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अदा कविता

   

अदा

कुछ इस तरह से मेरी ,
अदा को संवारा है अदाकार ने ,
जब भी पर्दे से निकलते हैं,
बाखुदा उसका नाम ले लेकर  ,
उस्तादे इश्के पेंचो खम सरकार है ,
भला शागिर्द की जिरह से हमारा ,
क्या दरकार है ?
सांसों की फजीहते जिलाने पर आमादा है ,
महफिले जीनत  हम पहने  हुए लबादा है ,
मोहब्बत की बिसात पर ऊंचे -ऊॅचे दावे से ,
मासूम दिल बेचारा परवाज में अफ्कार है ,

                       (चंद साॅसे)
                        कमल गर्ग

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