर नरेश सुस्सल के यहाँ राजवैद्य तथा सभाकवि थे। मंखक से बड़े तीन भाई थे श्रृंगार, भृंग तथा लंक या अलंकार। तीनों महाराज सुस्सल के यहाँ उच्च पद पर प्रतिष्ठित थे। मंखक के व्याकरण, साहित्य, वैद्यक, ज्योतिष तथा अन्य लक्षण ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त किया था। आचार्य रुय्यक उनके गुरु थे। गुरु के अलंकारसर्वस्व ग्रंथ पर मंखक ने वृत्ति लिखी थी। .
श्रीहर्ष
श्रीहर्ष 12वीं सदी के संस्कृत के प्रसिद्ध कवि। वे बनारस एवं कन्नौज के गहड़वाल शासकों - विजयचन्द्र एवं जयचन्द्र की राजसभा को सुशोभित करते थे। उन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की, जिनमें ‘नैषधीयचरित्’ महाकाव्य उनकी कीर्ति का स्थायी स्मारक है। नैषधचरित में निषध देश के शासक नल तथा विदर्भ के शासक भीम की कन्या दमयन्ती के प्रणय सम्बन्धों तथा अन्ततोगत्वा उनके विवाह की कथा का काव्यात्मक वर्णन मिलता है। .
सुबन्धु
सुबन्धु संस्कृत भाषा के एक कवि थे। ये वासवदत्ता नामक गद्यकाव्य के रचयिता हैं। .
हरिचन्द्र
हरिचंद्र (हरिश्चंद्र?) दिगंबर जैन संप्रदाय के कवि थे। इन्होंने माघ की शैली पर धर्मशर्माभ्युदय नामक इक्कीस सर्गों का महाकाव्य रचा, जिसमें पंद्रहवें तीर्थंकर धर्मनाथ का चरित वर्णित है। ये महाकवि बाण द्वारा उद्धृत गद्यकार भट्टार हरिचंद्र से भिन्न थे, क्योंकि कि ये महाकाव्यकार थे, गद्यकाव्यकार थे, गद्यकार नहीं। हरिचंद्र का समय ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी माना जाता है। .
जल्हण
जल्हण संस्कृत के एक प्रख्यात कश्मीरी कवि। इनके पिता का नाम लक्ष्मीदेव था। ये राजपुरी के कृष्ण नामक राजा के मंत्री थे जिसने सन् 1147 ई. में राज्य प्राप्त किया था। इनकी अनेक रचनाएँ प्राप्त हैं। ऐतिहासिक काव्य लिखनेवालों में इनका नाम राजतरंगिणीकार कल्हण के बाद आता है। 'श्रीकंठचरित' महाकाव्य के रचयिता मंख या मंखक के कथानुसार जल्हण उसके भाई अलंकार के पंडित थे।
जगन्नाथ पण्डितराज
जगन्नाथ पण्डितराज (जन्म: 16 वीं शती के अन्तिम चरण में -- मृत्यु: 17 वीं शदी के तृतीय चरण में), उच्च कोटि के कवि, समालोचक, साहित्यशास्त्रकार तथा वैयाकरण थे। कवि के रूप में उनका स्थान उच्च काटि के उत्कृष्ट कवियों में कालिदास के अनंतर - कुछ विद्वान् रखते हैं। "रसगंगाधर"कार के रूप में उनके साहित्यशास्त्रीय पांडित्य और उक्त ग्रंथ का पंडितमंडली में बड़ा आदर है। .
वाल्मीकि
महर्षि वाल्मीक (संस्कृत: महर्षि वाल्मीक) प्राचीन भारतीय महर्षि हैं। ये आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होने संस्कृत में रामायण की रचना की। उनके द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। रामायण एक महाकाव्य है जो कि श्रीराम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य से, कर्तव्य से, परिचित करवाता है। आदिकवि शब्द 'आदि' और 'कवि' के मेल से बना है। 'आदि' का अर्थ होता है 'प्रथम' और 'कवि' का अर्थ होता है 'काव्य का रचयिता'। वाल्मीकि ऋषि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना करने के कारण वाल्मीकि आदिकवि कहलाये। वाल्मीकि एक आदि कवि थे पर उनकी विशेषता यह थी कि वे कोई ब्राह्मण नहीं थे, बल्कि केवट थे।। .
