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एक फौजी की प्रेम कहानी लेखक अखिल उमराव__ ek fauji ki prem katha


एक फौजी की प्रेम कथा

घर के कोने में बैठी किट्टु को पता नहीं कैसे गली के शोरगुल में गौरव के गाने की आवाज़ दूर से पहचान में आ जाती थी।।।।
पुरा नाम था क्रितीका सिंह, गांव के बलश्याम सिंह की बेटी जिसे भगवान ने बेइंतहा खूबसूरत बनाया था , पूरे गांव में उसकी खूबसूरती के टक्कर की कोई लड़की नहीं थी।।।।

किसी शादी ब्याह में किट्टु की मौजूदगी सबकी निगाहें बरबस दुल्हन को छोड़ अपने ओर खींच लिया करती थी, जितनी खूबसूरत वो उससे ज्यादा उसके पिता के गुण....हर चीज़ में दक्ष, खाना पकाने से लेकर सिलाई बुनाई सब में अव्वल ।।।।

गांव के हर लड़कों के जुबान पर उसकी खूबसूरती की चर्चा रहती थी पर किट्टु को तो बस गौरव समझ में आता था।।।।
गौरव के पिता एक किसान परिवार के थे , परंपरागत तरीके से वो भी इसी काम में थे।
पर गौरव के दिल की हसरत एक खुफिया जासूस बनने की थी और वो उसके लिए प्रयास भी करता था , उसी दिल के कोने में किट्टु के लिए बेतहाशा प्यार भी बसा करता था, जिसे उन दोनों के अलावा कोई और जानता भी नहीं था, बचपन में साथ साथ खेलना कुदना , खाना पीना कब प्यार में तब्दील हो गया, दोनों को पता भी नहीं चला , अब आलम यह था कि दोनों की जान एक दूसरे में बसती थी , दोनों एक दूसरे में भविष्य देखा करते थे।।।।

हर सुबह गौरव गाना गाते हुए इसी हसरत में गली से गुजरता था कि किट्टु की एक झलक देखने को मिल जाए और पुरा दिन गुलाबी हो जाये और किट्टु का ध्यान भी गौरव के गानों पर ही रहता था, गाने की आवाज सुनते ही चौखट पर आ खड़ी होती थी, दोनों के नयनों से जो बात होती थी उसे प्यार में लिप्त एक आशिक़ ही समझ सकता है(मेरी तरह), उसे मौन भाषा कहते हैं जिसके अंतिम चरण में दोनों एक प्यारी मुस्कान का आदान प्रदान करते थे।।।।

अब यह रोज का क्रम हो गया था, मौन भाषा से आगे अब दिलों और आत्मा के उस गहराई को स्पर्श करने लगे थे जिसके अहसास मात्र से मन मयूर हो जाता था।।।।

कुछ दिनों से किट्टु काफी परेशान लग रही थी, किसी काम में मन नहीं लगता था, जब से उस बावली को यह पता चला कि गौरव नौकरी के लिए चयनित हो गया है और वह कुछ दिनों में ट्रेनिंग के लिए जाने वाला है।।
मन के दुख को मात्र वो नव्या से बता सकती थी और भारी मन से उसके हाथों चिट्ठी भिजवाई, जिसमें उसने गौरव से अकेले में मिलने की इच्छा जाहिर की।।।
शाम का समय तय हुआ, शाम को नव्या के साथ पहली बार किट्टु अकेले गौरव से मिलने के लिए निकली।।।।

आम के बगीचे में गौरव अकेला खड़ा था , नव्या वहां से चल गई ( प्रेम प्रकरण के बिचौलिये का सफर यही तक होता है ) , गौरव को देखते ही चांद से चेहरे पर मोती जैसे आंसुओं ने कब्जा कर लिया और अंजाने भाव से वशीभूत होकर गौरव के सीने से लग गई ......

