सूरमा
सर्वविदित है सर्विनिहित है और सदा मर्यादित है ।पर कलुषित मंथन के आगे सारा जीवन बाधित है ।।
चंचलता के समावेश को चिन्हित करने में, अक्षम
उत्तम, सरल-सहज ही अक्सर बनकर पड़े विवादित हैं ।।
मन है चिन्तित स्वप्न है खण्डित ,टूटी सारी आशा है ।
पर आगे ही बढ़ते जाना इस मन की अभिलाषा है ।
शब्दों को पर्दा कर जो,संकेतों से ही तिमिर छांट दे,
ज्योतिपुंज ले भिड़ जाए वो,. वीर मात्र की भाषा है ।।
भयकारी ,दु:खकारी माना समय वीर का विकट रहा है ।
तम की छाया सदा रही ,न सुख का आंचल निकट रहा है ।
अडिग,अचल,अरिमर्दन, नूतन परिवर्तन करने की खातिर
धीर धैर्य का अस्त्र लिए, हर बाधाओं से निपट रहा है ।
कष्टों की प्रतिछाया भी , उसके समक्ष प्रतिबन्धित है ।।
व विषाद की सारी चालें सहमी हैं स्पन्दित हैं ।
प्रेम-द्वेष,मद,लोभ-लाभ से हटकर त्याग किए है जो,
वैरागी है मोह त्यागकर ,वही सदा आनन्दित है ।
आंच नहीं पड़ने दे सारा तेज , स्वयं सह जाता है ।
वक्ष भिड़ाता,नयनों से सारा सागर बह जाता है ।
जन्म-मरण से ऊपर उठकर, मूल्यवान जीवन का फिर,
परहित में बलिदान करे जो वही वीर कहलाता है ।
अखिल उमराव
अमौली-फतेहपुर
So nice poem
ReplyDeleteGreat
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteNice yrr
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