कालिदास
कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे। अभिज्ञानशाकुंतलम् कालिदास की सबसे प्रसिद्ध रचना है।सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ था। मेघदूतम् कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना है कालिदास वैदर्भी रीति के कवि हैं और तदनुरूप वे अपनी अलंकार युक्त किन्तु सरल और मधुर भाषा के लिये विशेष रूप से जाने जाते हैं। उनके प्रकृति वर्णन अद्वितीय हैं और विशेष रूप से अपनी उपमाओं के लिये जाने जाते हैं। साहित्य में औदार्य गुण के प्रति कालिदास का विशेष प्रेम है और उन्होंने अपने शृंगार रस प्रधान साहित्य में भी आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है। कालिदास के परवर्ती कवि बाणभट्ट ने उनकी सूक्तियों की विशेष रूप से प्रशंसा की है।
कुंतक
कुंतक, अलंकारशास्त्र के एक मौलिक विचारक विद्वान् थे। ये अभिधावादी आचार्य थे जिनकी दृष्टि में अभिधा शक्ति ही कवि के अभीष्ट अर्थ के द्योतन के लिए सर्वथा समर्थ होती है। इनका काल निश्चित रूप से ज्ञात नहीं हैं। ये दसवीं शती ई. के आसपास माना जाता है। एकमात्र रचना वक्रोक्तिजीवित है जो अधूरी ही उपलब्ध हैं। वक्रोक्ति को वे काव्य का 'जीवित' (जीवन, प्राण) मानते हैं। वक्रोक्तिजीवित में वक्रोक्ति को ही काव्य की आत्मा माना गया है।
अमरुक
अमरु या अमरूक संस्कृत के महान कवियों में से एक हैं। इनकी रचना अमरूशतक प्रसिद्ध है। इनका कोई अन्य काव्य उपलब्ध नहीं है और केवल इस एक ही काव्य के सौ पद्यों से सहृदयों के बीच प्रसिद्ध हुए हैं। ये सुवर्णकार थे। तथापि इनके माता-पिता कौन थे यह उल्लेख नहीं मिलता।
अश्वघोष
अश्वघोष, बौद्ध महाकवि तथा दार्शनिक थे। बुद्धचरितम्''' इनकी प्रसिद्ध रचना है। कुषाणनरेश कनिष्क के समकालीन महाकवि अश्वघोष का समय ईसवी प्रथम शताब्दी का अंत और द्वितीय का आरंभ है। .
विशाखदत्त
विशाखदत्त गुप्तकाल की विभूति थे। इनके दो नाटक प्रसिद्ध हैं-
मुद्राराक्षस तथा देवीचन्द्रगुप्तम्।
मुद्राराक्षस में चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं का उल्लेख मिलता है। देवीचन्द्रगुप्तम् से गुप्तवंशी शासक रामगुप्त के विषय में सूचनाएँ प्राप्त होती है। यह नाटक अपने मूल रूप में नहीं मिलता। इसके कुछ अंश नाट्य दर्पण में प्राप्त होते हैं। विशाखदत्त ऐतिहासिक प्रवृत्ति के लेखक हैं। इनके नाटक वीर रस प्रधान हैं। मुद्राराक्षस में प्रेमकथा, नायिका, विदूषक आदि का अभाव है तथा इस दृष्टि से यह संस्कृत साहित्य में अपना अलग स्थान रखता है। इस ग्रंथ के चरित्र-चिरण में विशेष निपुणता का प्रदर्शन मिलता है। इसकी भाषा प्रभावपूर्ण है।
राजशेखर
राजशेखर कन्नौज के प्रतिहारवंशीय राजा महेन्द्रपाल (890-908) तथा उसके पुत्र महिपाल (910-940) की राज्यसभा में रहते थे। वे संस्कृत के प्रसिद्ध कवि तथा नाटककार थे। राजशेखर नाटककार कम, कवि अधिक थे। उनके ग्रंथों में काव्यात्मकता अधिक है। वे शब्द कवि हैं। भवभूति के समान राजशेखर के शब्दों में अर्थ की प्रतिध्वनि निकलती है। उन्होंने लोकोक्तियों तथा मुहावरों का खुलकर प्रयोग किया। उनके नाटक रंगमंचके लिए उपयुक्त नहीं हैं अपितु वे पढ़ने में ही विशेष रोचक हैं।
राजशेखर ने पाँच ग्रंथों की रचना की थी। इनमें चार नाटक तथा एक अंलकार शास्त्र का ग्रंथ है। इनका उल्लेख निम्न है -
बाल रामायण
बाल भारत
विद्वशालभञ्जिका
कर्पूर मञ्जरी
काव्यमीमांसा
कवि मम्मट, मम्मटाचार्य
