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आर्थिक आधारित जनगणना सार्वजनिक हों/Arthik janganana/Bhartiy Janaganana/

 आर्थिक आधारित जनगणना सार्वजनिक हों

            आर्थिक जनगणना


जनगणना अर्थात आबादी की गिनती वो तो सभी सरकारें करती आ रही है और होनी भी चाहिए, लेकिन विगत कुछ वर्षो से एक नई वहस छिडी है वो है जातिगत जनगणना की।क्षेत्रीय पार्टीयों का बढ़ता दबाब शायद ऐसे मुद्दे को सार्वजनिक कर सकता है।आज तक 1931 के बाद जाति आधारित जनगणना सार्वजानिक नहीं हुई आंकडे तो होते है पर वह सार्वजनिक नहीं होती शायद यही उन छोटे छोटे दलो को कुंठित कर रही है ।जातिगत पार्टीयां ही ऐसे मांगो को लेकर ज्यादा उत्साहित होती रही है,जबकि नेशनल पार्टीयां ऐसे मुद्दों से परहेज करती रही हैं। इसी को समझकर 1941 में जातिगत जनगणना की गयी लेकिन आंकडे सार्वजनिक नही हुए 2011 में भी सामाजिक आर्थिक और जातिगत जनगणना हुई लेकिन आंकडे सार्वजनिक नही हुए। सियासत के लिए जातिगत आंकडा जरूरी होता है 1931 से प्राप्त आंकडे के आधार पर आज भी सियासत होती है।मौजूदा स्थिति और भी भयावह है ऐसे में जाति आधारित जनगणना अगर सार्वजनिक कर दिए जाए तो सियासत भी खूब होगी और सामाजिक कटुता भी बढ़ेगी, इसलिए सभी सरकारे ऐसे मसले को भुलाये रखना ही जरूरी समझेगी।

देश के सभी राज्यो मे क्षेत्रीय पार्टीयों की भरमार है जो किसी न किसी जाति विशेष का नेतृत्व करती है। उनके लिए यह आंकडा तुरुप का इक्का सावित हो सकता है शायद यही सोचकर क्षेत्रीय पार्टीयां केन्द्र सरकार पर दबाव बनाती रही है।

दरअसल यह पार्टी नही एक वर्ग-विशेष का नेतृत्व है जो कि सिर्फ अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सकने से मतलब रखती है।जबकि इनकी मांग यह होना चाहिए था कि सरकार को आर्थिक कमजोर के आंकडे सार्वजनिक कर उनको सभी सरकारी योजनाओ का लाभ मिले इस पर ध्यान देने के लिए रास्ते बताते । देश की एक बडी आबादी आज तंगहाल है उनकी आर्थिक हालत खराब है ऐसे में जातिगत आंकडे का औचित्य क्या?शायद ऐसे जातिगत पार्टीयां ही फूट डालो और राज  करो की नींव रखती है।

एक पढा लिखा नौजवान आज के परिवेश में जाति से मतलब कतई नही रखता लेकिन प्रदेश के नामी गिरामी लीडर प्रदेश का मुखिया उपमुखिया जाति विशेष की मांग करता है ऐसे प्रदेश का उत्थान कैसे संभव है ।जाति एक सामाजिक विध्वंस का हथियार है जिससे राजनीति को दूर किया जाना चाहिए। जबतक जातिगत मानसिकता होगी सामाजिक और आर्थिक पतन होता रहेगा। इसलिए केन्द्र सरकार को गंभीरतापूर्वक विचार कर आर्थिक आधारित आंकडे सार्वजनिक करनी चाहिए।ताकि वंचित लोगो तक सरकारी लाभ और अधिक पहुँच सके।।
                                       आशुतोष 
                                      पटना बिहार 

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