रोते रोते किट्टु कहने लगी ' मुझे छोड़कर मत जाओ गौरव, मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती, तुमसे ही तो मेरी धड़कने है, यह जान है, मेरे सपनों को मत तोड़ो , मेरे लिए रुक जाओ '
किट्टु के आंसुओं को पोंछने के बाद पहली बार उसके हाथों को अपने हाथों में रखा ... 

' पगली तू रोती क्यों है, मैं हमेशा के लिए थोड़े जा रहा हूँ, जल्द ही लौट आऊंगा , फिर बलश्याम ताया से तेरा हाथ मांग लूंगा, और फिर शादी के पवित्र बंधन में एक हो जायेंगे , तुझसे दूर जाने का दुख मुझे भी है पर वापस लौटने पर तेरे सारे शीकवे शिकायत दुर कर दुंगा , और किट्टु सिंह के नाम के आगे मेजर गौरव सिंह का नाम भी लग जायेगा '
' पर मैं तुम्हारे संग सूखी रोटी भी खाकर रह लुंगी, बस मुझे छोड़कर मत जाओ '
गले लगाते हुए गौरव ने पहली बार ' मैं तुझसे प्यार करता हूँ और यह मैं अपने लिए नहीं, हम दोनों के लिए कर रहा हूँ '

अच्छा एक बार मुस्कुराते हुए विदा कर मुझे, अगर प्यार करती है तो,
हाथ पर हल्के मारते हुए किट्टु वातावरण में चाशनी जैसी मीठी हंसी घोल दी।।।।
'अच्छा सुन तेरे यह गुलाबी रंग की चुनरी लाया हूँ, तुझे पसंद है ना , 
हाथ मांगने आऊंगा तो यही माथे पर रखकर आना '
भारी मन से दोनों घर को आये , गौरव सुबह तड़के ही निकल गया, बस एक ही बात गुंज रही थी ' गौरव जल्दी आना , तुम्हारा इंतजार करूंगी '


दिन बीते, महीने बीते, ना कोई चिठ्ठी , ना संदेश, नव्या द्वारा पता चला कि बार्डर पर हालात खराब है और सभी को सीमा पर भेजा गया है, उसमें गौरव भी है।।।।
यह सुनकर किट्टु का मन भर आया , अपने गौरव के अरदास में रोज मंदिर जाती और सलामती की दुआ करती, 
रेडियो और अखबार से भयावह खबरें सुनने को मिलती थी।।।।

एक सुबह काफी हलचल सुनाई दी, किट्टु को समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है, अचानक नव्या भागती हुई आई और सांसों को रोकने की प्रयास करते हुए कहने लगी ' गौरव अब इस दुनिया में नहीं है, कल आतंकवादियों से लड़ते वक्त उसकी मौत हो गई '

किट्टु के कानों में यह शब्द पिघलें सीसे की तरह भरने लगी, वह अचेत होकर गिरने वाली थी कि नव्या ने उसे संभाला।।
कोई कुछ कहता, इससे पहले पूरे गांव में नारों की गुंज उठी
' जब तक सुरज चांद रहेगा,
गौरव तुम्हारा नाम रहेगा '
नेताओं और मीडिया वालों के गाड़ियों की आवाज़ सुनाई दे रही थी, किट्टु हिम्मत करके चौखट पर गई .....

सामने से गौरव बिना गाना गाए , बिना बोले मुस्कुराता चेहरा लिए चार कंधों पर जा रहा था, कुछ देर बाद गोलियों की आवाज़ के साथ गौरव को आग दिया जा रहा था और इधर पंखे से गुलाबी चुनरी में किट्टु लटक रही थी और एक लेख पीछे छोड़ गई
' मेजर साहब, आपकी मौन भाषा को आज मैं समझ गई, मुझसे पीछा छुड़ाना आसान नहीं है, आ रही हूँ उसी जहां में, जहाँ ना नफरतो का किस्सागोई हो , ना प्यार में अवरोध '

--तुम्हारी बावली किट्टू

      रचनाकार :- अखिल उमराव

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