मम्मट, मम्मटाचार्य अथवा आचार्य मम्मट संस्कृत काव्य शास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों में से एक माने गये हैं। मम्मट अपने शास्त्रग्रंथ काव्यप्रकाश के कारण प्रसिद्ध हुए। कश्मीरी पंडितों की परंपरागत प्रसिद्धि के अनुसार वे नैषधीय चरित के रचयिता कवि श्रीहर्ष के मामा थे। उन दिनों कश्मीर विद्या और साहित्य के केंद्र था तथा सभी प्रमुख आचार्यों की शिक्षा एवं विकास इसी स्थान पर हुआ। मम्मट भोजराज के उत्तरवर्ती माने जाते है। इस प्रकार से उनका काल 10वीं सदी का लगभग उत्तरार्ध है। ऐसा विवरण भी मिलता है कि उनकी शिक्षा-दीक्षा वाराणसी में हुई वे कश्मीरी थे ऐसा उनके नाम से भी पता चलता है लेकिन इसके अतिरिक्त उनके विषय में बहुत कम जानकारी मिलती है।
कवि भास
संस्कृत नाटककारों में भास का नाम उल्लेखनीय है। भास कालिदास के पूर्ववर्ती हैं।m सबसे पहले 1909 ई. में गणपति शास्त्री ने भास के तेरह नाटकों की खोज की थी। अभी तक भास के विषय में जो सामग्री मिलती है, उससे स्पष्ट हो जाता है कि भास ही लौकिक संस्कृत के प्रथम साहित्यकार थे। भास का आविर्भाव ई. पू. पाँचवी - चौथी शती में हुआ था।
भास की रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
प्रतिमा। अभिषक पाञ्चराज
मध्यम व्यायोम दूतघटोत्कच कर्णभार
दूतवाक्य उरुभंग बालचरित
दरिद्रचारुदत्त अविमारक प्रतिज्ञायौगन्धरायण
स्वप्नवासवदत्ता।
भास ने अपने नाटकों के माध्यम से सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों का अच्छा चित्रण प्रस्तुत किया। उनकी शैली सीधी तथा सरल है तथा नाटकों का मंचन आसानी से किया जा सकता है। समस्त पदों अथवा अलंकारों के भार से उनके नाटक बोझिल नहीं होने पाये हैं।
शूद्रक
शूद्रक गुप्तकाल में उत्पन्न हुए थे। उनका प्रसिद्ध नाटक मृच्छकटिकम् है, जिसे सामाजिक नाटकों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। इसके दस अंकों में ब्राह्मण चारुदत्त जो समय-चक्र से निर्धन है तथा उज्जयिनी की प्रसिद्ध गणिका वसंतसेना के आर्दश प्रेम की कहानी वर्णित है। पात्रों के चरित्र-चित्रण में शूद्रक को विशेष सफलता मिली है। शूद्रक ने चारुदत्त के माध्यम से भारत के आर्दश नागरिक का चित्रण किया है। मृच्छकटिकम् की शैली सरल तथा वर्णन विस्तृत है। प्राकृत भाषा की सभी शैलियों का प्रयोग इसमें एक साथ मिलता है। प्रथम बार संस्कृत में शूद्रक ने ही राज परिवार को छोड़कर समाज के मध्यम वर्ग के लोगों को अपने नाटक के पात्र बनाये। इसके कथानक तथा वातावरण में स्वाभाविकता है। इस दृष्टि से शूद्रक की नाट्य कला बड़ी प्रशंसनीय है। पाश्चात्य आलोचकों ने इसकी बड़ी सराहना की है तथा मृच्छकटिकम् को सार्वभौम आकर्षण का नाटक बताया है, जिसका सफल मंचन विश्व में कहीं भी किया जा सकता है।
क्षेमेन्द्र
क्षेमेन्द्र कश्मीरी महाकवि थे। वे संस्कृत के विद्वान तथा प्रतिभा संपन्न कवि थे। उनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। क्षेमेन्द्र ने प्रसिद्ध आलोचक तथा तंत्रशास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान अभिनवगुप्त से साहित्यशास्त्र का अध्ययन किया था।
देशोपदेश
इन कृतियों में उस युग का वातावरण अपने पूर्ण वैभव के साथ हमारे सम्मुख प्रस्तुत होता है। क्षेमेन्द्र विदग्धी कवि होने के अतिरिक्त जनसाधारण के भी कवि थे, जिनकी रचना का उद्देश्य विशुद्ध मनोरंजन के साथ-साथ जनता का चरित्र निर्माण करना भी था। कलाविलास, चतुर्वर्गसंग्रह, चारुचर्या, समयमातृका आदि लघु काव्य इस दिशा में इनके सफल उद्योग के समर्थ प्रमाण हैं।
No comments:
Post a Comment